kisan

Jatamansi (जटामांसी)

Basic Info

आप जानते है जटामांसी (वैज्ञानिक नाम: Nardostachys jatamansi) हिमालय क्षेत्र में उगने वाला एक सपुष्पी औषधीय पौधा है। इसका उपयोग तीखे महक वाला  इत्र बनाने में होता है। इसे जटामांसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी जड़ों में जटा (बाल) जैसे तन्तु लगे होते हैं। इसे मारवाङी में'बालछड़' नाम से भी जाना जाता है। जटामांसी एक बारहमासी पौधा है जो आकार में छोटा, शाकीय और रोमयुक्त होता है। यह सीधा बालों वाला, 10 - 60 सेमी. की लंबाई वाला पौधा होता है,  इसके प्रकन्द मोटे, लम्बे तथा पत्तियों के अवशेष के साथ ढके हुए होते है. पत्तियां मूलभूत होने के साथ स्तंभीय भी होती है।

Seed Specification

बुवाई का समय 
जटामांसी के बीजों की बुवाई मई माह में की जाती हैं।

बुवाई का तरीका 
नर्सरी में बीजों से फसल को तैयार किया जा सकता है।

दुरी 
20x20 सेमी. या 20x30 सेमी. की  दूरी  रखते हुए बीजों को अंकुरण के 50-60 दिनों के बाद प्रत्यारोपित करना चाहिए।

पौधरोपण का तरीका
प्रत्यारोपन कार्य को प्रारम्भ करने से 15 दिन पहले खाद को मिट्टी में मिलाना चाहिए, उसके बाद निराई तथा भूमि समतल की जाती है. 0.2 -0.25 मिलियन पौध 1 हेक्टयर भूमि के लिए जरूरी होती है।

बीज की मात्रा 
लगभग 600 ग्राम बीजों को एक हेक्टयर जमीन में बोया जा सकता है। 

बीज उपचार
बीजों और प्रकंदों को जीए 3 (जिबरलिकएसिड) के साथ 100 पीपीएम और 200 पीपीएम में 48 घंटों तक  पूर्व  उपचार किया जाता है, जिससे तेजी से अंकुरण में सहायता  मिलती है।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
जटामांसी का पौधा सामान्यता : 25 - 45 डिग्री तापमान वाली पहाड़ों की खाड़ी ढलान वाले क्षेत्रों में पाया जाता है।

भूमि का चयन
इसकी खेती के लिए दोमट तथा छिद्रिल मिटटी इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है।

खेत की तैयारी
पौधरोपण से पहले खेत को समतल करने के लिए गर्मी के मौसम में हल या कल्टीवेटर के द्वारा अच्छी तरह से गहरी जुताई की जाती है,और क्यारियों  को दाई  तरफ खुला छोड़ते हुए सप्ताह में एक बार सौरीकारण किया जाता है। केंचुआ खाद / एफवाईएम (गोबर की खाद) को बीज बोने से पूर्व क्यारियों में डाला जाता है तथा प्रकंदों को प्रत्यारोपित किया जाता है। पौधे के विकास के लिए लगभग 40 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टयर अधिक उपयुक्त होती है।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
जटामांसी के पौधे की अच्छे विकास के लिए प्रति हेक्टयर में 6.0 -8.0 टन तक खाद डालनी चाहिए। पहले वर्ष खाद की आधी मात्रा का प्रयोग किया जाता है और बची हुई खाद की मात्रा को 2 हिस्सों में दूसरे और तीसरे वर्ष के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई चाहिए।

सिंचाई
पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए। और प्रारम्भ में निचले भागों में वैकल्पिक दिनों में सिंचाई करनी चाहिए। शुष्क मौसम में सप्ताह के अंतराल में सिंचाई की जानी चाहिए। मिट्टी में लगातार नमी बनाये रखना चाहिए।

Harvesting & Storage

फसल पकना और कटाई
बीजों के द्वारा फसल उगाने से फसल के पकने में 3 से 4 वर्ष लग जाते है। प्रकन्दों के माध्यम से फसल उगाने में 2 से 3 वर्ष का समय लगता है। पौधों का अक्टूबर में पकने के बाद संग्रहण करना चाहिए।

कटाई पश्चात प्रबंधन
जड़ों को धोकर अच्छी तरह से छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए। सुखाई गयी सामग्री को जूट के थैलों अथवा लकड़ी के डिब्बों में रखा जाता है और शुष्क गोदामों में भंडारित किया जाता है।

उत्पादन
प्रति हेक्टयर 835 किलोग्राम सूखी जड़े प्राप्त होती है।

Crop Related Disease

Description:
रोग मिट्टी जनित है। कवक दो तरह से जीवित रह सकता है: बीज के लिए रखे रोगग्रस्त प्रकंदों में, और क्लैमाइडो बीजाणुओं और ओस्पोर्स जैसी विश्राम संरचनाओं के माध्यम से जो संक्रमित प्रकंदों से मिट्टी तक पहुँचते हैं। छोटे स्प्राउट्स रोगज़नक़ों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। नेमाटोड के संक्रमण से प्रकंद सड़न रोग बढ़ जाता है। 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का उच्च तापमान और उच्च मिट्टी की नमी रोग के पक्ष में महत्वपूर्ण कारक हैं। नालियों की खराब निकासी के कारण खेत में जलभराव से रोग की तीव्रता बढ़ जाती है।
Organic Solution:
• कीटों/बीमारी के प्रबंधन के लिए जैव नियंत्रण एजेंटों की आबादी को आकर्षित करने और बढ़ाने के लिए सीमा पर तुलसी, गेंदा, सौंफ, सूरजमुखी आदि जैसे बारहमासी/मौसमी फूलों के पौधे लगाना। • पाइन सुई या नीम केक पाउडर उपचार @ 0.8t/एकड़ . का प्रयोग
Chemical Solution:
प्रकंद सड़न देखा गया है जिसके लिए 0.2% डाइथेन एम-45 के साथ भीगने की सिफारिश की जाती है।

Jatamansi (जटामांसी) Crop Types

You may also like

No video Found!