Kisaan Helpline
पपीता एक ऐसा फल है जो न केवल खाने में स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। इसे कच्चे और पके दोनों रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पपेन नामक एक एंजाइम पाया जाता है जिसका उपयोग दवाइयों और अन्य उद्योगों में भी किया जाता है। यही कारण है कि पपीते की खेती अब बहुत लोकप्रिय होती जा रही है और यह भारत का पाँचवाँ सबसे ज़्यादा उगाया जाने वाला फल बन गया है।
आज देश के कई हिस्सों
जैसे – आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार,
असम, महाराष्ट्र, गुजरात,
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और मिजोरम में बड़े स्तर पर इसकी खेती की जा
रही है। अगर किसान आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीके अपनाएं,
तो पपीते की खेती से अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है।
पपीते की खेती के लिए
ज़रूरी बातें
1. ज़मीन कैसी होनी चाहिए:
पपीते के लिए ऐसी
मिट्टी चाहिए जिसमें पानी न रुके। दोमट या हल्की काली मिट्टी जिसमें जल निकास
अच्छा हो,
सबसे बढ़िया रहती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जलोढ़ मिट्टी भी ठीक रहती है।
2. मौसम और तापमान:
पपीता गर्म इलाकों का
फल है। इसके लिए 22 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। 10 डिग्री से कम तापमान में पाला लगने का डर होता है,
जिससे पौधे खराब हो सकते हैं। इसलिए ऐसे समय में पौधों को
बचाना ज़रूरी है।
3. पपीते की प्रमुख किस्में:
देश के अलग-अलग
हिस्सों में पपीते की अलग-अलग किस्में उगाई जाती हैं। जैसे -
·
दक्षिण
भारत: कोय 1,
कोय 2, कोय 5, कुर्ग हनीड्यू
·
उत्तर
भारत: पूसा डेलिसियस,
पूसा मेजस्टी, पूसा डुवार्फ, पंजाब स्वीट
इन किस्मों में कुछ
किस्में पपेन निकालने के लिए भी उपयुक्त होती हैं जो बाजार में अच्छे दामों पर
बिकती हैं।
4. बीज तैयार करना और पौधे उगाना:
पपीते की खेती में बीज
से पौधे तैयार करना जरूरी होता है। 1 हेक्टेयर खेत के लिए 500 ग्राम बीज काफी होता है। बीज बोने से पहले उन्हें दवा
(जैसे केप्टान) से उपचारित करना चाहिए ताकि बीमारी न लगे। बीज को ऊंची क्यारियों
या थैलियों में बोया जा सकता है।
5. खेत में पौध रोपाई:
जब पौधे 20-25 सेंटीमीटर के हो जाएं तो खेत में रोपाई करनी चाहिए। 1.5 मीटर की दूरी पर 50x50x50 सेमी के गड्ढे बनाकर पौधे लगाए जाते हैं। गड्ढों में खाद
और बी.एच.सी. पाउडर मिलाना चाहिए। अप्रैल से अगस्त का समय रोपाई के लिए सबसे अच्छा
माना जाता है।
6. खाद और उर्वरक देना:
पपीते को जल्दी फल
देने वाला पौधा माना जाता है, इसलिए इसको भरपूर पोषण देना जरूरी है।
प्रति पौधा:
·
200 ग्राम नाइट्रोजन
·
250 ग्राम फास्फोरस
·
500 ग्राम पोटाश
·
50-150 ग्राम टाटा स्टील धुर्वी गोल्ड
इसके अलावा गोबर की
खाद,
नीम की खली और हड्डी का चूरा भी मिलाया जा सकता है।
खाद को तीन बार –
मार्च,
जुलाई और अक्टूबर में देना फायदेमंद होता है।
7. पानी देना और खेत की सफाई:
पपीते की फसल को
समय-समय पर पानी देना बहुत जरूरी है।
·
गर्मी
में: हर 6 दिन में सिंचाई
·
सर्दियों
में: 15 दिन में एक बार
पानी पौधे के तने को
नहीं छूना चाहिए, वरना पौधा सड़ सकता है। सिंचाई के बाद हल्की निराई-गुड़ाई जरूरी होती है ताकि
मिट्टी में हवा जाती रहे।
8. पाले से कैसे बचाएं:
ठंडी में पाला पपीते
के पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए पौधों को फूस से तीन तरफ ढक देना चाहिए
और धुआं करके उन्हें बचाया जा सकता है।
9. फल कब तैयार होता है:
उत्तर भारत में अप्रैल
से जुलाई तक पौधे लगाए जाएं तो अगले मार्च से फल मिलना शुरू हो जाता है। जब फल को
तोड़ने पर सफेद दूध जैसा रस निकलने लगे, तो समझिए कि फल पकने के करीब है।
एक पौधा अच्छी देखभाल
में 40 से 50 किलो तक फल दे सकता है।
10. रोग और बचाव:
पपीते में आमतौर पर
कीट कम लगते हैं, परंतु कुछ रोग हैं जिनसे सावधानी जरूरी है:
·
तना
और जड़ सड़न: पौधा सूखने लगता है।
उपाय – रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर हटा दें और जमीन की सफाई करें।
·
मौजेक
रोग: पत्ते सिकुड़ने लगते
हैं। उपाय – 250
मिली. मैलाथियॉन को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
पपीता एक ऐसी फसल है
जिसे कम लागत में उगाया जा सकता है और अच्छी देखरेख से अच्छी कमाई की जा सकती है।
इसकी खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है। अगर किसान वैज्ञानिक तरीके
अपनाएं और सही समय पर खाद, पानी और दवाइयों का इस्तेमाल करें तो यह फसल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बना
सकती है।