Ridge gourd (तोरई)
Basic Info
जैसा की आप जानते है तोरई की खेती सम्पूर्ण भारत में की जाती है। लेकिन तोरई के उत्पादन में मध्यप्रदेश, केरल, उड़ीसा, कर्नाटक, बंगाल और उत्तर प्रदेश अग्रणी है, यह सब्जी बेल पर उगती है। इसकी भारत में हर जगह बहुत मांग है, यह अनेक प्रोटीनों के साथ स्वादिष्ट भी होती है। बढ़ती माँग को देखते हुए इसकी खेती की व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी उत्तम है। इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे तोरी, तुराई, झींगा, झिंग्गी आदि। इसको कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए का अच्छा स्रोत माना जाता है। गर्मियों के दिनों में बाजार में इसकी मांग बहुत होती है, इसलिए किसानों के लिए इसकी खेती करना बहुत लाभदायक है।
Seed Specification
बुआई का समय
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए मार्च का समय उत्तम होता है, और खरीफ़ में जून से जुलाई को उपयुक्त माना गया है।
बीज की मात्रा
3-5 kg बीज का प्रयोग प्रति हेक्टेयर उपयुक्त रहता है।
बीज उपचार
तोरई फसल को फफूंद जनित रोग के अत्यधिक नुकसान से बचाव हेतु बीज का उपचार आवश्यक है। थीरम या मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करें।
Land Preparation & Soil Health
जलवायु
तोरई की अच्छी खेती के लिए उष्ण तथा नमीयुक्त जलवायु अच्छी मानी गई है, अंकुरण से बढ़वार तक 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना अवाश्यक है।
भूमि
तोरई की खेती के लिए उचित जल निकास वाली जीवांश युक्त हलकी दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी गई है। जिसका पी एच मान 7 के आस-पास रहे, नदियों के किनारे की खेती इसके लिए उपयुक्त रहती है।
खेत की तैयारी
बुवाई से पूर्व खेत तैयारी के लिए पहली जुताई पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2 से 3 बार हल या कल्टीवेटर से मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए, फिर पाटा के सहयोग से खेत को समतल बना लें। और खेत को खरपतवार रहित कर दें।
Crop Spray & fertilizer Specification
खाद और रासायनिक उर्वरक
तोरई की खेती में अधिक उत्पादन के लिए खेत तैयारी के समय 20-25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं। और रासायनिक उर्वरक के रूप में 120 kg नाइट्रोजन, 100 kg फॉस्फोरस, 80 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से दें। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही देना चाहिए।
रोग एवं रोकथाम
बरसात में फफूंदी रोग की संभावना अधिक होती है। इससे बचाव हेतु मेन्कोजेब या बाविस्टीन या सल्फर+टेबुकोनाज़ोल के मिश्रण 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
किट एवं रोकथाम
तोरई की फसल में लगने वाले किट लाल मकड़ी, फल की मक्खी, सफ़ेद ग्रब आदि है। अच्छी फसल के लिए कीटों का नियंत्रण आवश्यक है। इसके लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी या क्यूनालफास या dimethoate 30% Ec 1.5 लीटर 900 – 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर 10 – 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
तोरई की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। तथा तोरई की खेती में बुवाई के बाद पलवार का उपयोग करना चाहिए, जिससे खरपतवार उग नहीं पाते और मिट्टी का तापमान और नमी संरक्षित होती है, जिससे बीजों का जमाव भी अच्छा होता है।
सिंचाई प्रबंधन
खरीफ़ के फसल में बरसात रहने के कारण, सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। बारिश न होने की सूरत में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 5 से 7 दिन के अंतर से सिचाई करते रहें।
Harvesting & Storage
फलों की तुड़ाई
तोरई की फसल की तुड़ाई फलों के आकार को देखकर बाजार के भाव के आधार पर की जाती है। बता दें कि फलों की तुड़ाई 6-7 दिनों के अन्तराल पर करनी चाहिए. इस तरह पूरी फसल में फलों की तुड़ाई लगभग 8 बार होती है। ध्यान दें कि फलों को ताजा बनाए रखने के लिए ठण्डे छायादार स्थान का चुनाव करें। इसके अलावा बीच-बीच में उन पर पानी भी छिड़कते रहें।
उत्पादन
तोरई की उपज किस्म के चयन और खेती की तकनीक पर निर्भर है। यदि उन्नत विधि और उन्नत किस्म का चयन किया जाये तो प्रति हेक्टेयर 150 से 300 क्विंटल तक पैदावार मिलने की संभावना है।