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बस्ती ज़िला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बस्ती है।

बस्ती नगर लखनऊ से 180 किमी पूर्व में घाघरा एवं अमी नदियों के मध्य स्थित है। इस जनपद की मुख्य उपजों में गन्ना, तिलहन,कपास, धान तथा गेहूँ इत्यादि हैं। यहाँ पर उपलब्ध मुख्य खनिज रेत है जो घाघरा, कुवानी एवं मनोरमा नदियों से प्राप्त की जाती है। जहाँ तक बस्ती जनपद की प्राकृतिक वन सम्पदा का प्रश्न है , यह सागौन, हल्दू, शीशम, तिबाऊ, महुआ, बांस, नीम जामुन और आम इत्यादि से समृद्ध है।

कालानमक चावल, ये चावल की एक खास किस्म का नाम है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में उपजाया जाता है। इसके ऊपर की भूसी काले रंग की होती है और साथ में नमक प्रत्यय क्यों जोड़ा यह तो हमारे पूर्वज बताने के लिए हैं नहीं। बहरहाल, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बेहद सुगन्धित इस चावल की खेती 600 ई० पू० से होती चली आ रही है, यानी कि भगवान बुद्ध के काल से या शायद उससे भी पहले। इसे बुद्ध चावल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि लोगों का ऐसा विश्वास है कि जब भगवान बुद्ध ने ‘ज्ञान बोध’ की प्राप्ति के बाद अपने छह वर्ष के तप का त्याग किया, उस समय सुजाता नामक एक ग्वालिन ने उन्हें इन्हीं चावलों की बनी खीर खिलाई थी।

कालानमक चावल की किस्मों की उच्च श्रेणी में आता है, और पूर्वी उत्तरप्रदेश में, नेपाल की सीमा से जुड़े हिमालय की तराई में बसे क्षेत्रों में बहुतायत से उगता है। ये क्षेत्र हैं, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, संत कबीरनगर, बाराबंकी, बलरामपुर, बहराइच और गोंडा। यह चावल, उत्तरप्रदेश के सुगंधित काले मोती के नाम से भी मशहूर है।

कालानमक चावल अपने औषधीय और रोग निवारक गुणों के लिए भी जाना जाता है। यह एंटी आक्सिडेंट से भरपूर है और इसमें उच्च एंथोसायनिन तत्त्व होता है जो हृदय रोग की रोकथाम में मदद करता है और त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार करता है। चूंकि यह चावल आयरन और जिंक से भरपूर होता है, यह रक्त संबंधी समस्याओं का निदान करने में सहायक होता हैं। हाल के शोध में पता चला है कि कालानमक चावल मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है और इसे दैनिक भोजन में शामिल किया जाना चाहिए।

इस स्वादिष्ट कालानमक चावल के लिए पूर्वांचल के 11 जिलों को सन 2013 में भौगोलिक संकेत टैग (जी आई) प्राप्त हुआ है।

कालानमक चावल में बासमती की तुलना में खेती और रोपाई के लिए पानी की आवश्यकता कम है। इसलिए कालानमक चावल उन क्षेत्रों में भी उगाए जा सकते हैं जहां सूखे का संकट मंडराता हो या जहां पूरे वर्ष जल संकट रहता है। यह आसानी से उपलब्ध होने वाले बासमती चावल की तुलना में लगभग चार से पांच गुना अधिक मूल्य प्राप्त करता है।