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रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध दुर्ग है। इसे छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था और 1674 में इसे अपनी राजधानी बनाया।

रायगढ़ स्थित शिवाजी की प्रतिमा
रायगड पश्चिमी भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है। यह मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के ठीक दक्षिण में महाराष्ट्र में स्थित है। यह कोंकण समुद्रतटीय मैदान का हिस्सा है, इसका क्षेत्र लहरदार और आड़ी-तिरछी पहाड़ियों वाला है, जो पश्चिमी घाट (पूर्व) की सह्याद्रि पहाड़ियों की खड़ी ढलुआ कगारों से अरब सागर (पश्चिम) के ऊँचे किनारों तक पहुँचता है।

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में समुद्री उत्पाद (मछली, झींगा आदि) को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया। 

भारत में अभी तक झींगा उत्पादन का कार्य प्राकृतिक रूप से समुद्र के खारे पानी से किया जाता था, लेकिन कृषि में हुए तकनीकी विकास और अनुसंधान के चलते झींगा का सफल उत्पादन मीठे पानी में भी सम्भव हो चला है। देश में लगभग 4 मिलियन हेक्टेयर मीठे जल क्षेत्र के रूप में जलाशय, पोखर, तालाब आदि उपलब्ध हैं। इन जल क्षेत्रों का उपयोग झींगा पालन के लिए बखूबी किया जा सकता है। झींगा पालन का कार्य कृषि और पशुपालन के साथ सहायक व्यवसाय के रूप में किया जा सकता है। इस व्यवसाय से ग्रामीणों को छोटे से जल क्षेत्र से अच्छी खासी कमाई हो जाती है। खेती संग इस व्यवसाय को अपनाकर खेती को और लाभकारी बनाया जा सकता है।

वर्तमान में देश में झींगा पालन एक बहुत तेजी से बढ़ने वाले व्यवसाय के रूप में उभरा है। पिछले दो दशकों में मत्स्य पालन के साथ-साथ झींगा पालन व्यवसाय प्रतिवर्ष 6 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। आज घरेलू बाजार के साथ विदेशी बाजार में झींगा की काफी मांग बढ़ी है। हमारे देश में झींगा निर्यात की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। व्यावसायिक रूप से झींगा पालन के लिए निम्नवत तकनीकी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।

भारत के पश्चिमी तट पर बसा राज्य महाराष्ट्र मत्स्य सम्पदा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसकी 720 किमी लम्बी तट-रेखा एवं 1,11,512 वर्ग किमी का महाद्वीपीय शेल्फ (कॉन्टिनेंटल शेल्फ), मात्स्यिकी संसाधनों का प्रचुर भंडार है। समुद्री मात्स्यिकी के दृष्टिकोण से इस तट का परम्परा से चला आ रहा अपना से इतिहास है। चूंकि समुद्री मत्स्योत्पादन में यह तट देश में दूसरे स्थान पर तथा झींगा उत्पादन में प्रथम स्थान पर है, इसलिए राष्ट्रीय दृष्टिकोण से इस तट का बडा महत्व है ।

सन् 1992-93 के आंकड़ों के अध्ययन से यह स्पष्टतः देखने में आता है कि मत्स्योत्पादन में यह तट 4 लाख टन की सीमा को पार कर गया है जो कि देश के समग्र समुद्री मत्स्योत्पादन का 18 प्रतिशत है। इस राज्य के तटवर्ती जिलों एवं अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) में मछलियों की 400 से अधिक, झींगों की 27, केकड़ों की 54, लॉब्स्टर की 4, तथा 'मोलस्कों' की कई प्रजातियां पाई जाती हैं । इन प्रजातियों में बाम्बे डक, रीवन फिश, सार्डीन, मैक्रेल, झींगा, एकोवी, कैटफिश, तारली, सीअरकिस, क्रोकर, घोल आदि प्रमुख हैं, महाराष्ट्र राज्य के तटों की अधिकतम मत्स्योत्पादन क्षमता 45 लाख टन आंकी गयी है । इसका अर्थ यह हुआ कि मत्स्योत्पादन का स्तर महाराष्ट्र में लगभग अधिकतम सीमा तक पहुंच चुका है। ऐसी स्थिति में विकल्प के रूप में महाराष्ट्र में जलकृषि को बढ़ावा देना अति आवश्यक है । इस लेख में महाराष्ट्र की समुद्री मात्स्यिकी सम्पदा की वर्तमान स्थिति की चर्चा की गई है तथा भविष्य के लिए विकास के प्रमुख पहलुओं पर समीक्षा करने का प्रयास किया गया है ।

महाराष्ट्र का सागर तट
भारत के 9 समुद्री राज्यों में से महाराष्ट्र भी एक राज्य है। महाराष्ट्र राज्य के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात है कि इसकी अवस्थिति सागर तट पर है । इस राज्य के सागर तट पर 5 जिले हैं, ठाणे, बम्बई (ग्रेटर बम्बई सहित जो अभी अलग जिला है), रायगढ़, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग। इन सभी जिलों को सम्मिलित रूप से 'कोंकण' प्रदेश कहा जाता है। देश के अनेक संस्थानों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों एवं अध्ययनों द्वारा यह जानकारी मिली है कि इस तट के समुद्र में अनन्य आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की मछलियों की प्रचुरता है । अतः इस सागर तट पर मत्स्यन की पारम्परिक पद्धति के साथ-साथ अगर मत्स्यन के आधुनिक तरीके भी अपनाए जाएं तो इससे इस क्षेत्र के मत्स्योत्पादन को काफी बढ़ाया जा सकता है ।