जशपुर ज़िला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय जशपुर है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

चाय को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में चाय के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।


छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में प्रयोग के तौर पर आरंभ की गई चाय की खेती अब क्षेत्र की पहचान बनेगी। जशपुर के सारुडीह चाय बागान के अनुरूप सरगुजा के मैनपाट में भी चाय के बागान विकसित होंगे। जशपुर और सरगुजा जिले के पाठ क्षेत्र चाय की खेती के लिए अनुकूल पाए गए हैं। कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा जशपुर और सरगुजा जिले के बाद बलरामपुर जिले के सामरी पाठ क्षेत्र में भी चाय की खेती की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। यह प्रयोग पूरी तरह से सफल होने पर उत्तरी छत्तीसगढ़ के बहुत संख्या किसानों को आर्थिक समृद्धि का सशक्त माध्यम मिल सकेगा,इसके लिए राज्य सरकार की ओर से भी विशेष पहल की जा रही है।

जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र की जलवायु चाय की खेती के लिए अनुकूल है। मध्य भारत में जशपुर जिला ही ऐसा है जहां पर चाय की सफल खेती की जा रही है। शासन के जिला खनिज न्यास मद योजना, वन विभाग के सयुक्त वन प्रबंधन सुदृढ़ीकरण, डेयरी विकास योजना एवं मनरेगा योजना से चाय खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। शासन के सहयोग से लगभग 50 कृषकों के 80 एकड़ कृषि भूमि पर चाय की खेती का कार्य प्रगति पर है। 
मैनपाट के 30 प्रगतिशील किसानों को साथ लेकर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक जशपुर जिले के सारुडीह स्थित चाय बागान पहुंचे यहां वन विभाग के अधिकारियों व चाय की खेती में लगी,स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने चाय की खेती से बदली आर्थिक स्थिति को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। चाय की खेती आरंभ करने के दौरान सामने आई कठिनाइयों के बाद इसके बेहतर उत्पादन की तकनीक से मैनपाट के प्रगतिशील किसानों को अवगत कराया। चाय की खेती के लिए मौसम की परिस्थिति, उन्नत बीज, उसके रोग उपचार के अलावा चाय की खेती के लिए भूमि का चयन, सिंचाई प्रबंधन, पत्तियों की कटाई, चायपत्ती बनाने के साथ पैकेजिंग और मार्केटिंग तक की गतिविधियों से अवगत होकर मैनपाट के प्रगतिशील किसानों का दल वापस लौट आया है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जशपुर के जिस क्षेत्र में चाय की खेती की जा रही है वैसा ही मौसम मैनपाट के पाठ क्षेत्रों का भी है, इसलिए मैनपाट में भी चाय की खेती निश्चित रूप से सफल होगी। पांच साल पहले प्रयोग के तौर पर जशपुर में चाय की खेती शुरू की गई थी। अब दायरा बढ़ता जा रहा है। पूरे नार्थ छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाकों में चाय के बागान विकसित होने से इसकी अलग पहचान स्थापित होगी। सरगुजा के मैनपाट में नए बागान बड़े भूभाग पर स्थापित किए जाने की योजना तैयार की गई है। यहां के एग्रीकल्चर रिसर्च सेंटर ने भी पूरे उत्तर छत्तीसगढ़ की जलवायुु को चाय की खेती के अनुकूल पाया है।

जशपुर जिले के ग्राम सारूडीह का चाय बागान पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इस बागान को देखने के लिए पर्यटक पहुंच रहे हैं। मात्र दस रुपए की फीस में चाय के बागान का अद्भुत नजारा उन्हें दार्जिलिंग, ऊंटी और असम में होने का अहसास कराता है।

सारूडीह का चाय बागान पर्वत और जंगल से लगा हुआ है। अनुपयोगी जमीन में बागान बन जाने से आस पास न सिर्फ हरियाली है, पर्यटन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी सारूडीह और जशपुर की पहचान बढ़ रही है। चाय के बागान से पानी और मृदा का संरक्षण हुआ। 

बागान में चाय के पौधों को धूप से बचाने लगाए गए शेड ट्री को समय-समय पर काटा जाता है, जिससे जलाऊ लकड़ी भी गांव वालों को आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यहां बागान के पौधों के बीच में मसाला की खेती को भी आजमाया जा रहा है। सफलता मिली तो आने वाले दिनों में मसाला उत्पादन में भी जशपुर जिले का नाम होगा। 

चाय प्रसंस्करण यूनिट में मशीन संचालन के लिए दार्जिलिंग क्षेत्र के बीरबहादुर सुब्बा को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सुब्बा 40 साल तक चाय उत्पादन के क्षेत्र में काम कर चुके है और कंपनी से रिटायर्ड है। अनुभवी होने से सुब्बा के सहयोग से यूनिट संचालन में आसानी हो रही है। वे युवाओं को मशीन संचालन का प्रशिक्षण दे रहे हैं। 

चाय प्रसंस्करण यूनिट में चाय उत्पादन शुरू हो गया है। हालांकि अभी एक लिमिट में चायपत्ती का उत्पादन हो रहा है, पर आने वाले समय में यहां से उत्पादित चाय को पैकेट में भरने और उसके विपणन के लिए और लोगों को काम देना पड़ेगा। 

पर्वतीय प्रदेशों के शिमला, दार्जिलिंग, ऊंटी, असम, मेघालय सहित अन्य राज्यों की चाय बागानों की तरह जशपुर के सारूडीह का चाय बागान पर्वत व जंगल से लगा हुआ है। यह 20 एकड़ क्षेत्र में फैला है। चाय प्रसंस्करण केंद्र लगने से पहले यहां समूह की महिलाओं द्वारा गर्म भट्ठे के माध्यम से चाय तैयार किया जाता था।