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लातूर ज़िला भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय लातूर है।

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के अंतर्गत जिले में एक जिला एक उत्पाद टमाटर फसल का चयन किया गया है। योजना के अंतर्गत जिले को पॉच टमाटर फसल की खाद्य प्रसंस्करण इकाई (सूक्ष्म खाद्य उद्यम) के लिए लक्ष्य प्राप्त हुए हैं। 
जिले के ऐसे टमाटर उत्पादक किसान, स्व-सहायता समूह, एफपीओ एवं सहकारी समितियां जो ओडीओपी टमाटर आधारित इकाई लगाना चाहती हैं, उनके सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को प्रति उद्योग पात्र परियोजना लागत की 35 प्रतिशत की टर से क्रेडिट लिंक्ड पूंजी सब्सिडी अधिकतम 10 लाख रूपए दी जाएगी। इसमें लाभार्थी का योगदान न्यूनतम 10 प्रतिशत और शेष राशि बैंक ऋण से होना आवश्यक है। नए उद्यम, निजी या समूहों के केवल ओडीओपी उत्पादों को ही सहायता दी जाएगी।

टमाटर महाराष्ट्र में किसानों की प्रमुख बागवानी फसल है। वे तीन बार इसकी फसल लेते हैं। महाराष्ट्र में लातूर, नासिक, पुणे, सतारा, अहमदनगर, नागपुर, सांगली जिलों में इसकी सबसे अधिक पैदावार होती हैं। आहार में टमाटर का महत्व अद्वितीय है क्योंकि इनमें बड़ी मात्रा में पौष्टिक तत्व होते हैं। टमाटर विटामिन ए, बी और सी के साथ-साथ चूना, आयरन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. कृषि विभाग के अनुसार महाराष्ट्र में टमाटर की खेती का क्षेत्रफल लगभग 29,190 हेक्टेयर है।

टमाटर के कच्चे या लाल रसीले फलों का प्रयोग सब्जियों या सलाद के लिए किया जाता है.साथ ही टमाटर के पके फलों से सूप, अचार, सॉस, कैचप, जैम, जूस आदि भी बनाए जा सकते हैं. इससे टमाटर का औद्योगिक महत्व बढ़ गया है।

टमाटर की खेती के लिए सही मौसम
टमाटर एक उष्णकटिबंधीय फसल है, यह पूरे वर्ष महाराष्ट्र में उगाया जाता है। तापमान में अत्यधिक वृद्धि टमाटर के पौधे की वृद्धि को अवरूद्ध कर देती है। तापमान में उतार-चढ़ाव का फलने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पौधों की वृद्धि 13 से 38 डिग्री सेल्सियस पर अच्छी होती है. फूल और फल अच्छे लगते हैं। रात का तापमान 18 से 20 सेल्सियस के बीच रखा जाए तो टमाटर फल  के लिए अच्छा  होता है।

टमाटर की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए भूमि?
टमाटर की खेती के लिए मध्यम से भारी मिट्टी उपयुक्त होती है। फल हल्की मिट्टी में जल्दी पक जाते हैं, पत्तियों की निकासी अच्छी होती है और फसल की वृद्धि अच्छी होती है। लेकिन ऐसी मिट्टी को जैविक खाद की बहुत अधिक आपूर्ति और बार-बार पानी देने की आवश्यकता होती है।