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जालोर जिले में इसबगोल को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया।

ईसबगोल फसल की उपज विश्व की करीब पचास फीसदी उपज अकेले राजस्थान में होती है। जिसमें वर्तमान में जालोर जिला दूसरा बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। वहीं गुजरात राज्य में विश्व का करीब 30 फीसदी ईसबगोल उत्पादित होता है। यानी जालोर जिला ईसबगोल उत्पादन के लिहाज से विश्व में अहम योगदान रखता है।

ईसबगोल मूल रूप से औषधि फसल है, पेट की बीमारियों यथा अल्सर, आंव, पेचिश, दस्त तथा कब्ज आदि में इसबगोल का प्रयोग आयुर्वेद औषधि के रूप में अत्यन्त प्राचीन काल से होता आ रहा है। ठण्डे पानी, गरम पानी, दूध, दही व छाछ इन सबके साथ इसका अलग-अलग प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है। इसकी भूसी और बीजों का चूर्ण दोनों ही औषधि के रूप में उपयोग लिए जाते है। एलोपैथिक चिकित्सा में कैप्सूल के खोल बनाने में भी इसबगोल का प्रयोग किया जाता है। आजकल यह नींबू, अनानास, नारंगी आदि कई स्वादों तथा सुगन्धों के साथ बाजार में उपलब्ध है।

इसबगोल का पौधा मुश्किल से छह-सात इंच लम्बा होता है। जिस पर एक-डेढ़ इंच की बाली लगती है. इसमें से गहरे कत्थाई बीज निकलते है। जिनको कुचलने पर सफेद भूसी प्राप्त होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह भूसी ही औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है. इसबगोल के नियमित सेवन से रक्त में वसा की मात्रा घटती है। मोटापे और हृदय रोगों से बचाव में इसका प्रयोग लाभकारी होता है।

90 प्रतिशत बेचान गुजरात की मंडियों में होता है इसबगोल। जालोर जिले में इसबगोल की खेती प्रमुखता से की जाती है, यह रबी की फसल है।