kisan

Walnut (अखरोट)

Basic Info

आप जानते है अखरोट (Walnut) पतझड़ करने वाले बहुत सुन्दर और सुगन्धित पेड़ होते हैं। अखरोट का फल एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है। अखरोट की खेती या बागवानी भारत देश में मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रो में की जाती है। इसका अधिकतम उपयोग मिष्ठान उद्योग में किया जाता है। भारत में इसकी खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर के कुपवाड़ा, उड़ी, द्रास और पूंछ बर्फीली घाटियों में और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में की जाती है।

Seed Specification

बुवाई का समय
अखरोट की पौध नर्सरी में रोपाई से लगभग एक साल पहले मई और जून माह में तैयार की जाती हैं। अखरोट के पौध रोपण का उचित समय दिसम्बर से मार्च तक है, परन्तु दिसम्बर महीना अधिक उपयुक्त है।

दुरी
अखरोट के पौधरोपण की दूरी गड्ढों का रेखांकन अखरोट की किस्मों के बढ़वार के स्वभाव के अनुसार 10 से 12 मीटर की दूरी पर करना चाहिए।

बुवाई का तरीका
अखरोट की बुवाई सीधे बीजों द्वारा नर्सरी तैयार कर अथवा कलम विधि या ग्राफ्टिंग विधि द्वारा की जाती है।

ग्राफ्टिंग विधि
ग्राफ्टिंग के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए पहले किसी भी अखरोट के मूल पौधे की 5 से 7 महीने पुरानी शाखा के सभी पत्ते ग्राफ्टिंग करने से 15 दिन पहले तोड़ दें। उसके बाद पत्ती रहित शाखा को पौधे से हटाकर उसे एक तरफ से तिरछा काटकर किसी दूसरे जंगली पौधे के साथ जोड़कर अच्छे से बाँध दे। इसके अलावा V ग्राफ्टिंग विधि से भी इसकी पौध आसानी से तैयार की जा सकती है।

पौधरोपण का तरीका
नर्सरी में तैयार अखरोट की पौध की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है। इसके लिए गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटा गड्डा तैयार किया जाता है। जिसमें नर्सरी में तैयार पौध को लगाया जाता है।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
अखरोट की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों को उपयुक्त माना जाता है। अखरोट की खेती के लिए अधिक तेज़ गर्मी और सर्दी दोनों ही अनुपयोगी होती है।अखरोट के पौधों को शुरुआत में विकास करने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती हैं। उसके बाद इसके पौधे को विकास करने के लिए गर्मियों में अधिकतम 35 और सर्दियों में न्यूनतम 5 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है, इससे कम या अधिक तापमान होने पर पौधों का विकास रुक जाता है।

भूमि का चयन
अखरोट की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है, रेतीली और सख्त सतह वाली मिट्टी अखरोट के लिए ठीक नहीं होती है।क्षारीय गुणों वाली मिट्टी के प्रति अखरोट अत्याधिक संवेदनशील होता है अतः क्षारीय मिट्टी में इसे नहीं लगाना चाहिए। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए।

खेत की तैयारी
पौधरोपण से पूर्व खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दे उसके बाद खेत में रोटावेटर चला दे और मिट्टी को भुरभुरा करने के बाद  पाटा लगा कर खेत को समतल बना दे, जिससे की जलभराव की समस्या न हो। भूमि को समतल करने के बाद उचित दूरी रखते हुए 2 फीट चौड़ाई और 1 से डेढ़ फीट गहरे के गड्ढे तैयार करना चाहिए गड्ढो के तैयार होने के बाद उनमें रासायनिक उर्वरक और जैविक खाद को मिट्टी में मिला कर वापस गड्ढों में भर देते हैं, इसके बाद पौधरोपण कर सिंचाई करना चाहिए।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
गड्ढे तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट अच्छी तरह मिट्टी में मिला देना चाहिए जिससे कि पौधों का विकास अच्छा होता है। और रासायनिक उर्वरक मिट्टी की जांच के आधार पर प्रयोग में लाएं।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर पौधों के आसपास निराई गुड़ाई करना चाहिए। 

सिंचाई
पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए और इसके लिए शुरूआत में पौधों को गर्मियों में सप्ताह में एक बार पानी जरूर देना चाहिए जबकि सर्दियों के मौसम में पौधों को 20 से 30 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए और सर्दियों में अधिक पाला पढ़ने के समय पौधों को जल्दी जल्दी हल्का पानी देने से पौधों पर पाले का प्रभाव कम दिखाई देता है। फलन और फूल के समय सिंचाई की आवश्यकता होती  हैं।

Harvesting & Storage

अंतर फसलें
अखरोट के पौधे खेत में लगाने के चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। इस दौरान किसान भाई पेड़ो के बीच खाली पड़ी जमीन में कम समय की बागवानी फसल (पपीता), सब्जी, औषधी और मसाला फसलों को आसानी से उगा सकता हैं, जिससे किसान भाइयों को उनकी खेत से लगातार पैदावार भी मिलती रहती है।

फसल की कटाई
अखरोट के फलो की तुड़ाई जब अखरोट के फलों की ऊपरी छाल फटने लगे तब करनी चाहिये। अखरोट के फल पकने के बाद खुद टूटकर गिरने लगते हैं। जब पौधे से लगभग 20 प्रतिशत फल गिर जाएँ तब एक लंबा बाँस लेकर पौधे से इसके फल गिरा लेने चाहिए। अखरोट के नीचे गिरे हुए फलों को एकत्रित कर उन्हें पौधे की पत्तियों से ढक देना चाहिए। ताकि फलों की छाल आसानी से हटाई जा सके। इसके फलों में अधिक चमक बनाने के लिए इन्हें एक विशेष प्रकार के घोल में डुबोकर रखा जाता है। उसके बाद इसके फलों को धूप में सुखाया जाता है।

उत्पादन
अखरोट के पौधे सामान्य रूप से 20 से 25 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं। लेकिन वर्तमान में तैयार की गई विभिन्न किस्मों के पौधे रोपाई के तीन से चार साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं। जो 20 से 25 साल बाद सालाना औसतन 40 किलो प्रति पौधे की दर से पैदावार देते हैं।

Walnut (अखरोट) Crop Types

You may also like

No video Found!