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रायबरेली ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय रायबरेली है।

रायबरेली जनपद का गठन 1858 में अंग्रेज़ी सरकार ने किया था। मान्यता है कि इसकी स्थापना “भर” वंश ने की थी तथा ये “भरौली” अथवा “बरौली” के नाम से जाना जाता था जो कि कालांतर में बरेली हो गया। उप्सर्ग “राय” के बारे में कहा जाता है कि ये “राही” का अपभ्रंश है , जो कि एक ग्राम है और यहाँ से 5 किमी दूर स्थित है। ये भी मान्यता है कि उप्सर्ग राय, यहाँ पर बसे कायस्थ जातियों के समूह को लक्षित करता है जो नगर पर काफी समय तक शासनरत रहे।
भौगोलिक कालक्रमानुसार यह जनपद जनपद गंगा के मैदान में स्थित है जिसकी पुष्टि यहाँ की मिट्टी द्वारा भी होती है। यहाँ पाये जाने वाले खनिजों में रेह और काली मिट्टी प्रमुख है। यहा पर लगभग 90 ईंट भठ्ठे हैं जो ईंट उत्पादन में संलिप्त हैं। रायबरेली जनपद में औद्योगिक कार्यों हेतु कोई खनिज उपलब्ध नहीं है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

आंवला को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में आंवला के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

आंवला एक मध्यम कद का पेड़ है, जिस की ऊंचाई 20-30 फुट तक होती है। इस की टहनियां मुलायम होती हैं पेड़ का हर हिस्सा फल, लकड़ी, पत्ती, छाल वगैरह कई कामों में इस्तेमाल होता है।
कृषि बागवानी तकनीक में आंवला बहुत फायदेमंद फसल है। खेत के बीच में इसे लगा कर साथ में अन्य फसलों की खेती की जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, जौनपुर, रायबरेली, वाराणसी व सुल्तानपुर जिलों में आंवले की कारोबारी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान के सूखे इलाकों में भी आंवले की खेती की जाने लगी है।

मिट्टी और जलवायु:
यह ठंडे वातावरण में 1 से ले कर गरमी में 49 डिगरी सेंटीग्रेड तक में उग सकता है। आंवले को औसतन 7 सौ में 15 सौ मिलीमीटर बारिश की जरूरत होती है। यह 13 सौ मीटर ऊंचाई तक में भी होताा है। नमी वाले इलाकों में आंवले की पैदावार अच्छी होती है, लेकिन यह सूखे इलाके में भी अच्छी पैदावार देता है।

पौधे तैयार करना:
अच्छी क्वालिटी वाले पेड़ों की कम या कलिकायन लगा कर अच्छी किस्म तैयार की जा सकती है। पेड़ के बीज इकट्ठे कर उस से भी पौधे तैयार किए जा सकते हैं।

कृषि वानिकी:
इस तकनीक में आंवले के कलमी पौधों को 8×8 मीटर के अंतर पर 60×60 सेंटीमीटर आकार के गड्ढों में लगाना चाहिए। गड्ढों में 15-20 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिलाएं और कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक का इस्तेमाल करें।