वर्मी कम्पोस्ट की सम्पूर्ण जानकारी, जानिए केंचुआ खाद की विशेषताएं और खाद तैयार करने की विधि के बारे में
वर्मी कम्पोस्ट की सम्पूर्ण जानकारी, जानिए केंचुआ खाद की विशेषताएं और खाद तैयार करने की विधि के बारे में
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केचुएं के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है। उससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश, कैलशियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। ऐसा पाया गया है कि मिट्टी में नत्रजन 7 गुना, फास्फोरस 11 गुना और पोटाश 14 गुना बढ़ता है। केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। हमारे गांवों मे लगभग 75 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट उपलब्ध है जिससे हम उत्तम किस्म की खाद मे परिवर्तन कर सकते है। वर्मीकम्पोस्ट मे 65% कृषि अपशिष्ट एवं 35त्न गोबर का मिश्रण उपयोगी रहता है।

केंचुआ खाद की विशेषताएं
इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है। इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।
इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता हैं।
प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफीट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।
केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।

केंचुएँ के प्रकार
एपीजिक केंचुएं: यह केंचुएँ सतह पर (कम गहराई-1 मीटर) रहते हैं। ये कृषि अपशिष्ट 100% व मृदा 10% खाते है। इनमें आईसीनीया फीटीडा व यूडीलस यूजीनी प्रमुख प्रजातियाँ है।
इंडोजिक केचुएं: यह भूमि में गहरी सुरंग ( 3 मीटर से अधिक) बनाकर मिट्टी भुर-भुरी बनाते हैं। 
डायोजिक केंचुएं: यह केंचुएं 1-3 मीटर गहराई पर रहते हैं।

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि
  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमे से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक हैं।
  • केचुँआ को आधा अपघटित सेन्द्रित पदार्थ खाने को दिया जाता है।
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड को लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें।
  • इस तह पर 6-7 सेंमी. (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछायें। 
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछायें। दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पाऊडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछायें।
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारीयल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे।
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे। केचुँओं को डालने के उपरान्त इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे । अब इसे मोटी टाट् पट्टीं से ढांक दिया जावे।
  • झारे से पट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे। अधिक नमी / गीलापन रहने से हवा अवरूद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केचुएं कार्य नहीं कर पाएंगे और केचुएं मर भी सकते हैं।
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए।
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गयी हो या ढेले बन गये हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिये, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिए।
  • 30 दिन बाद छोटे छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे। 
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछायें और उसे नम करें।
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूड़े-कचरे की तह पर तह बिछाएं। बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहें।
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाए रखें। 
  • 42 दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें।
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है
  • यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है।
  • खाद निकालने तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे। जिससे केचुँए, खाद की निचली सतह में रह जावे ।
  • खाद हाथ से अलग करे। गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें।
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं। इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है।
  • नर्सरी को तेज धूप और वर्षा से बचाने के लिये घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ
  • गोबर खाद की तुलना मे वर्मी कम्पोस्ट मे एक्टीनोमाइसिटीज 8 गूणा अधिक होता है तथा इस खाद से तैयार फसल मे बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता अधिक रहती है।
  • केंचुएँ मृदा की जलशोषण क्षमता मे 20न प्रतिशत तक की वृद्धि करते है व भूमि का कटाव रुकता है एवं पौधो की जल उपलब्धता मे भी वृद्धि होती है।
  • वर्मी कम्पोस्ट मे पेरीट्रोपिक झिल्ली होने के कारण जल वाष्पीकरण मे कमी होती है। अत- सिंचाई की संख्या भी कम होती है।
  • केंचुओ की खाद से खेत मे ह्युमस वृद्धि के कारण वर्षा की बूंदो का आघात सहने की क्षमता साधारण मृदा की अपेक्षा अधिक होती है।
  • केंचुओ की खाद प्रयुक्त खेत मे खरपतवार कम होती है व दीमक भी कम लगती है।