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वर्धा (Wardha) भारत के महाराष्ट्र राज्य के वर्धा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह इन्द्र देवता की नगरी के रूप में विख्यात है और इसे इन्द्रपुरी भी कहते हैं।

वर्धा जिले में मसाले (हल्दी आदि) को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया। 

वर्धा इलाके में वायगांव हल्दी का उत्पादन होता है जिसकी हेल्थ और फार्मा सेक्टर में बहुत मांग है। दरअसल, हल्दी से कुरकुमा लोंगा की प्रचलित होम्योपैथिक दवा का निर्माण होता है. दो तरह की हल्दी ज्यादा प्रचलित हैं सलेम और वायगांव।

हल्दी (कुरकुमा लांग कुल-जिंजीवरेसी) एक उष्णकटिबंधीय मसाला है जिसकी खेती इसके कंद हेतु की जाती है। इसका उपयोग मसाला, रंग-रोगन, दवा व सौन्दर्य प्रसाधन के क्षेत्र में होता है। इसके कंद से पीला रंग का पदार्थ- कुर्कुमीन व एक उच्च उड़नशील तैलीय पदार्थ-टर्मेरॉल  का उत्पादन होता है। इसके कंद में उच्च मात्रा में उर्जा (कार्बोहाइड्रेट के रूप में ) व खनिज होते हैं। इसके बिना पाक विद्या अधुरा होता है। इसके उपज पर भारत का एकाधिकार है। हमारे देश का मध्य व दक्षिण का क्षेत्र एवं असम इसके उत्पादन का मुख्य भाग है।

जलवायु
अच्छी बारिश वाले गर्म व आर्द्र क्षेत्र इसके उत्पादन हेतु योग्य होते हैं। इसकी खेती 1200 मीटर उंचाई तक वाले क्षेत्र में सुगमता पूर्वक अच्छी सिंचाई व्यवस्था के साथ की की जा सकती है।

मिट्टी
इसकी अच्छी उपज हेतु दोमट केवाल अथवा काली मिट्टी अच्छी होती है। तथापि कम्पोस्ट देकर कम उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में भी इसकी अच्छी उपज ली जा सकती है। इसके खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी क्षारीय नहीं होनी चाहिए। कंद का सड़न इसकी मुख्य समस्या है। ऐसे क्षेत्र में कम-कम-से दो वर्ष तक फसल विन्यास पद्धति अपनाना चाहिए।