पुतिन Vs मोदी: जहां भी जाते हैं दोनों, असर छोड़ आते हैं अपना

पुतिन Vs मोदी: जहां भी जाते हैं दोनों, असर छोड़ आते हैं अपना
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Scheme Jul 20, 2015
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन अपने असाधारण कामों से खबरों में रहने की कला जानते हैं। दोनों जहां महत्वाकांक्षा, स्फूर्ति, फैशन और लोकप्रियता के पैमाने पर समान माने जाते हैं, वहीं सोशल मीडिया, शौक और सोच के मामले में अलग-अलग। लेकिन यह जरूर है कि इनकी कार्यशैली और अलग अंदाज इनके जीवन में झांकने को मजबूर करता है।
पुतिन का माइंड सेट
यह जून, 2005 की बात है। व्लादीमिर पुतिन बिजनेस लीडर्स की एक मीटिंग में थे। इस दौरान उन्होंने देखा कि क्राफ्ट ग्रुप के चेयरमैन रॉबर्ट क्राफ्ट हीरे से जड़ी अंगूठी पहने हैं। पुतिन ने अंगूठी मांगकर अपने हाथ में पहन ली। इसके बाद उसे अपनी जेब में रखा और रॉबर्ट से कहा "मैं इस अंगूठी के लिए किसी की जान भी ले सकता हूं।' पुतिन अंगूठी लेकर अपने गार्ड्स के साथ वहां से निकल गए। यदि क्राफ्ट के साथ घटे इस किस्से को सच मानें तो पुतिन एक अतिमहत्वाकांक्षी और आक्रामक माइंड सेट वाले इंसान हैं। वे अपनी बात को इतनी दमदारी से रखते हैं कि दूर-दूर तक कमजोर पुतिन नजर नहीं आता।
मोदी का माइंड सेट
एक अक्टूबर, 2001। मोदी नई दिल्ली में अपने एक पत्रकार मित्र की अंत्येष्टि में थे। तभी उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का फोन आया। इसके बाद दोनों मिले और मोदी को मुख्यमंत्री के तौर पर गुजरात की कमान सौंपी गई। साथ ही अगले विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी दी गई, जिसके लिए एक साल से भी कम वक्त बचा था। ऐसी स्थिति की तुलना मोदी ने उस क्रिकेट बैट्समैन से की, जिसे कम ओवर में अधिक रन बनाने हैं। उन्होंने हर माह को ओवर की तरह औसत काम में बांट दिया। मोदी अपनी रणनीति गोपनीय रखते हैं और उसमें अपने मैनेजमेंट वाले माइंडसेट के कारण सफल हो जाते हैं।

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