जिप्सम बढ़ाये ऊसर भूमि की उपज, जानिए जिप्सम की उपयोगिता के बारे में
जिप्सम बढ़ाये ऊसर भूमि की उपज, जानिए जिप्सम की उपयोगिता के बारे में
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जिप्सम के उपयोग से तिलहनी, दलहनी और अनाज वाली फसल के उत्पादन की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है। जिप्सम गंधक का सर्वोत्तम और सस्ता स्त्रोत है। यह ऊसर मृदा सुधारक भी है। किसान गंधक रहित उर्वरक डीएपी और यूरिया का उपयोग अधिक मात्रा में कर रहे है। जबकि, गंधक युक्त सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग कम हो रहा है। साथ ही, अधिक उपज देने वाली किस्म द्वारा जमीन से गंधक का अधिक उपयोग किया जाता है। एक ही खेत में हर वर्ष तिलहनी और दलहनी फसल की खेती करने से खेतों में गंधक तत्व की कमी हो रही है। बुवाई से पहले 250 किलो जिप्सम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलाना चाहिए।

क्षारीय भूमि सुधार
जिस मृदा का पीएच मान 8.5 से अधिक और विनियमशिल सोडियम की मात्रा 15 प्रतिशत से अधिक होती है, वह मृदा क्षारीयता की समस्या से ग्रसित होती है। इस प्रकार की मृदा सूखने पर सीमेन्ट की तरह कठोर हो जाती है। साथ ही इसमें दरार पड़ जाती है। क्षारीय मिट्टी में पौधों के समस्त पोषक तत्वों की उपस्थिति के बावजूद मृदा से अच्छी उपज प्राप्त नहीं होती है। जिप्सम के उपयोग से मिट्टी में घुलनशील कैल्शियम की मात्रा बढ़ती है, जो क्षारीय गुण के लिए जिम्मेदार अधिशोषित सोडियम को घोलकर और मृदा कण से हटाकर अपना स्थान बना लेता है। परिणामस्वरूप भूमि का पीएच मान कम कर देता है। साधारणत: भूमि सुधार हेतु 8-10 क्विंटल जिप्सम प्रति हैक्टेयर की दर से काम में ली जाती है। भूमि सुधारक के रूप में जिप्सम का उपयोग करने के लिए निर्धारित मात्रा को मानसून की वर्षा होने से पहले खेत में समान रूप से बिखेर कर जुताई करके अच्छी तरह से 10 से 15 सेन्टीमीटर मिट्टी की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए। खेत में डोलियां बनाकर बड़ी-बड़ी क्यारियां बना देनी चाहिए, ताकि वर्षा का पानी बहकर खेत से बाहर नहीं जा सके। खेत में जिप्सम उपयोग के बाद मानसून की एक अथवा दो अच्छी वर्षा होने के बाद खेत में हरी खाद हेतु ढ़ैंचा फसल की बुवाई कर देनी चाहिए। ढ़ैंचा की बुवाई हेतु 60 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से काम में लेना चाहिए। ढ़ैंचा की बुवाई के 45-50 दिन बाद अथवा फूल आने से पहले मिट्टी पलटने वाले हल अथवा हैरो चला कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इससे प्रति हैक्टेयर 20-25 टन जीवांश का उत्पादन होता है। साथ ही, मृदा का पीएच मान कम होने से क्षारीयता की समस्या से निजात मिल जाते है।

तिलहन फसलों में जिप्सम
मूंगफली, तित, सोयाबीन सरसों, तारामीरा आदि तिलहनी फसल में गंधक के उपयोग से दानों में तेल की मात्रा बढ़ती है। साथ ही, दाने सुडौल और चमकील बनते है। जिसके कारण तिलहनी फसल की पैदावार में 10-15 प्रतिशत बढ़ोतरी होती है।

दलहनी फसलों में जिप्सम
दलहनी फसलों में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जता है। प्रोटीन निर्माण के लिए गंधक अति आवश्यक पोषक तत्व है। इसरो दलहनी फसलों में भी दाने सुडौल बनते है और पैदावार बढ़ती है। यह पौधों की जड़ों में स्थिर राईजोबियम जीवाणुओं की क्रियाशीलता को बढ़ाती है। जिससे पौधे वातावरण में उपस्थित स्वतंत्र नत्रजन का अधिक से अधिक उपयोग कर सकते है।

खाद्यानों में जिप्सम उपयोग
खाद्य फसल में जिप्सम के उपयोग से गन्धक तत्व की आपूर्ति होती है। इससे पौधे की बढ़वार अच्छी होती है। प्रति हैक्टर 250 किलोग्राम जिप्सम का उपयोग करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती हैं।

- डॉ. रतन लाल सोलंकी, केवीके चित्तौड़गढ़