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राजनांदगाँव (Rajnandgaon) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगाँव ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का का मुख्यालय भी है।

राजनांदगांव छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक लोकप्रिय शहर है। यद्यपि शहर अत्यधिक आबादी वाला नहीं है लेकिन स्वतंत्रता पूर्व से शहर क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का एक प्रमुख हिस्सा रहा है। यह शहर कई राजवंशों के शासन में है और मुख्य रूप से लकड़ी के व्यापार के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र अपनी कृषि शक्ति के लिए भी जाना जाता है। कुछ दशकों के भीतर, इस क्षेत्र में कई छोटे मध्यम कृषि आधारित उद्योग खुल गए है। इन उद्योगों ने इस क्षेत्र में युवाओं के लिए बहुत से रोजगार अवसर पैदा किए हैं और अपने जीवन को बदलने में मदद की है।

राजनांदगांव में कृषि और व्यापार
यद्यपि शहर ने इस क्षेत्र में कई उद्योगों के विकास को देखा है लेकिन मुख्य कार्य बल कृषि में लगी हुई है। शहरी आबादी मुख्य रूप से स्वयं नियोजित है या सरकारी फर्म में नियोजित है लेकिन ग्रामीण आबादी अभी भी आजीविका कमाने के लिए डेयरी, मुर्गी और मत्स्य पालन पर निर्भर करती है। क्षेत्र की पर्याप्त जनजातीय जनसंख्या वन आधारित आजीविका सक्रियताओं पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र के जंगलों में जनजातीय जनसंख्या को जीवित रहने के लिए भी समर्थन प्रदान किया जाता है। जनजातीय लोग हर्बल उत्पादों का निर्माण करने वाले उद्योगों के लिए इमली, आमला, महुआ, आम, सीताफल और कुछ औषधीय पौधों की पत्तियों को इकट्ठा करते हैं।

प्रौद्योगिकी और सूचना के सुधार के साथ, क्षेत्र की कृषि में काफी सुधार हुआ है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से चावल, ज्वार, बाजरा, दालें इत्यादि जैसे अनाज पैदा करता है। सिंचाई आवश्यकताओं की उपलब्धता के कारण इस क्षेत्र में किसान आमतौर पर खरीफ सीजन में धान पैदा करते हैं। हालांकि, कठोर ग्रीष्म ऋतु और सूखे की स्थिति के कारण कभी-कभी चावल और धान के कम उत्पादन में कमी होती है।


छत्तीसगढ़ राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है। इसके बस्तर, बीजापुर, बलरामपुर, धमरतरी, दंतेवाड़ा, बिलासपुर, जशपुर, कांकेर, कवरदहा, कोरिया, नारायणपुर, राजनंदगाँव, सरगुजा जैसे जिलों में धान की खेती की जाती है। राज्य में कई किसान साल में दो बार इसकी खेती करते हैं। इन जिलों में हाइब्रिड राइस की ही खेती होती है। ब्लैक राइस की खेती बेहद कम की जाती है। जबकि इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। धान के विपुल उत्पादन के कारण प्रदेश को धान का कटोरा कहा जाता है। धान के अधिक मात्रा में उत्पादन के कारण प्रदेश की जलवायु, भूमि और वर्षा की अनुकूलता है।

काले चावल की किस्में (Black rice varieties)
राज्य में काले चावल की परंपरागत खेती होती रही है। इसकी प्रमुखें किस्में इस प्रकार है- तुलसी घाटी, गुड़मा धान और मरहन धान लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया राज्य में इन किस्मों की पैदावार नाममात्र की होती गई। इस वजह से कृषि विभाग इन पुरानी किस्मों को सहेजना का काम कर रहा है। वह किसानों को बीज के साथ-साथ जैविक खाद और दवाई छिड़कने का स्प्रेयर भी दे रहा है। वहीं किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें परामर्श भी मिलता है।

ऐसे होगा मुनाफा परंपरागत धान की खेती से यहां का किसान दूर होता जा रहा है। वह अधिक मुनाफे के लिए हाइब्रिड धान की खेती कर रहा है। ऐसे में चावल की जो परंपरागत किस्में होती है उसकी अच्छी मांग रहती है और भाव भी अच्छा मिलता है। इसकी बड़ी वजह है कि इन किस्मों को औषधीय गुणों से भरपूर होना। ऐसे में यहां के किसानों के लिए यह कमाई का अच्छा जरिया बन सकता है। अभी इन परंपरागत किस्मों की बेहद कम खेती होती है। बता दें कि राज्य के कांकेर जिले में महज 10 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है। कांकेर जिले के कृषि वैज्ञानिक विश्वेश्वर नेताम का कहना है कि कांकेर जिले में पहली मर्तबा काले चावल की खेती की जा रही है।

जो कि जैविक तरीके की जा रही है। धान की हाइब्रिड किस्म बिना फर्टिलाइजर के पैदा ही नहीं होता लेकिन काले चावल की खेती जैविक तरीके से की जा सकती है। वहीं यह खाने में भी काफी स्वादिष्ट होता है। डाॅ. नेताम का कहना है कि काले चावल की यह किस्म बस्तर जिले की है जिसे पहली बार कांकेर जिले में किया जा रहा है। बता दें कि छत्तीसगढ़ तकरीबन 43 लाख किसान धान की खेती पर निर्भर है। यहां 3.7 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है।

राजनांदगांव जिले में मिनी राईस मिल के माध्यम से धान से चावल तैयार कर अंबागढ़ चौकी विकासखंड के ग्राम तिरपेमेटा, दुआलगुडरा, लाताकोड़ो, जरहाटोला, पेंडलकुही, मक्के, कुसुमकसा, साल्हेकुसुमकसा में कृषक समूह जैविक धान को पौष्टिक चावल में बदल रहे हैं। इनका विक्रय कर किसान समूह को आर्थिक रूप से सशक्त बना रहे हैं और कृषि उद्यमिता को बढ़ावा दे रहे हैं। शासन की परंपरागत कृषि योजना से किसानों के जीवन में बदलाव आया है।