product_image


गोरखपुर, गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। 

गोरखपुर उत्तर प्रदेश के प्रमुख एवं बड़े जिलों में से एक है, जो गोरखपुर मंडल के अंतर्गत आता है एवं गोरखपुर शहर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। गोरखपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में आता है, जो भारत एवं नेपाल की सीमा से नजदीक है। यह जिला राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है एवं देवरिया जिले से सटा हुआ है एवं आजमगढ़ जिले की दक्षिणी सीमा से भी जुड़ा हुआ है। गोरखपुर जिला पश्चिम दिशा में बस्ती, पूर्वी दिशा में देवरिया एवं छोटी गंडक नदी एवं दक्षिण दिशा में झरना नाले की सीमा से जुड़ा हुआ है। इसकी उत्तरी दिशा में नेपाल देश स्थित है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

चावल (काला नमक वी.आर.) को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को चावल (काला नमक वी.आर.) के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

कालानमक चावल, ये चावल की एक खास किस्म का नाम है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में उपजाया जाता है। इसके ऊपर की भूसी काले रंग की होती है और साथ में नमक प्रत्यय क्यों जोड़ा यह तो हमारे पूर्वज बताने के लिए हैं नहीं। बहरहाल, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बेहद सुगन्धित इस चावल की खेती 600 ई० पू० से होती चली आ रही है, यानी कि भगवान बुद्ध के काल से या शायद उससे भी पहले। इसे बुद्ध चावल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि लोगों का ऐसा विश्वास है कि जब भगवान बुद्ध ने ‘ज्ञान बोध’ की प्राप्ति के बाद अपने छह वर्ष के तप का त्याग किया, उस समय सुजाता नामक एक ग्वालिन ने उन्हें इन्हीं चावलों की बनी खीर खिलाई थी।

कालानमक चावल की किस्मों की उच्च श्रेणी में आता है, और पूर्वी उत्तरप्रदेश में, नेपाल की सीमा से जुड़े हिमालय की तराई में बसे क्षेत्रों में बहुतायत से उगता है। ये क्षेत्र हैं, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, संत कबीरनगर, बाराबंकी, बलरामपुर, बहराइच और गोंडा। यह चावल, उत्तरप्रदेश के सुगंधित काले मोती के नाम से भी मशहूर है।

कालानमक चावल अपने औषधीय और रोग निवारक गुणों के लिए भी जाना जाता है। यह एंटी आक्सिडेंट से भरपूर है और इसमें उच्च एंथोसायनिन तत्त्व होता है जो हृदय रोग की रोकथाम में मदद करता है और त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार करता है। चूंकि यह चावल आयरन और जिंक से भरपूर होता है, यह रक्त संबंधी समस्याओं का निदान करने में सहायक होता हैं। हाल के शोध में पता चला है कि कालानमक चावल मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है और इसे दैनिक भोजन में शामिल किया जाना चाहिए।

इस स्वादिष्ट कालानमक चावल के लिए पूर्वांचल के 11 जिलों को सन 2013 में भौगोलिक संकेत टैग (जी आई) प्राप्त हुआ है।

कालानमक चावल में बासमती की तुलना में खेती और रोपाई के लिए पानी की आवश्यकता कम है। इसलिए कालानमक चावल उन क्षेत्रों में भी उगाए जा सकते हैं जहां सूखे का संकट मंडराता हो या जहां पूरे वर्ष जल संकट रहता है। यह आसानी से उपलब्ध होने वाले बासमती चावल की तुलना में लगभग चार से पांच गुना अधिक मूल्य प्राप्त करता है।