कोरबा ज़िला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय कोरबा है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सूक्ष्म इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना का आरंभ किया गया है। इस योजना के अंतर्गत असंगठित क्षेत्र के इकाईयों को एकत्र कर उन्हें आर्थिक और विपणन की दृष्टि से मजबूत किया जाएगा। 

लघु वनोपज (महुआ आदि) को किया गया चयनित
एक जिला एक उत्पाद के अंतर्गत जिले को खाद्य सामग्री में लघु वनोपज (महुआ आदि) के लिए चयनित किया गया है। जिसकी यूनिट लगाने पर मार्केटिग, पैकेजिग, फाइनेंशियल मदद, ब्रांडिग की मदद इस योजना के अंतर्गत किसानों को मिलेगी।

महुए के पेड़ वनवासी इलाकों में रहने वाले लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत हैं। देश के कई राज्यों में महुआ फूल की खेती की जाती है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं।

वनों से समृद्ध छत्तीसगढ़ में महुआ बहुतायत में पाया जाता है। महुआ यहां के आदिवासियों की जीविका का साधन भी है। यहां के आदिवासी महुआ फूल को एकत्र करते हैं और बाजार में बेचते हैं। गहरा पीलापन लिए हुए महुआ फूल औषधि और देसी शराब बनाने के काम आता है। अब आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में महुआ फूल से हैंड सैनिटाइजर बनाया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में महुआ (Mahua) के फूल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू हो गया है। यहां होने वाली महुआ के फूल के पैदावार की मांग फ्रांस में बढ़ गयी है। फ्रांस में छत्तीसगढ़ के महुआ के फूल से शराब बनायी जाएगी। इसका उपयोग दवा और सिरप तैयार करने में भी किया जाएगा। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने महुआ के फूल को निर्यात करने की स्वीकृति दी है।

महुआ के फूलों की एक खेप समुद्र के रास्ते फ्रांस भेजी गई है।
वहां पर इसका उपयोग शराब बनाने के साथ ही दवा और सिरप का निर्माण करने में भी किया जाएगा।
राज्य के कोरबा जिले के जंगलों से महुआ के फूल को एकत्र किया गया है।
इसका प्रसंस्करण प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत किये गए वनधन केन्द्रों पर किया गया था।
महुआ के फूल अधिकाशंत: कोरबा, कटघोरा, सरगुजा, पासन, पाली, चुर्री के जंगलों से एकत्र किए गए थे।
अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा महुआ के फूल को एकत्र किया जाता है। निर्यात बढ़न से इन्हें घर में रोजगार मिल सकेगा।

महुए के पेड़ आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों की आमदानी का मुख्य स्रोत है। इन्हें सुखाकर खाने और अन्य कई रूपों में प्रयोग किया जाता है। मार्च के आख़िरी सप्ताह से लेकर अप्रैल महीने तक ज़्यादातार परिवार इस पुश्तैनी कार्य में लग जाते हैं। ज़्यादातार वनवासी परिवार इसे बाजार में सीधा बेच देते हैं, लेकिन जब दाम घट जाते हैं तो महुआ का आचार या शराब बनाकर इन्हें बेचा जाता है।

महुआ की खेती के बारे में जानिए
यह मूल रूप से भारत का वृक्ष है और शुष्क क्षेत्रो के लिए अनुकूल है। यह प्रजाति संपूर्ण भारत, श्रीलंका और संभवत: म्यमार (पहले वर्मा) में पाई जाती है। भारत में यह गर्म भागों उष्णकटिबंधीय हिमालय और पश्चिमी घाट में पाया जाता है।

महुआ भारतीय वनों का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष है जिसका कारण ना केवल इससे प्राप्त बहुमूल्य लकड़ी है वल्कि इससे प्राप्त स्वादिष्ट और पोषक फूल भी है। यह अधिक वृध्दि करने वाला वृक्ष है।

इसकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके फूलों को संग्रहीत करके लगभग अनिश्चित काल के लिए रखा जा सकता है।

इस वृक्ष में फूल 10 वर्ष की आयु से शुरू होते है और लगभग 100 वर्ष तक लगातार आते रहते है। फूल घने, अधिक मात्रा में आकार में, छोटे और पीले सफेद रंग के होते है। फूलों से कस्तूरी जैसी सुगंध आती है. फूल मार्च – अप्रैल माह में आते है।