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मंदसौर जिला वैसे तो पुरातात्विक और ऐतिहासिक विरासत में समृद्ध है, लेकिन शिवना तट पर स्थित प्रभु पशुपतिनाथ का मंदिर इसे विश्व प्रसिद्ध बनाता है। यहाँ के मंदिर की मूर्ति  नेपाल मे स्थित मंदिर की मूर्ति के समानांतर है।

यहाँ की सबसे आम भाषा मालवी (राजस्थानी और मिश्रित हिंदी) है | यह जिला दुनिया भर में अफीम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
स्लेट पेंसिल उद्योग जिले का मुख्य उद्योग है।

मंदसौर जिला अपने पश्चिमी डिवीजन, यानी उज्जैन कमिश्नर डिवीजन से मध्य प्रदेश का उत्तरी प्रक्षेपण बनाता है। यह अक्षांशों के समांतर 230 45 ′ 50 250 उत्तर और 250 2 250 55, उत्तर के बीच स्थित है, और देशांतर के विलय के बीच 740 42 ″ 30 and पूर्व और 750 50 ″ 20। पूर्व है।

मंदसौर जिले की विशिष्ट पहचान अष्टमुखी पशुपतिनाथ महादेव और अफीम उत्पादन माना जाता है।

लेकिन अब मंदसौर का लहसुन देश-दुनिया में इसकी खास पहचान बनेगा। सरकार की एक जिला-एक उत्पाद की महत्वाकांक्षी योजना के तहत मंदसौर जिले ने लहसुन का चयन किया है और इसकी ब्रांडिंग, गुणवत्ता, उत्पादन, भंडारण, विपणन और निर्यात पर एक कार्य योजना लागू की जा रही है।

हालांकि जिले में 950 से अधिक गांव हैं, 30,000 से अधिक किसान 18,000 हेक्टेयर से अधिक में लहसुन की खेती करते हैं। जिले में 182000 मीट्रिक टन से अधिक लहसुन का उत्पादन हो रहा है। मंदसौर जिले और आसपास के क्षेत्रों में देश के कुल लहसुन का 10 प्रतिशत से अधिक उत्पादन होता है। मंदसौर का लहसुन विदेशों में निर्यात किया जाता है।

मंदसौर जिले में अफीम के साथ मसाला फसलों का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है। इसमें लहसुन प्रमुख है। जिले में हर साल लगभग 1 लाख 82 हजार मीट्रिक टन से अधिक लहसुन का उत्पादन होता है। यह प्रदेश में तीसरे नंबर पर है। शासन ने भी एक जिला एक उत्पाद में केवल मंदसाैर के लहसुन काे शामिल किया है। प्रशासन द्वारा मंदसौर लहसुन का एक ब्रांड व लोगो तैयार कर किसानों के माध्यम से ही इसे देश, विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाएगा।

मंदसौर के लहसुन देश में सबसे अच्छी होती है इसलिए इसकी मांग अधिक रहती है। मंदसौर की लहसुन सुन्दर, सफेद और कड़क है, इसमें ऑयल और तीखापन ज्यादा होता है। वहीं, अन्य जगहों की लहसुन की तुलना में इसे 15 महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

मंदसौर व आसपास का मौसम लहसुन के लिए अनुकूल है। रतलाम के जावरा व पिपलाैदा से लेकर नीमच तक लहसुन अच्छा होता है। हालांकि मंदसौर की मिट्‌टी में वाटर होल्डिंग की क्षमता अच्छी है। पोटाश की मात्रा भी उपयुक्त है। वहीं किसान सल्फर का उपयोग अच्छे से करना जानते हैं। इससे यहां के लहसुन में ऑइल व तीखापन अधिक पाया जाता है। इसके कारण मंदसौर का लहसुन देशभर में प्रसिद्ध है। अकेले मंदसौर जिले में 18 हजार हेक्टेयर से अधिक में केवल लहसुन की फसल हाेती है।

                                                 

आत्मनिर्भर मप्र अभियान के तहत एक जिला एक उत्पाद योजना प्रारंभ की गई है। इसके तहत मंदसौर में लहसुन को चुना गया है। देशभर में मंदसौर की लहसुन को अलग ही पहचान दिलाने के लिए इसका एक लोगो भी बनवाया गया है। मालवा का जायका टेग लाइन से बने लोगो में श्री लहसुन के साथ श्री पशुपतिनाथ महादेव को भी लिया गया है।

मंदसौर जिले में निम्‍न प्रकार की लहसुन को बोया जाता है :- 1- ऊटी लहसुन, 2-जी 2 लहसुन , 3- अमरेटा लहसुन,   4- देशी लहसुन , 5-  महादेव लहसुन , 6-रीयावन लहसुन ,  7- तुलसी लहसुन किसानों को ऊटी किस्म की लहसुन के अच्छे दाम मिलते हैं, जो मध्य अगस्त तक लगाई जाती है, दक्षिण भारत में इसकी खेती बड़े स्तर पर होती है। वहीं इसकी डिमांड ज्यादा रहती है, इसकी कली दूसरी किस्मों के मुकाबले बड़ी होती हैं।

                      

  • लहसुन की पैदावार में मिट्टी की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मंदसौर जिला 90% डेक्कन ट्रेप्स पर बसा होने के कारण यहाँ काली मिट्टी अधिक पायी जाती है। जिले की अन्य मिट्टियों में लाल मिट्टी, लेटराइट मिट्टी,जलोढ़ मिट्टी तथा पथरीली मिट्टी उल्लेखनीय है।
  • लहसुन के बोने के लिए पहले खेत तैयार किया जाता है। दो बार जुताई की जाती, पाटा लगाया जाता है, मिट्टी भुरभुरी हो जाने पर खेत में सुविधानुसार क्यारियाँ बना ली जाती है। बीजों को उपचारित करके 6-7 इंच की दूरी रख रोपण कर दिया जाता है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून को छोड़कर सूखा मॉनसून रहता है वर्षा के समाप्त होते होते इसका रोपण कर दिया जाता है।

                    

  • सितंबर-अक्टूबर माह में इसका रोपण सम्पन्न कर लिया जाता है। लगभग 7 से 15 दिवस के अंतराल में क्यारियों की सिंचाई अनिवार्य होती है। 
  • फरवरी माह में इसे निकाल लिया जाता है। बोने का समय आगे-पीछे होने पर निकालने का समय घट- बढ़ जाता है।
  • कृषि विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किसान खाद व दवाई का उपयोग करते हैं। लहसुन की फसल अकेली होती है दूसरी फसल के साथ इसको नहीं लगाया जाता । कई किसान इसके लिए खेत खाली छोड़ देते हैं ताकि फसल अच्छी हो।