खरीफ सीजन में करें औषधीय गुणों से भरपूर सूरन की खेती, कम लागत में कमाएं ज्यादा मुनाफा, जानिए खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

Suran ki Kheti : सूरन को ओल, जिमीकंद के नाम से भी जाना जाता है। पहले सूरन की खेती घर के आसपास, घर के पीछे, बगीचों में थोड़ा-थोड़ा करके की जाती थी, लेकिन वर्तमान में किसान अपनी बंजर भूमि में सूरन की खेती कर बेहतर कमाई कर सकते हैं, जो किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है और फायदे का सौदा साबित हो सकता है।
सूरन सबसे लोकप्रिय कंद फसलों में से एक है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। इसमें पौष्टिक और औषधीय दोनों गुण होते हैं और आमतौर पर इसे पकी हुई सब्जी के रूप में खाया जाता है। इसकी खेती का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ रहा है। अन्य सब्जियों की तुलना में गर्म तापमान में भी इसकी उत्पादन क्षमता अच्छी होती है। इसके कंद से चिप्स बनाई जाती है साथ ही सब्जियों के लिए तने और पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए सूरन (जिमीकंद) की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है।
इसमें विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1, फोलिक एसिड और फाइबर पाया जाता है। इसके साथ ही सूरन मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और फॉस्फोरस का भी भंडार है। सूरन खाने से शरीर को जरूरी विटामिन और पोषक तत्व की मात्रा मिल जाती है।
ऐसे करें सूरन की बुवाई और खेत की तैयारी
किसान भाई चाहें तो खरीफ सीजन में भी सूरन की खेती कर सकते हैं। अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सूरन की खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। इसे लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए। जब खेत की मिट्टी से नमी निकल जाए तो एक बार फिर रोटावेटर से खेत की जुताई कर लें। फिर अंतिम जुताई से पहले 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गाय का गोबर खेत में डालें और हल चलाकर उसे समतल कर लें। इसकी सफल खेती के लिए 6-8 महीने की अवधि के लिए 30-35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाया जाता है।
सूरन की उन्नत किस्में
जिमीकंद, सूरन या ओल की कई उन्नत किस्में हैं। जो गुणवत्ता, उपज और मौसम के आधार पर तैयार किए जाते हैं। आप कौन सी किस्म चुनना चाहते हैं? इसे अपने क्षेत्र और जलवायु के आधार पर तय करें। सूरन की बेहतरीन किस्में गजेंद्र, एन-15, राजेंद्र ओल और संतरागाछी हैं।
सूरन लगाने का तरीका
सूरन बोने से पहले खेत को कल्टीवेटर से और फिर रोटावेटर से भूरभूरा बना लें और खेत तैयार करने के बाद 2-2 फीट की दूरी पर 30 सेंटीमीटर गहरा, लंबा और चौड़ा गड्ढा खोद लें। इस तरह एक एकड़ में 4 हजार गड्ढे खोदे जाने हैं। गड्ढा खोदने के बाद उसमें 3 किलो अच्छी तरह गोबर की सड़ी खाद, 20 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 10 ग्राम यूरिया, 37.5 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 16 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाकर बीज कंद की बुवाई करें।
ध्यान रहे कि फल से बीजों को तैयार करते समय बीजों का वजन करीब 250 से 500 ग्राम हो. हर कटे हुए बीज में कम से कम दो आंखे होनी चाहिए. जिससे पौधे का अंकुरण ठीक हो सके।
सिंचाई
रोपाई के 90 दिन बाद सिंचाई करनी होगी। सूरन की विशेषता यह है कि पूरे खरीफ मौसम में केवल तीन बार सिंचाई करनी पड़ती है। मई माह के बाद इसमें सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
सूरन की पैदावार प्रति एकड़
बोने के 8 से 9 महीने में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि, बेहतर कीमत पाने के लिए 6 महीने बाद भी कंदों की खुदाई की जा सकती है। अगर आप एक एकड़ में ओल की खेती कर रहे हैं तो आपको 200 क्विंटल तक उपज मिल जाएगी। बाजार में इस समय सूरन 3 से 4 हजार रुपए क्विंटल में उपलब्ध है। अगर आप सूरन को 3,000 रुपये प्रति क्विंटल भी बेचते हैं, तो आप एक एकड़ से 6 लाख रुपये कमा सकते हैं।