सोयाबीन बीज की जीवन क्षमता को बढ़ाने के लिए उन्नत प्रबंधन तकनीकें
सोयाबीन बीज की जीवन क्षमता को बढ़ाने के लिए उन्नत प्रबंधन तकनीकें
Android-app-on-Google-Play

भारत की प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन जो पूरे विश्व में अनेक नामों जैसे की अदभुत फसल, गोल्डन चीन, सोने का दाना, सुनहरी बीन से लोकप्रिय है, लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में ऊगाई जाती है। सोयाबीन में 40% उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन जिसमे सभी प्रकार के आवश्यक एमिनो अम्ल, लवण एवं विटामिन पाये जाते है। प्रोटीन के अतिरिक्त इसमे 18-20 % वसा एवं पशुओं के चारे के लिए लगभग दो-तिहाई प्रोटीन का योगदान देता है ।

व्यावसायिक रुप से भारत में सोयाबीन की खेती की शुरुआत करीब पांच दशक पहले हुई थी और वर्ष 2001 से ही सोयाबीन भारत के तिलहन उत्पादन में प्रथम स्थान अर्जित किये हुए है। भारत में सोयाबीन की खेती के अभूतपूर्व प्रसार के कारण, इसके बीज की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है, परन्तु सोयाबीन के बीज उत्पादन में कई समस्याएं हैं, जैसे सोयाबीन बीज को सबसे कम भंडारण योग्य समूह में वर्गीकृत किया गया है, इसकी अंतर्निहित कम बीज कि जीवन क्षमता के अलावा, सोयाबीन बीज प्रसंस्करण और परिवहन के दौरान यांत्रिक चोट के लिए भी अत्यधिक प्रवण होता है। सोयाबीन का बीज इतना संवेदनशील होता है कि कटाई से पहले ही यह खेत के अपक्षय से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकता है। यह सेभी कारक बीज के अंकुरण और ताकत को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं और कई बार अगली बुआई तक न्यूनतम अंकुरण मानक (70%) को बनाए रखना भी मुश्किल हो जाता है। परिणामस्वरूप बीज दर के साथ साथ खेती की लागत में भी वृद्धि और किसानों की आय मे कमी हो जाती है। कृषि में बीज सबसे मॉलिक घटक है। कृषि की स्थिति किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले बीज की गुणवता से ही निर्धारित होती है। इसलिए बीजो की गुणवत्ता को बनाये रखना अतिआवश्यक हैं। इस लेख में हमने कुछ सुझाव साझे किए है जिससे कुछ हद तक सोयाबीन के बीज की गुणवत्ता को बनाया रखा जा सकता है और यह इस प्रकार है:

किस्मों का चयन
सोयाबीन के बीज की जीवन क्षमता बहुत से कारको पर निर्भर करती है। इसलिये वो किस्म जो जैविक तनाव (खरपतवार कीट कीट और रोग) और अजैविक तनाव (सूखा, गर्मी) प्रतिरोधी हों, का चुनाव करे। बीज का आकार भी सोयाबीन के बीज की जीवन क्षमता में मुख्य भूमिका निभाता है, जितना बड़ा बीज होगा उतनी ही कम बीज की जीवन क्षमता होगी इसलिए ऐसी किस्म जिसका मध्यम बीज आकार हो का चुनाव करे तथा विशेषतौर पर ज्यादा पुराना बीज प्रयोग मे ना ले, क्यूकि एक साल बाद ही सोयाबीन के बीज की 30% अंकुरण में कमी हो जाती है, और अगर ज्यादा पुराना बीज होगा तो इसका अंकुरण 50% से भी कम हो जाएगा, इसलिए नया बीज ही प्रयोग में ले तथा तीन से अधिक मौसमों के लिए बीज का पुनर्चक्रण न करें ।

खेत का चुनाव तथा उर्वरक और सिंचाई में उचित प्रबंधन
सोयाबीन की खेती मुख्यतः पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि जिसकी मध्यम से उच्च उर्वरता हो, में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परन्तु अधिक हल्की रेतीली व बहुत उथली मिट्टी तथा जहां खेत में पानी रुकता हो वहां सोयाबीन ना लें अधिक जुताई से बचें। पोषक तत्वों के आवश्यक स्तर को सही स्रोतों के माध्यम से सही समय और सही जगह पर लागू करें। खेतों की सिंचाई सुबह जल्दी देर शाम या रात में लंबे समय तक शुष्क अवधि के दौरान महत्त्वपूर्ण अवस्थाओं जैसे अंकुर, फूल और फली भरने के दौरान करें। मिट्टी में दरारें पड़ने से पहले सोयाबीन की फसल की सिंचाई करें।

बुवाई कि गहराई
बीज को मुख्यत तीन से चार से.मी कि गहराई पर रखे, इससे अधिक गहराई पर बोने से पौधे के जमावट पर असर पड़ता है।

बीज उपचार
बीज को ट्राइकोडर्माविराइड 5 ग्राम / किलोग्राम बीज की शक्तिशाली कल्चर के साथ ब्रेडीहिजोबियम जैपोनिकम और पीएसबी / पीएसएम दोनों के साथ 5 ग्राम/किलोग्राम बीज पर टीक लगाएं ताकि अंकुर सड़ने से बच सके और अच्छी स्थिति सुनिश्चित हो सके।

कटाई
सोयाबीन की फलिया जब अपना हरा रंग खो कर पीली पड़कर गिरने लगे व परिपक्व फलिया भूरी होने लगे और साथ ही साथ जब बीज कठोर हो जाता है तब फसल कटाई योग्य परिपक्वता तक पहुँचती है, और इस अवस्था में कटाई प्रारंभ करे। फली के टूटने से होने वाले नुकसान से बचने के लिए परिपक्वता के सही चरण में कटाई करें। सोयाबीन में फली टूटने के कारण उपज हानि की सीमा 34 से 100% तक हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि परिपक्वता के बाद कटाई में किस हद तक देरी हुई है। सोयाबीन के बीज में नमी 13% से कम होने पर कटाई के दौरान यांत्रिक क्षति होने की अत्यधिक संभावना होती है। इसलिए बीज की फसल के लिए शुष्कन से बचना चाहिए। फसल की कटाई हाथ से करनी हो तो नमी 17-18% होने पर ही करनी चाहिए। यदि फसल कटाई के दौरान बारिश हो तो बीज को कुछ दिनों के सूखने के बाद जब बीज की नमी 13-15% तक पहुँच जाती है, तो फसल को या तो ट्रैक्टर से या डंडे से पीटना चाहिए। 

गहाई के दौरान क्षति
दो से तीन दिन सुखा कर थ्रेसर से धीमी गति पर गहाई करे। साथ ही साथ इस बात का भी विशेष ध्यान रखे की बहुत अधिक सुखी फसल की गहाई से दना अधिक टूटता है। और यदि उपज का उपयोग अगली बुआई में बीज के लिए किया जाना हो, तो थ्रेशर के 350 से 400 आरपीएम की गति से थ्रेस करें ताकि बीजावारण को कम से कम नुकसान पहुचे । थ्रेसर की गति कम करने के लिए बड़ी पुली भी लगाई जा सकती है। अगर हाथो से गहाई कर रहे है तो आप कम से कम पिटाई करे, क्यूकि जायदा पिटाई से बीज के भ्रूण को क्षति पहुचती है।

संवेष्टन, अंकीकत करना और भंडारण
बीज को 8-9% नमी की मात्रा तक सुखाया जाना चाहिए, अगर इससे ज्यादा नमी बीज में होगी तो तरह तरह के कवक और फफूँदी का सक्रमण हो जाएगा । बीज को ज्यादा भार वाले बैग में नहीं भरना चाहिए मुख्यतः सोयाबीन के बीज को 30-40 किलोग्राम क्षमता के नमी रोधक बैग में पैक किया जाना चाहिए। ज्यादा बड़े बैग मे संवेष्टन करने से बीज के भ्रूण को नुकसान होता है। संवेष्टन के लिए पॉलीलाइन (400 गेज) जूट कैनवास बैग या एचडीपीई बैग सबसे उपयुक्त हैं। कंटेनर, उपकरण, पैकिंग और भंडारण क्षेत्रों को हमेशा साफ सुथरा रखें। इसे ठीक से लेबल और सिला जाना चाहिए। सोयाबीन के बीज उष्ण कटिबंध के उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता की स्थिति में तेजी से खराब होते हैं। इसलिए बीज को अपनी जीवन क्षमता बनाए रखने के लिए विशेष भंडारण स्थितियों की आवश्यकता होती है। एक ठंडा और सूखा कक्षा कमरा की सिफारिश की जाती है। भंडारण कक्ष में तापमान 20-27°C और आपेक्षिक आर्द्रता 50-60% के बीच होना चाहिए। इस तापमान पर भंडारण कीट और कवक की गतिविधि बहुत कम होती है और बीजों को सुरक्षित रूप से 8-9 महीने तक संग्रहीत किया जा सकता है। बीजों के बोरे को चढ़ाते और उतारते समय भी जायदा ऊंचाई से नहीं फेंकना चाहिए अगर ऐसा करते है तो बीज के भ्रूण को क्षति पहुचती है क्यूकि सोयाबीन के बीज में भ्रूण ऊपरी सतह पर ही होता है और वो क्षतिग्रस्त हो जाता है जिससे बीज की जीवन क्षमता में हानि होती है।

मनीषा सैनी, अक्षय तालुकदार, अंबिका राजेंद्रन, एस. के. लाल, सुनील कुमार एवं केंवर पाल सिंह आनुवंशिकी संभाग, भा. कृ. अनु. परिषद- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली