नोडल एजेंसी का पहला एमओयू इसरो के जोधपुर सेंटर से होगा। सेंटर के पास इटली की मशीन है जो 200 मीटर गहराई में मौजूद पानी की उपलब्धता की सेटेलाइट इमेज निकाल सकती है। इससे जीपीआर सर्वे किया जाएगा। इसकी 3डी इमेज नदी की लंबाई-चौड़ाई व गहराई बताएगी।
दूसरा एमओयू एनआईएस रुड़की से होगा, जो डीप ड्रिलिंग से निकले पानी की कार्बन डेटिंग कर यह बताएगा कि पानी का सैंपल सरस्वती के 3500 से 5000 साल पहले का है या नहीं?
रिसर्च लैब बताएगी नदी की मिट्टी कहां से आई
तीसरा एमओयू फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री, अहमदाबाद से होगा। ये ड्रिलिंग से निकली कोर की सेडिमेंट डेटिंग करेगा। सैंंपल का मिलान सरस्वती के उद्गम स्थल मानसरोवर के बंदर पूंछ की सेडिमेंट से होगा। इससे तय होगा यह सरस्वती नदी के ही सेडिमेंट हैं।
खोज का आधार : 10 साल का शोध
रीजनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, स्टेट व सेंट्रल ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंट र समेत कई एजेंसियों ने वर्ष 1994 से 2003 तक सरस्वती नदी की मौजूदगी पर शोध किया। राजस्थान में 24 जगह डीप ड्रिलिंग हुई और जो पानी के सैंपल मिले, कार्बन डेटिंग में वे हजारों साल पहले के माने गए।
शोध के मुताबिक घग्घर नदी भी सरस्वती नदी का अंश है। इसमें बाढ़ से करीब 80 करोड़ क्यूबिक पानी व्यर्थ ही पाकिस्तान चला जाता है। ऊपर से सरकार को बाढ़ के लिए करोड़ों रुपए पाकिस्तान को मुआवजा देना पड़ता है। यह दोनों बचेंगे।
श्रीगंगानगर से हनुमानगढ़, जैसलमेर, बाड़मेर तक एक्सप्लोरेशन होगा। ट्यूबवेल लगेंगे। इससे ग्राउंड वाटर रिचार्ज, सिंचाई और पीने का पानी मिलेगा। धार्मिक भावनाओं को भी बल देगा। कई धार्मिक पर्यटन स्थल बन सकेंगे।
3 फायदे होंगे इस खोज के
हरियाणा की तरह राजस्थान में खोज होगी। डीपीआर पर केंद्र सरकार सहमत है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से बात हो चुकी है, पैसा जल्दी मिल जाएगा।
किरण माहेश्वरी, जलदाय मंत्री, राजस्थान
सरस्वती नदी का मिलना एक बड़ी खोज है। मैं भी केंद्रीय मंत्री उमा भारतीय से बात कर जल्द से जल्द फंड उपलब्ध कराने की कोशिश करूंगा।