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सफलता की कहानी: पॉलीहाउस में वैज्ञानिक तरीका अपनाकर टमाटर की जबरदस्त पैदावार
उत्तर प्रदेश के
सोनभद्र जिले के रॉबर्ट्सगंज गांव के किसान श्री बाबूलाल मौर्य ने पॉलीहाउस में
टमाटर की खेती से जो सफलता हासिल की है, वह आज कई किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है। श्री मौर्य के
पास 500 वर्ग मीटर का प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस है,
लेकिन शुरुआत में उन्हें मनचाहा उत्पादन नहीं मिल पा रहा
था। खर्च ज़्यादा था और मुनाफा कम, जिससे वे काफी परेशान थे।
तकनीकी सलाह से मिली
नई दिशा
समस्या का हल ढूंढते
हुए,
श्री मौर्य ने बनारस स्थित ICAR - भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR)
से संपर्क किया। वहां उन्होंने पॉलीहाउस में टमाटर की खेती
को लेकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस प्रशिक्षण में उन्हें पौधों की छंटाई,
ड्रिप सिंचाई, और गर्मी में फल लगने के लिए आवश्यक हार्मोन (पौध विकास
नियंत्रक) के इस्तेमाल की जानकारी दी गई।
दो-तना प्रणाली (Two-Stem
Training) से हुई पैदावार में
बढ़ोतरी
संस्थान ने उन्हें एक विशेष तकनीक सिखाई — "दो-तना प्रणाली"। इस विधि में पौधे के मुख्य तने के साथ एक साइड शाखा (जो पहले फूल वाले गुच्छे के नीचे हो) को ही रखा जाता है। बाकी शाखाओं को हटा दिया जाता है। इससे पौधा संतुलित रूप से बढ़ता है, उसे पर्याप्त धूप मिलती है और पौधे का पोषण सीधे फलों तक पहुंचता है।
आंकड़ों में सफलता
मार्च की शुरुआत में
श्री मौर्य ने ड्रिप सिंचाई के तहत 45 सेमी x 120 सेमी की दूरी पर 640 पौधे लगाए। मई-जून की तेज गर्मी के बावजूद उन्होंने टमाटर
की खेती जारी रखी। जुलाई की शुरुआत तक उन्होंने 20 बार तुड़ाई की और कुल 23.95 क्विंटल टमाटर की पैदावार हुई,
यानी प्रति पौधा औसतन 3.74 किलो टमाटर मिला।
उनका कुल खर्च ₹13,040 आया और कुल बिक्री ₹59,875 तक पहुंच गई। इस तरह ₹46,835 का शुद्ध लाभ उन्हें मिला — और साथ ही टमाटर की गुणवत्ता भी काफी बढ़िया रही।
आसपास के किसान भी हुए
प्रेरित
श्री मौर्य की सफलता
की खबर जैसे ही आस-पास के गांवों में फैली, अन्य किसान भी उनके खेत पर देखने आए। अब कई लोग पॉलीहाउस और
वैज्ञानिक तरीके से खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं।
वैज्ञानिक खेती से
बदली किस्मत
श्री मौर्य का कहना है
कि ICAR-IIVR
की तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण ने उनकी खेती की दिशा बदल
दी। वे अब आगे भी वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते रहेंगे। उनकी यह सफलता यह दिखाती है
कि अगर समय पर सही जानकारी और तकनीकी सहयोग मिले, तो किसान सीमित संसाधनों में भी बड़ी सफलता पा सकते हैं।
(Source: ICAR- Indian Institute of
Vegetable Research, Varanasi)
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