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जानिए गर्मियों में तिल की बुवाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी

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जानिए गर्मियों में तिल की बुवाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी
जानिए गर्मियों में तिल की बुवाई से लेकर कटाई तक की पूरी जानकारी

Til Ki Kheti: गर्मियों में तिल की खेती करना बहुत ही आसान है। कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसान भाई गर्मियों में तिल की बुवाई कर सकते हैं। तिल का उत्पादन वर्षा ऋतु की अपेक्षा गर्मी के मौसम में अधिक होता है। गर्मियों में कीटों और बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है, जिससे फसल अच्छी होती है। तिल में 20% प्रोटीन की मात्रा होती है साथ ही तिल से 45 से 50% तिल निकाला जाता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि तिल एक  तिलहन फसल है। इसे विश्व की पहली तिलहन फसल भी कहा जाता है। तिल से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग खाना पकाने में किया जाता है। भारत में प्राचीन काल से तिल की खेती की जाती है, हम दो तरह के तिल बोते हैं सफेद और काले तिल, सफेद तिल का ही तेल निकाला जाता है। इस फसल में एक मीटर तक के पौधे होते हैं, जिन पर सफेद-बैंगनी फूल आते हैं, साथ ही काले तिल का प्रयोग भी खूब होता है, जानिए भारत के प्रमुख तिल उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना में होरी है।

तिल की खेती के लिए गर्मियों में अनुकूल जलवायु 
जलवायु की बात करें तो तिल को लंबे गर्म मौसम के साथ उष्ण कटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके पौधे की वृद्धि गर्म जलवायु में होती है। अच्छी जल निकासी वाली भूमि में इसकी खेती करनी चाहिए, इसमें बारिश के पानी की आवश्यकता नहीं होती है, इसकी बुवाई  सामान्य पीएच मान वाली भूमि में उगानी  चाहिए, पोधो की अधिक बढ़वार के लिए 25 से 27 डिग्री का तापमान अच्छा होता है साथ ही इसके पौधे 40 डिग्री सामान्य तापमान आसानी से सहन कर लेते हैं।

उपयुक्त मिट्टी
वैसे तो तिल की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अधिक उपज प्राप्त करने के लिए किसान भाई इसे बलुई दोमट मिट्टी में बोते हैं, जिसमें अधिक जीवाश्म होते हैं जो तिल की खेती के लिए अच्छी है।

खेत की तैयारी
खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और पाटा चलाकार खेत को समतल कर लेना चाइये। खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट उचित मात्रा में डालें।

तिल की उन्नत किस्मे
गर्मियों की प्रमुख किस्मे
टी.के.जी. 21 यह किस्म 80 से 85 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है और यह लगभग 6 से 8 प्रति हेक्टैयर पैदावार देती है।
टी.के.जी. 22, जे.टी. 7, 81,27, 75 से 85 दिनों पक कर तैयार हो जाती है, 30 से 35 दिनों में इस पर फूल आने शुरु हो जाते है और 8 से 10 प्रति हेक्टैयर की पैदावार मिलती है।
साथ ही इन किस्म की बुवाई करके भी किसान अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है जैसे:
टी.सी. 25, आर.टी. 46, टी. 13, आर. टी. 125, टी. 78, आर. टी. 127, आर. टी. 346, वी आर आई- 1, पंजाब तिल 1, टी एम वी- 4, 5,  6, चिलक रामा, गुजरात तिल 4, हरियाणा तिल 1, सी ओ- 1, तरुण, सूर्या, बी- 67, प्यायूर- 1, शेखर और सोमा आदि।

बुवाई का समय
गर्मियों के मौसम में किसान इसकी बुवाई फ़रवरी के महीने में इसके बुवाई कर सकता है।

बीज दर
यदि किसान छिड़काव विधि से बुवाई करे तो 5 से 6 किलो ग्राम प्रति हेक्टैयर बीज की जरूरत होती है यदि लाइन में बुवाई करे तो 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टैयर बीज की जरूरत होती है। अधिक पैदावार के लिए पौधे की दुरी 8 cm की रखना चाहिए।

खाद और उर्वरक
किसान भाई अधिक उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई से पूर्व 250 किलो जिप्सम का प्रयोग करे साथ ही 100  से 120 किलो यूरिया प्रति हेक्टैयर खेत में डालना चाहिए।

तिल की सिंचाई
गर्मियों में इसकी सिंचाई 8 से 10 दिनों में कर देनी चाहिए।

फसल की कीटों से सुरक्षा
तिल में पत्ती व फल की सूँडी का अधिक प्रकोप होता है। सूडिय़ाँ पत्तियों व फलों को खाकर जाला बना देती है।
कीट नियंत्रण फसल में जैविक कीट नियंत्रण पर बल दें क्योंकि रसायनिक कीट नियंत्रण में फसल की लागत बढऩे के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। अत: जैविक नियंत्रण के अंतर्गत बुवाई के पूर्व नीम की खली 250 किग्रा प्रति हेक्टेयर और ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज उपचार के साथ-साथ 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलायें। फसल डेढ़ माह की हो जाने पर नीम आधारित एजेडिरीक्टीन की 3 मिली मात्रा प्रति लीटर के दर से फसल पर छिडक़ाव करें अथवा नीम का तेल 10 मिली प्रति लीटर पानी के दर से छिडक़ाव करें। मूँग के साथ मिश्रित खेती करने से फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है और पैदावार बढ़ जाती है।

रोग नियंत्रण
तिल की फाइलोडी- यह माइक्रोप्लाजमा द्वारा होता है। इस रोग से पौधों का पुष्प विन्यास पत्तियों का विकृत रूप में बदलकर गुच्छा बन जाता है।
फाइटोप्थोरा झुलसा- रोग आने पर पौधों की पत्तियाँ व कोमल भाग झुलस जाते हैं।
समन्वित रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम प्रति किग्रा बीज उपचारित करके बुवाई करें। नीम तेल 10 मिली प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

किसान भाइयो तिल की खेती में ध्यान रखने वाली सबसे जरूरी बात यह है की जब इसके पोधो में फूल आ जाते है तब इसकी अधिक सिंचाई नहीं करनी चाइये नहीं तो फूल गिरने की सम्भावना होती है।