Browntop Millets : हरी कंगनी की उन्नत खेती, जानिए हरी कंगनी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी
Browntop Millets : हरी कंगनी की उन्नत खेती, जानिए हरी कंगनी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी
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Browntop Millet Farming Practices : अनाजों के बारे में तो लगभग सभी जानते और खाते भी हैं, लेकिन अनाजों की भी कई किस्में होती हैं, जिनके बारे में लोग आजकल भूल से गए हैं। 'ब्राउनटॉप बाजरा' नामक अनाज की एक किस्म होती है जिसे सकारात्मक अनाज भी माना जाता है। बाजरे की तरह दिखने वाला यह दाना ऊपरी भाग में भूरे रंग का होता है, इसलिए इसे 'ब्राउनटॉप बाजरा' (Browntop Millet) कहा जाता है। हिंदी में इसे छोटी कांगरी और हरी कंगनी के नाम से जाना जाता है। इसे उगाने के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। कर्नाटक के कई क्षेत्रों में पानी के अभाव में किसानों ने प्रयोग के तौड़ पर ब्रॉउनटॉप मिलेट लगाया था। उन्हें इसमें बहुत बढ़िया परिणाम मिला। भारत में इसकी खेती दक्षिण भारत के अलावा उत्तर-प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में की जाती है। तो आइये जानते है हरी कंगनी (Browntop Millet) की खेती के बारे में;

बीज की मात्रा

पनीरी द्वारा बिजाई के लिए 800 ग्राम प्रति एकड़ और सीधी बिजाई के लिए 2.5 से 3 किलो प्रति एकड़ बीज चाहिए।

बिजाई का समय

हरी कंगनी के पत्ते काफी चौड़े होते है और जह बहुत तेजी से वृद्धि करता है इस के पौधे सेट कर बढ़ते हुए हर गांठ से एक नई जड़ निकालते है। 
हरी कंगनी की फसल का कद 2.5 से 3 फुट तक हो जाता है हरी कंगनी को पकने की फसल पकने के लिए 80 से 100 दिन का समय लेती है। हरी कंगनी के दाने का उत्पादन 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होता है और 15-20 क्विंटल चारा मिलता है। हरी कंगनी का बीज बिजाई से पहले 12 घंटे के लिए पानी और कच्चे दूध के मिश्रण में भिगो कर रखें। 1 लीटर पानी में देसी गाय के एक गिलास ताजा दूध (बिना उबला हुआ) मिलाए और इसमें और हरी कंगनी का बीज भिगो कर रखें 10-12 घंटे भिगोने के बाद बीज के ऊपर छानी हुई राख लगाकर उसको सुखा लो और फिर बिजाई करो।

हरी कंगनी की बिजाई का तरीका (Method of sowing Browntop Millet)

एक एकड़ की पनीरी एक मरला (165X165 फुट ) जगह में बीजें जमीन की जुताई करके सुहागा लगाकर समतल कर लें। जमीन ऊँची नीची न हो। अब इसमें 800 ग्राम बीज का दो बार छीटा दें। और तांगली या पंजे के साथ बीज को ऊपर की मिट्टी में मिला दें। अगर संभव हो तो क्यारी की भूसे पराली के साथ मल्चिंग कर दे और पानी लगा दे। 3-4 दिन बाद जब बीज हरा हो। जाए तो शाम के समय भूसे पराली की तह हटा दो। 20-25 दिनों में पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है।

हरी कंगनी फसल को 3 तरीकों से खेत में लगाया जा सकता है:
  1. पलेवा करने के बाद जब जमीन वत्तर आ जाए तो हल चलाकर, सुहागा लगाकर जमीन को समतल कर लें अब 1-1 कनाल की क्यारी बना कर खेत में पानी भर दें। जब खेत पानी सोख लें तब उसमें हरी कंगनी की पनीरी शाम के समय लाइनो में लगाए। लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ फुट और पौधे से पौधे की दूरी 1 फुट रखें। से
  2. रिजर (आलू वाले हल) के साथ खेत में मेड तैयार कर लें। अब खालियों को पानी से भर दें। जब मेड़ों पर अच्छी तरह नमी/सिलाब चढ़ जाए तब 1-1 फुट की दूरी पर मेड़ो पर पौधे लगाए। (एक खाली बंद करके भी पानी लगाया जा सकता है)
  3. बैड मेकर के साथ 2 फुट चौड़ाई वाले बैड तैयार करो। खालियों में पानी लगाओ और शाम के समय पनीरी को 1-1 फुट की दूरी पर खाली के किनारे से 6 इंच बैड के अंदर की तरफ लगाएं। अगर संभव हो तो बैड के ऊपर सुखा भूसे पराली के साथ मल्चिंग करें। सीधी बिजाई के माध्यम से हरी कंगनी की काश्त ढाई से तीन किलो बीज को 12 घंटे दूध और पानी के घोल में भिगो कर राख में अच्छी तरह से मिलाकर सुखाने के बाद अच्छी तरह से सिंचित नमी पूर्ण जमीन में हैपी सीडर या सीड ड्रिल के साथ बिजाई की जा सकती है। लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ से दो फुट रखो। पौधे से पौधा 10 सेंटी मीटर और बीज की गहराई 2-3 सेंटी मीटर रखो।
गुड़ाई

हरी कंगनी में से खरपतवार खत्म करने के लिए त्रिपाली, कसिये या सुरपी के इस्तेमाल से कम से कम 2 गुड़ाई 'करनी जरूरी है।

सिंचाई

मूल अनाजों की काश्त के लिए कोशिश करो की इन्हें कम से कम पानी लगाकर पकाया जाए। बारिश के मौसम को ध्यान में रखकर और मिट्टी की नमी को देखकर इन्हें 1 से 2 सिंचाई की ही जरूरत होती है। सिंचाई करते समय खेत में 200 लीटर प्रति एकड़ गुड़ जल अमृत या वेस्ट डीकॉम्पोसर का घोल छोड़े।

कीट और बिमारी प्रबंधन

हरी कंगनी को आम तौर पर कोई कीट और रोग नही लगता। जितना कम सिंचाई के पानी का उपयोग होगा उतने ही कीट या रोग आने की संभावना भी कम हो जाती है और पौधे की जड़े भी उतनी की मजबूत होती है और फसल गिरती नहीं। कम पानी लगाने से दाना अच्छा पकता है और उसका वजन भी बढ़ता है। छिलका पतला रहता है जिससे प्रति क्वांटिल दाने का भार ज्यादा और छिलके का वजन कम रहता है।

फसल की कटाई

हरी कंगनी की फसल की कटाई के लिए ध्यान रखो कि जब पूरा खेत 20-25 प्रतिशत हरे रंग से पीले रंग में तब्दील हो जाए भाव खेत दूर से देखने पर हल्के पीले रंग का दिखाई देना शुरू हो जाए तब उस समय जमीन के बराबर हरी कंगनी की पूरी फसल काट कर किसी तरपाल पर एक तह के रूप में फैला के रख दें। 
तकरीबन एक हफ्ते के अंदर दाने नाड़ से असर लेकर पूरी तरह पक्क जाएंगे तब इन्हें थ्रेशर की मदद से नाड से अलग किया जा सकता है। इस बात का विशेष ध्यान चाहिए की हरी कंगनी की फसल को खेत में ही पूरी तरह से पकने का इंतजार नहीं करना चाहिए। हल्का रंग बदलने पर ही फसल को काट कर खेत के बाहर निकालकर रख लेना चाहिए अगर ऐसा नहीं किया गया या कटाई में देर हुई तो हरी कंगनी के दाने खेत में ही झड़ने शुरू हो जाएंगे।