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Rapeseed (रेपसीड/कैनोला)

Basic Info

रेपसीड (केनोला) भारत की प्रमुख फसलों में से एक है, इनके बीजों का उपयोग खाद्य तेल के उत्पादन में होता है जो मानव उपभोग के लिए अनुकूल होता है क्योंकि इसमें पारंपरिक रेपसीड तेलों की तुलना में इरुसिक एसिड की मात्रा कम होती है, साथ ही इसका इस्तेमाल मवेशियों का चारा तैयार करने में भी होता है। दुनिया के कुल उत्पादन में 12 प्रतिशत के साथ चीन और कनाडा के बाद भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेपसीड-सरसों उत्पादक है। भारत क्रमशः क्षेत्र और उत्पादन में द्वितीय और तृतीय श्रेणी के साथ दुनिया की रेपसीड-सरसों अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान रखता है। रेपसीड उगाने के लिए 75 से.मी. से 150 से.मी. तक की वर्षा की आवश्यकता होती है, रेपसीड बोते तथा काटते समय 20 डिग्री सेल्शियस तापमान होना चाहिए। दोमट मिट्टी को रेपसीड की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब तथा असम रेपसीड के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

Seed Specification

बुवाई का समय
रेपसीड की बुवाई का सही समय सितंबर से अक्टूबर है।
 
फासला
रेपसीड की बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 10 से 15 सैं.मी. रखें। सरसों की बिजाई के लिए पंक्तियों का फासला 45 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 10 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
बीज 4-5 सैं.मी. गहरे बीजने चाहिए।
 
बुवाई का तरीका
बुवाई के लिए बुवाई वाली मशीन का ही प्रयोग करें।
 
बीज की मात्रा
बीज की मात्रा 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरूरत होती है। बुवाई के 3 सप्ताह बाद कमज़ोर पौधों को नष्ट कर दें और सेहतमंद पौधों को खेत में रहने दें।

बीज का उपचार
बीज को मिट्टी के अंदरूनी कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए बीजों को 3 ग्राम थीरम से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करें।

Land Preparation & Soil Health

उपयुक्त जलवायु
भारत में रेपसीड की खेती शीत ऋतु में की जाती है। इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवष्यकता होती है। सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नही रहता है। अगर इस प्रकार का मौसम होता है, तो फसल पर माहू या चैपा के आने की अधिक संभावना हो जाती हैं।

भूमि का चयन
रेपसीड की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओ में की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है। लेकिन मृदा अम्लीय नही होनी चाहिए।

खेत की तैयारी
रेपसीड की खेती के लिए भूमि को देसी हल या कल्टीवेटर से दो या तीन बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। बीजों के एकसार अंकुरित होने के लिए बैड नर्म, गीले और समतल होने चाहिए। सीड बैड पर बोयी फसल अच्छी अंकुरित होती है।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं उर्वरक
रेपसीड की खेती के लिए खेत की तैयारी के समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 7-12 टन/एकड़ की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। खादों के सही प्रयोग के लिए मिट्टी की जांच करवायें। सरसों में 40 किलो नाइट्रोजन (90 किलो यूरिया), 12 किलो फासफोरस (75 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और 6 किलो पोटाश्यिम (10 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति एकड़ डालें। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सारी खाद बिजाई से पहले डालें। सरसों के लिए खाद की आधी मात्रा बिजाई से पहले और आधी मात्रा पहला पानी लगाते समय डालें। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही प्रयोग करें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
रेपसीड की खेती में खरपतवार की रोकथाम के लिए 15 दिनों के फ़ासलो में 2-3 निराई-गुड़ाई करें।

सिंचाई
फसल की बुवाई सिंचाई के बाद करें। अच्छी फसल लेने के लिए बुवाई के बाद तीन हफ्तों के फासले पर तीन सिंचाइयों की जरूरत होती है। ज़मीन में नमी को बचाने के लिए जैविक खादों का अधिक प्रयोग करें।

Harvesting & Storage

कटाई एवं गहाई
फसल अधिक पकने पर फलियों के चटकने की आशंका बढ़ जाती है। अतः पोधों के पीले पड़ने एवं फलियां भूरी होने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। फसल को सूखाकर थ्रेसर या डंडों से पीटकर दाने को अलग कर लिया जाता है। बीजों को सुखाने के बाद बोरियों में या ढोल में डालें। और नमी रहित स्थान पर भण्डारित करें।

उत्पादन
रेपसीड की उपरोक्त उन्नत तकनीक द्वारा खेती करने पर असिंचित क्षेत्रो में 15 से 20 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्रो में 20 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर दाने की उपज प्राप्त हो जाती है।

Rapeseed (रेपसीड/कैनोला) Crop Types

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