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नलबाड़ी जिला भारत के असम राज्य का एक ज़िला है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

चावल (नरम और चिपचिपा चावल) आधारित उत्पाद (पिठा, फूला हुआ चावल, परतदार चावल) को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में चावल (नरम और चिपचिपा चावल) आधारित उत्पाद (पिठा, फूला हुआ चावल, परतदार चावल) ​के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में चावल की एक ऐसी अनोखी किस्म पायी जाती है, जिसे खाने के लिए पकाने की भी जरुरत नहीं है। अब असम के चावल की इस खास किस्म को जीआई (जियॉग्राफिकल इंडिकेशंस) टैग मिल गया है। चावल की इस खास किस्म को ‘बोका चाउल’ या ‘असमिया मुलायम चावल’ कहा जाता है, जिसका बॉटेनिकल नाम ‘ओरीजा सातिवा’ है। अब जीआई टैग मिलने के बाद चावल की इस किस्म पर असम राज्य का कानूनी अधिकार हो गया है। बोका चाउल या ओरीजा सातिवा की खेती असम के नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरुप, धुबरी, कोकराझर और दररंग जिलों में की जाती है। उपज के समय की बात करें तो यह सर्दियों का चावल है, जिसे जून के तीसरे या चौथे हफ्ते में बोया जाता है।

बोका चाउल (चावल) या असमिया मुलायम चावल (ओरीजा सातिवा), असम की ऐसी प्राकृतिक उपज है, जिसके बारे में सुनकर लोग अक्‍सर चौंक जाते हैं। इस चावल के प्रकार को हाल ही जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशंस) टैग के साथ पंजीकृत किया गया है। जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जिनकी उत्‍पत्त‍ि किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में होती है। देश में मुगा सिल्‍क, जोहा राइस और तेजपुर लीची के बाद यह एकमात्र ऐसी उपज है, जिसे विशेष गुण और प्रतिष्ठा के कारण यह टैग मिला है।

इस बोका चाउल (चावल) की खेती असम के नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरूप, धुबरी, कोकराझर और दररंग जिलों में की जाती है। यह सर्दियों का चावल है, जिसे जून के तीसरे या चौथे हफ्ते से बोया जाता है। दिलचस्‍प है कि यह फसल की कोई नई प्रजाति नहीं है। इस चावल का इतिहास 17वीं सदी से जुड़ा है। उस जमाने में मुगल सेना से लड़ने वाले अहोम सैनिकों का यह मुख्य राशन हुआ करता था।

बोका चौल की खेती करना बोहोत आसान है। इसे किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरको अथवा खाद की आवश्यकता नहीं होती है।

इसके अलावा इस धान की प्रजाति में किट लगने की संभावना भी बोहोत कम होती है। जिसके कारण इसमें कीटनाशको के छिड़काव की भी आवश्यकता नहीं होती है।

धान की इस प्रजाति मैं पोषक तत्व प्रचुर मात्रा मैं पाए जाते है। जिस कारण इसे दुनिया भर मैं अपनाया जा रहा है।

इस किस्म की खेती करने के लिए सभी आवश्यक जानकारी निचे दी गई है:
1. बोका चाउल (चावल) की बुवाई (Sowing Time)
आमतौर पर जून के तीसरे से चौथे सप्ताह में बोया जाता है और दिसंबर में काटा जाता है।
2. बीज दर
बोका धान की बुवाई के लिए 5-6 किलो/बीघा उपयुक्त है।
3. खेती के लिए मिट्टी (Soil)
दोमट से भारी मिट्टी (मध्यम से निम्न भूमि)।
4. जुताई की संख्या (Number of tillage)
5-6
5. रासायनिक या जैविक खाद का उपयोग (The Use of Chemical or Organic Fertilizers)
इसे उगाने के लिए किसी प्रकार के रासायनिक उर्वरक या जैविक खाद की आवश्यकता नहीं होती है। परन्तु यदि आवश्य हो तो गोबर की खाद का उपयोग किया जा सकता है।
6. प्रत्यारोपण आयु (Transplanting Age)
सामान्य रोपण(Normal Transplanting) -30-35 दिन ।
देर से रोपण (Late Transplanting) -40-45 दिन।
7. फसल-अंतरण (Spacing)
सामान्य रोपण (Normal Planting) : 25 x 20 सेमी।
देर से रोपण (Late Planting) : 20 x 20 सेमी।
8. कटाई अवधि (Harvesting Time)
नवंबर से दिसंबर।
9. कटाई के तरीके(Methods of Harvesting)
परिपक्व धान की कटाई सिकल की सहायता से हाथ से की जाती है। पुष्पगुच्छ (Inflorescence) युक्त पौधे को लगभग 1.5 फीट की लंबाई में काटकर एक बंडल में बांध दिया जाता है।
फिर बंडलों को किसान के घर ले जाया जाता है और थ्रेसिंग तक घर के परिसर में रखा जाता है।
10. भंडारण (Storage)
कटाई के बाद धान को बैल या पावर टिलर से पिरोया जाता है। फिर अनाज को 2-3 घंटे के लिए सुखाया जाता है।