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राजस्थान के बारां जिले में लहसुन को एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चयनित किया गया।

लहसुन, सिंचित तरीके से उगाई जाने वाली प्याज के बाद दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिगत कंद फसल है, जिसका उपयोग पूरे देश और दुनिया में मसाले के रूप में किया जाता है। यह फसल देश के लिए एक महत्त्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जक है।

राजस्थान में यह फसल बड़े पैमाने पर बारां, झालावाड़, कोटा, बूंदी (हरोली क्षेत्र), चित्तौड़गढ़, जोधपुर और प्रतापगढ़ जिलों में विशेष रूप से सिंचित प्रणाली के साथ उगाई जाती है। हारोटी क्षेत्र को राजस्थान का लहसुन का कटोरा माना जाता है, जो 90% फसल का उत्पादन करता है। इन क्षेत्रों में किए गए उत्पादन के खुशबू की पहचान कई खाड़ी देशों में भी है। मसालेदार भोजन खासकर मांसाहारी व्यंजन में लहसुन का इस्तेमाल मुख्य तत्त्व के रूप में किया जाता है। आजकल बाजार में पेस्ट, पाउडर, फ्लेक्स, लहसुन कैप्सूल लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं।

लहसुन की खेती के लिए अनुकूल जलवायु
लहसुन की खेती सभी मौसम में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए अत्यधिक गर्म या अत्यधिक ठंडा मौसम अनुकूल नहीं रहता है। गर्म एवं बड़े दिन पौधों की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालते हैं अतः वृद्धिकाल में ठंडी एवं नम जलवायु चाहिये।परन्तु कन्द बनने के लिए लम्बे व तुलनात्मक दृष्टि से शुष्क गर्म दिन फायदेमंद हैं। इसकी अच्छी खेती के लिए 29.76 से 35.23 डिग्री सेल्शियस तापमान 10 घण्टे का दिन और 70 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता सर्वोतम है। शल्क-कंद बनते समय पानी की अधिकता इसको नुकसान पहुँचाती है।

भूमि
लहसुन की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन उपजाऊ दोमट या मध्यम काली दोमट मृदा जिसमें जीवांश पदार्थ तथा पोटाश प्रचुर मात्रा में हो, अच्छी रहती है। सुचारु जल-निकास की व्यवस्था वाली मृदाएँ खेती के लिए अच्छी होती है।