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आजमगढ़ जिले की तुलसी से अब प्रदेश संग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान बनेगी। इसे बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री सूक्ष्म उद्योग उन्नयन योजना में ओडीओपी (एक जिला, एक उत्पाद) के तहत तुलसी उत्पाद का चयन किया गया है। इसके लिए लोगों को शासन की योजनाओं से जोड़ने का कार्य तेजी से चल रहा है। अब तक जिले में तुलसी की खेती छोटे स्तर पर की जाती रही है। अब सरकार इसपर किसानों को अनुदान भी देगी।

आजमगढ़ में आजीविका का साधन बन चुकी आस्था की प्रतीक तुलसी की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक बड़ी पहल की है। लगभग 22 वर्षों से विकास खंड पल्हनी के कम्हेनपुर गांव में की जा रही तुलसी की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री सूक्ष्म उद्योग उन्नयन योजना में ओडीओपी (एक जिला, एक उत्पाद) के तहत तुलसी उत्पाद का चयन किया गया है। अब तक जिले में तुलसी की खेती छोटे स्तर पर की जाती रही है। यहां से ब्रिटिश कंपनी तुलसी खरीदती थी, लेकिन सरकार ने किसानों को आर्थिक सहायता और विपणन सहयोग देगी तो यहां का उत्पाद बढ़ेगा। ओडीओपी में तुलसी को शामिल करने के बाद से ही आजमगढ़ में किसानों के सामने बेहतर विकल्प आ गया है। इसकी वजह से अब तुलसी के उत्पादन आधारित उद्योग को लगाने के नए अवसर भी किसानों के सामने हैं।

तुलसी की महत्ता अधिक
अधिकारियों के अनुसार औषधीय महत्व के इस पौधे के उत्पादन के अवसर इसके ओडीओपी में शामिल करने के बाद से और बढ़ गए हैं। इससे बनने वाली दवाएं, माला, मनकों और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में भी प्रयोग किए जाते हैं। इसके हर अंग के प्रयोग में आने की वजह से लोगों के सामने बेहतर अवसर रोजगार के साथ ही आय दोगुना करने के प्रयास भी रंग लाएंगे।

आजमगढ़ में तुलसी की खेती का इतिहास 
करीब 22 वर्ष पूर्व कम्हेनपुर गांव में लोगों ने आर्गेनिक विधि से तुलसी की खेती शुरू की। तुलसी के विपणन की समस्या अधिक है, लेकिन उत्पादन को देखते हुए आर्गेनिक इंडिया ने यहां अपनी प्रोसेसिंग यूनिट लगा दी है। जिससे विपणन की समस्या दूर हो गई है। फायदा होने लगा तो आसपास के लगभग एक दर्जन गांवों में भी खेती शुरू हो गई। हालांकि बाद में कुछ समस्या आने पर दूसरे गांवों के लोगों ने इसकी खेती छोड़ दी, लेकिन कम्हेनपुर और आसपास के गांवों के लोग करीब 100 हेक्टेयर में तुलसी की खेती की जाती है। लगभग 250 किसान इससे जुड़े हैं।

तुलसी (Ocimum sanctum / ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ सो ढकी होती है। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।

तुलसी की खेती 
तुलसी की खेती पूरे 90 दिन की होती है। जून में बीज की नर्सरी डाली जाती है। जुलाई में रोपाई और नवंबर के अंतिम या फिर दिसंबर के प्रथम सप्ताह में कटाई होती है।