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यवतमाल ज़िला भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय यवतमाल है।

यवतमाल, महाराष्ट्र (भारत) में मसाले (हल्दी आदि) को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया।

हल्दी को मसाला वर्ग में एक प्रमुख नकदी फसल के रूप में जाना जाता है। भारत में, इस फसल का क्षेत्रफल 1,25,800 हेक्टेयर है और उत्पादन 5,50,185 मिलियन टन है।

भारतीय मसालों में हल्दी का एक अलग ही महत्व है। यही कारण है कि आपको हर घर की रसोई में हल्दी ज़रूर मिलेगी। हल्दी खाने का स्वाद और रंग रूप तो बढ़ाती ही है साथ ही यह कई तरह के रोगों से भी रक्षा करती है प्राचीन काल से ही हल्दी को जड़ी बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर हल्दी उत्पादन की बात कीजिये तो महारष्ट्र का भी एक बड़ा योगदान रहा है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, तेलंगाना और महाराष्ट्र भारत के 8,89,000 टन हल्दी उत्पादन का 50 प्रतिशत से अधिक योगदान देते हैं। तेलंगाना में 2,94,560 टन हल्दी का उत्पादन होता है जबकि महाराष्ट्र में 1,90,090 टन उत्पादन होता है।

हल्दी (कुरकुमा लांग कुल-जिंजीवरेसी) एक उष्णकटिबंधीय मसाला है जिसकी खेती इसके कंद हेतु की जाती है। इसका उपयोग मसाला, रंग-रोगन, दवा व सौन्दर्य प्रसाधन के क्षेत्र में होता है। इसके कंद से पीला रंग का पदार्थ- कुर्कुमीन व एक उच्च उड़नशील तैलीय पदार्थ-टर्मेरॉल  का उत्पादन होता है। इसके कंद में उच्च मात्रा में उर्जा (कार्बोहाइड्रेट के रूप में ) व खनिज होते हैं। इसके बिना पाक विद्या अधुरा होता है। इसके उपज पर भारत का एकाधिकार है। हमारे देश का मध्य व दक्षिण का क्षेत्र एवं असम इसके उत्पादन का मुख्य भाग है।

जलवायु
अच्छी बारिश वाले गर्म व आर्द्र क्षेत्र इसके उत्पादन हेतु योग्य होते हैं। इसकी खेती 1200 मीटर उंचाई तक वाले क्षेत्र में सुगमता पूर्वक अच्छी सिंचाई व्यवस्था के साथ की की जा सकती है।

मिट्टी
इसकी अच्छी उपज हेतु दोमट केवाल अथवा काली मिट्टी अच्छी होती है। तथापि कम्पोस्ट देकर कम उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में भी इसकी अच्छी उपज ली जा सकती है। इसके खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी क्षारीय नहीं होनी चाहिए। कंद का सड़न इसकी मुख्य समस्या है। ऐसे क्षेत्र में कम-कम-से दो वर्ष तक फसल विन्यास पद्धति अपनाना चाहिए।