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Fenugreek (मेथी)

Basic Info

मेथी एक वनस्पति है जिसका पौधा १ फुट से छोटा होता है। इसकी पत्तियाँ साग बनाने के काम आतीं हैं तथा इसके दाने मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी है। मेथी का पौधा एक छोटा सा पौधा है जिसमें हरे पत्ते, छोटे सफेद फूल और फली होती है जिसमें छोटे, सुनहरे-भूरे रंग के बीज होते हैं। यह पौधा 2-3 फीट तक बढ़ सकता है। भारतीय आमतौर पर मेथी के पौधे का उपयोग सब्जियों या पराठों में करते हैं। मेथी दाना मेथी के पौधे के सुनहरे-भूरे रंग के बीज होते हैं. बीज का उपयोग ख़ास कर खाना पकाने में और दवा में किया जाता है। भारत में राज्यस्थान मुख्य मेथी उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश, तामिलनाडू, राज्यस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पंजाब अन्य मेथी उत्पादक राज्य हैं।

Seed Specification

मेथी की उन्नत किस्में
मेथी की फसल से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए किसानों की स्थानीय किस्मों की अपेक्षा उन्नत किस्मों को प्राथमिकता देनी चाहिए| कुछ प्रचलित और अच्छी उपज देने वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे- हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, ए एफ जी- 1, 2 व 3, आर एम टी- 1 व 143, राजेन्द्र क्रांति, को- 1 और पूसा कसूरी आदि प्रमुख अनुमोदित प्रजातियाँ है|

बुवाई का समय
इस फसल की बुवाई के लिए अक्टूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह अच्छा समय है।
 
फासला
पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सैं.मी का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बैड पर 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें।

बुवाई का ढंग
इसकी बुवाई हाथ से छींटे द्वारा की जाती है। 

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करें।
 
फसली चक्र
मेथी के साथ खरीफ फसलें जैसे धान, मक्की, हरी मूंग और हरे चारे वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।
 
बीज का उपचार
बुवाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद  एज़ोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
मेथी की अच्छी बढवार तथा उपज के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है| इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की क्षमता होती है| 

भूमि का चयन
मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बालू वाली मिट्टी इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होती है। इसमें कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है। मृदा का पी.एच. मान 6-7 फसल की वृद्धि व विकास के लिए उपयुक्त होता है। उचित जल निकास प्रबन्ध युक्त भारी व कम क्षारीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है|

खेत की तैयारी
मेथी की खेती के लिए भूमि को कल्टीवेटर अथवा देशी हल से 2 से 3 जुताइयाँ करनी चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए। आखिरी जोताई के समय 10-15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद डालें। बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए,  ताकि सही अंकुरण हो सके।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक 
मेथी की फसल के लिए आखिरी जोताई के समय 10-15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद डालें। बिजाई के समय 5 किलो नाइट्रोजन (12 किलो यूरिया), 8 किलो पोटाश्यिम (50 किलो सुपर फासफेट) प्रति एकड़ में डालें। अच्छी वृद्धि के लिए अंकुरन के 15-20 दिनों के बाद ट्राइकोंटानोल हारमोन 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। बिजाई के 20 दिनों के बाद एनपीके (19:19: 19) 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे भी अच्छी और तेजी से वृद्धि करने में सहायता करती है।

हानिकारक रोग और रोकथाम
छाछया रोग (पाउड्री मिल्ड्यु)-  रोग के नियन्त्रण के लिए 0.1 प्रतिशत कैराथेन एल सी या 0.2 प्रतिशत घुलनशील गंधक के 500 लीटर घोल को प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़कना चाहिए| अगर जरुरत महसूस हो तो 10 से 15 दिनों बाद पुनः इसे दोहराया जाना चाहिए| इसके अलावा फसल पर 15 से 20 किलोग्राम सल्फर चूर्ण का बुरकाव करना चाहिए|
मृदुरोमिल फफूंद- इस रोग के नियन्त्रण के लिए किसी भी एक कॉपर फफूंदनाशी जैसे ब्लाईटौक्स, फाइटोलान, नीली कॉपर अथवा डाईफोलटॉन के 0.2 प्रतिशत सांद्रता वाले 400 से 500 लीटर घोल का प्रति हैक्टेयर छिड़काव करना चाहिए| आवश्यकता पड़ने पर 10 से 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराया जा सकता है|
जड गलन- इससे बचाव के लिए बीज को किसी फफूंदनाशी जैसे थाइम या कैप्टान द्वारा उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए| उचित फसल चक्र अपनाना, गर्मी की जुताई करना आदि भी रोग को कम करने में सहायक होते हैं|

हानिकारक कीट और रोकथाम
माहू (एफिड)- यदि माहु का हमला दिखे तो  इमीडाक्लोप्रिड 3 मि.ली को 10 लीटर पानी या थायामैथोक्सम 4 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
दीमक- दीमक की रोकथाम के लिए फसल में 4 लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से क्लोरपाइीफॉस को पानी में मिलाकर सिंचाई के साथ देना चाहिए।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
पहली गुड़ाई बिजाई के 25-30 दिनों के बाद और दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 30 दिनों के बाद करें। नदीनों को रासायनिक तरीके से रोकने के लिए फलूक्लोरालिन 300 ग्राम प्रति एकड़ में डालने की सिफारिश की जाती है इसके इलावा पैंडीमैथालिन 1.3 लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 1-2 दिनों के अंदर अंदर मिट्टी में नमी बने रहने पर स्प्रे करें। जब पौधा 4 इंच ऊंचा हो जाए तो उसे बिखरने से बचाने के लिए बांध दें।

सिंचाई
बुवाई के बाद शुरुआत में बीजों के अंकुरण के लिए नमी का होना अच्छा होता है इसलिए हल्की सिंचाई करें। बीजों के जल्दी अंकुरण के लिए बुवाई से पहले सिंचाई करें। मेथी की उचित पैदावार के लिए बुवाई के लिए तीन से चार सिंचाई करें। फली के विकास और बीज के विकास के समय पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि इससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।

Harvesting & Storage

कटाई
मेथी का साग के उद्देश्य से उगाने वाले किसान भाई बुवाई के माह भर बाद मेथी की कटाई शुरू कर दें। मेथी की फसल 140 - 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। दानों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झड़ने पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें। कटाई के बाद फसल की गठरी बनाकर बांध लें और 6-7 दिन सूरज की रोशनी में रखें। अच्छी तरह से सूखने पर इसकी छंटाई करें, फिर सफाई करके ग्रेडिंग करें।

भंडारण
मेथी के दाने को साफ़ करके और अच्छे से सूखा कर बोरियो में भरकर हवादार नमी रहित स्थान पर रखना चाहिए।

Crop Related Disease

Description:
पत्ती की कलियों और अन्य पौधों के मलबे के अंदर फंगल स्पॉन्सर ओवरविनटर। हवा, पानी और कीड़े आसपास के पौधों को बीजाणु पहुंचाते हैं। भले ही यह कवक है, लेकिन पाउडर फफूंदी सामान्य रूप से सूखे की स्थिति में विकसित हो सकती है। यह 10-12 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर जीवित रहता है, लेकिन 30 डिग्री सेल्सियस पर इष्टतम स्थिति पाई जाती है। नीच फफूंदी के विपरीत, अल्प मात्रा में वर्षा और नियमित रूप से सुबह ओस चूर्ण फफूंदी के प्रसार को तेज करता है।
Organic Solution:
सल्फर, नीम तेल, काओलिन या एस्कॉर्बिक एसिड पर आधारित पर्ण स्प्रे गंभीर संक्रमण को रोक सकते हैं।
Chemical Solution:
यदि उपलब्ध हो तो हमेशा जैविक उपचार के साथ निवारक उपायों के साथ एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार करें। उन फसलों की संख्या के मद्देनजर जो कि ख़स्ता फफूंदी के लिए अतिसंवेदनशील हैं, किसी भी विशेष रासायनिक उपचार की सिफारिश करना मुश्किल है। Wettable सल्फर (3 g / l), हेक्साकोनाज़ोल, माइकोबुटानिल (सभी 2 मिलीलीटर / l) पर आधारित कवक कुछ फसलों में कवक के विकास को नियंत्रित करते हैं।
Description:
यह रोग ग्वार की फसल पर हमला करता है, जहां फसल के सड़ने का सही तरीके से पालन नहीं किया जाता है। यह मृदा जनित बीमारी है।
Organic Solution:
एजी, 112 एचजी 2020 और जी 80 जैसी प्रतिरोधी प्रजातियों का उपयोग विल्ट के खिलाफ प्रभावी है। इसलिए, उनका उपयोग जैविक रूप से बीमारी के इलाज के लिए किया जा सकता है।
Chemical Solution:
कार्बेन्डाजिम के उपयोग के बाद कार्बोक्सिन, प्रोपिकोनाज़ोल और मैन्कोज़ेब। अलग-अलग कवक विषाक्त पदार्थों द्वारा कृत्रिम रूप से निष्क्रिय मिट्टी की खुदाई से पता चला है कि कार्बेन्डाजिम 28.42 प्रतिशत विल्ट की घटना के साथ प्रभावी था और अगले प्रभावकारी कवक विषाक्त पदार्थ मैन्कोजेब और मेफेनोक्साम + मैनजैब थे। अकेले कार्बेन्डाजिम (3 ग्राम किलो -1 बीज) और मैन्कोज़ेब और कैप्टान के साथ 1.5 + 1.5 किलो -1 बीज के संयोजन को विल्ट के साथ सबसे अच्छा बीज ड्रेसिंग साबित हुआ।
Description:
मौसम के खुलते ही सोयाबीन, मूंग व उड़द में पीला मोजेेक रोग की सम्भावना है।कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि पीले पड़ रहे पौधों को शुरूआत में ही उखाड़ कर फैंक दें, ताकि बाकी फसल को यलो मोजेक बीमारी से बचाया जा सके।
Organic Solution:
पीला मोजाइक वायरस फैलाने वाली सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए बीज को थायोमिथोक्साम 30 एफ.एस. से 3 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड एफ.एस. 1.25 मिलीलीटर प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
Chemical Solution:
फसल पर सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए बीज को थायोमिथोक्साम 25 डब्ल्यू.जी. का 100 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोल कर/ हे. की दर से छिड़काव करें।
Description:
ये सिकुड़े हुए काले तनों को विकसित करते हैं और अंततः खत्म हो जाते हैं और मर जाते हैं, हालांकि तना कुछ समय बाद तक सीधा रह सकता है। इस प्रकार का डंपिंग मुख्य रूप से बहुत छोटे अंकुरों को प्रभावित करता है और एक समस्या कम हो जाती है क्योंकि वे बड़े हो जाते हैं और उनके तने कठिन हो जाते हैं। डम्पिंग ऑफ़ ज्यादातर इनडोर सीड रेजिंग की बीमारी है। एक अच्छी हवादार, ठंडी ग्रीनहाउस में अपनी रोपाई को बढ़ाना, भिगोना बंद करने से बहुत कम समस्याएं पैदा करेगा।
Organic Solution:
नीम पत्ती निकालने के बाद लहसुन लौंग और अल्लामोंडा पत्ती के अर्क के साथ-साथ बढ़ती हुई वृद्धि विकास पात्रों के साथ भिगोना-बंद रोग की घटना को दबाने के लिए। गमलों में उपचारित बीज को बोने के बाद तीन सब्जियों के बीजों का बीज अंकुरण भी बढ़ जाता है।
Chemical Solution:
एंटी-फंगल उपचार (जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड) |
Description:
रोगज़नक़ बीज-जनित है और प्रारंभिक चरणों में मुख्य रूप से अंकुरित ब्लाइट और कॉलर सड़ांध का कारण बनता है। उगने वाले पौधे फूलों के चरण के बाद भी लक्षण दिखाते हैं। कवक बड़ी संख्या में काले, अनियमित आकार के स्क्लेरोटिया (sclerotia)के लिए गोल पैदा करता है।
Organic Solution:
अंकुर के करीब रोपण से बचा जाना चाहिए। संयंत्र को बनाए रखने के लिए इष्टतम पोषण प्रदान किया जाना चाहिए। जब भी मिट्टी सूख जाए और मिट्टी का तापमान बढ़ जाए तब सिंचाई देनी चाहिए।
Chemical Solution:
ट्राइकोडर्मा के साथ बीजोपचार 4 ग्राम / किग्रा बीज में तैयार किया जाता है। स्थानिक क्षेत्रों में लंबे फसल चक्रण का पालन करना चाहिए। बीजों को कार्बेन्डाजिम या थिरम 2 / किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करें 500 मिलीग्राम / लीटर पर कार्बेन्डाजिम के साथ स्पॉट खाई।

Fenugreek (मेथी) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: मेथी भारत में कहाँ उगाई जाती है?

Ans:

देश के भीतर इसका बीज उत्पादन राजस्थान राज्य में सबसे अधिक है, इसके बाद गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तरांचल का स्थान है। राजस्थान में, जो भारत के कुल उत्पादन का एक महत्वपूर्ण बहुमत है, फसल मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है।

Q3: भारतीय मेथी का उपयोग किस लिए करते हैं?

Ans:

मेथी का उपयोग भारतीय, उत्तरी अफ्रीकी और मध्य पूर्वी व्यंजनों में एक जड़ी बूटी और मसाले दोनों के रूप में किया जाता है। ताजा और सूखे मेथी के पत्तों का उपयोग सॉस, करी, सब्जी व्यंजन और सूप जैसे व्यंजन खत्म करने के लिए किया जा सकता है। नियमित रूप से मेथी की चाय पीने से पाचन स्वास्थ्य में सुधार होता है, रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है और हृदय स्वास्थ्य की रक्षा करता है।

Q5: मेथी के क्या फायदे हैं?

Ans:

उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर, मेथी रक्त शर्करा के स्तर को कम करने, टेस्टोस्टेरोन को बढ़ावा देने और स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए लाभकारी है। मेथी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम कर सकती है, सूजन को कम कर सकती है और भूख को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है, लेकिन इन क्षेत्रों में और अधिक शोध की आवश्यकता है।

Q2: क्या मेथी एक बार की फसल है?

Ans:

मेथी (मेथी) एक वार्षिक जड़ी बूटी है जिसकी खेती मुख्य रूप से बीज के साथ-साथ इसकी पत्तियों (ताजा या सूखे) के लिए की जाती है। खाद्य पदार्थों के स्वाद और पोषक मूल्य को बेहतर बनाने के लिए बीजों का उपयोग मसाले और मसालों के रूप में किया जाता है।

Q4: मेथी की फसल के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है ?

Ans:

मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बालू वाली मिट्टी इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होती है। इसमें कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है। मृदा का पी.एच. मान 6-7 फसल की वृद्धि व विकास के लिए उपयुक्त होता है। उचित जल निकास प्रबन्ध युक्त भारी व कम क्षारीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है|

Q6: मेथी की फसल की कटाई कब की जा सकती है ?

Ans:

सब्जी के तौर पर उपयोग के लिए इस फसल की कटाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद करें। बीज प्राप्त करने के लिए इसकी कटाई बुवाई के 90-100 दिनों के बाद करें। दानों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झड़ने पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें।