सौंफ (Foeniculum Vulgare) एक सुगंधित औषधीय पौधा है, जिसका भारत में विशेष उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। यह न केवल भोजन में स्वाद बढ़ाने में मदद करता है बल्कि इसके औषधीय गुण भी पाचन में सहायक होते हैं। भारत के कई राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
सौंफ की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके विकास के लिए 15°C से 25°C तक का तापमान सबसे आदर्श होता है। अधिक नमी या भारी वर्षा फसल को नुकसान पहुँचा सकती है, इसलिए ऐसे मौसम से सौंफ की फसल को बचाना जरूरी है।
मिट्टी की बात करें तो दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी की व्यवस्था अच्छी हो, सबसे उपयुक्त होती है। इसके अलावा मिट्टी का pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए ताकि पौधों की जड़ें पोषक तत्वों को सही तरीके से अवशोषित कर सकें।भारत में सौंफ की बुवाई का समय क्षेत्र विशेष पर निर्भर करता है। सामान्यतः मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर से नवंबर के मध्य तक इसकी बुवाई की जाती है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जून तक इसकी बुवाई की जा सकती है।
सौंफ की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं जिनमें गुजरात फेन्नल-1, गुजरात फेन्नल-2, एचएफ-143, पुसा उज्जा, पुसा बरूणी और आईएफ-125 प्रमुख हैं। ये किस्में अधिक उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधक और जलवायु के अनुकूल होती हैं।
सौंफ की अच्छी पैदावार के लिए बुवाई से पहले बीजों का उपचार
सामान्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बुवाई से पहले बीजों का उपचार किसी फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किलोग्राम ) से करना आवश्यक होता है ताकि बीज जनित रोगों से बचाया जा सके और अंकुरण बेहतर हो सके।
- सौंफ के खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले एक गहरी जुताई की जाती है ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
- इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को समतल और भुरभुरी बनाया जाता है।
- अंत में पाटा चलाकर मिट्टी को अच्छी तरह समतल किया जाता है।
- अंतिम जुताई के समय 20 से 25 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में मिला देनी चाहिए जिससे मिट्टी में जैविक तत्वों की पूर्ति हो सके।
- बुवाई कतारों में की जाती है, क्योंकि यह विधि पौधों के अच्छे विकास के लिए उपयुक्त मानी जाती है। कतार से कतार की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखी जाती है।
- बीजों को सामान्यतः 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाता है। बुवाई के बाद सिंचाई करना आवश्यक होता है ताकि अंकुरण सही ढंग से हो सके।
इसके बाद सिंचाई आवश्यकता अनुसार 12 से 15 दिनों के अंतराल पर की जाती है। फूल आने और दाना बनने की अवस्था में विशेष रूप से सिंचाई का ध्यान रखना चाहिए। अत्यधिक पानी देने से फसल में सड़न आ सकती है, इसलिए जल निकासी की व्यवस्था उत्तम होनी चाहिए
खरपतवार नियंत्रण भी सौंफ की खेती में अत्यंत आवश्यक है
पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद की जाती है जबकि दूसरी 50 से 60 दिन बाद। इससे न केवल खरपतवार हटते हैं बल्कि मिट्टी भी ढीली होती है जिससे पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन मिलने में सुविधा होती है। सौंफ की अच्छी पैदावार के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति भी जरूरी है। खेत की तैयारी करते समय 20-25 टन गोबर की खाद डाली जाती है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन 90 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा बुवाई के समय दी जाती है। बची हुई नाइट्रोजन दो किस्तों में – पहली फूल आने और दूसरी दाना बनने की अवस्था में देनी चाहिए।
सौंफ की फसल में पत्ती झुलसा, पाउडरी मिल्ड्यू और जड़ सड़न जैसे रोगों का हमला हो सकता है। इन रोगों से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब का छिड़काव करना लाभकारी होता है। कीटों में थ्रिप्स, एफिड्स और कटवर्म प्रमुख हैं। इनसे बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों या नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है।
सौंफ की फसल सामान्यतः 5 से 6 महीनों में पककर तैयार हो जाती है। जब पुष्प गुच्छ पीले होकर सूखने लगते हैं तब फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को खुले में अच्छी तरह सुखाना चाहिए ताकि नमी पूरी तरह निकल जाए। इसके बाद मड़ाई करके बीज निकाले जाते हैं। अच्छे प्रबंधन से एक हेक्टेयर में 18 से 22 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
बीजों का भंडारण करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि वे पूरी तरह सूखे हों। इन्हें नमी रहित और साफ-सुथरी जगह पर ही संग्रहित करना चाहिए ताकि फफूंद या कीटों का प्रकोप न हो।
सौंफ की खेती किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। इसकी बाजार में स्थायी मांग बनी रहती है और मसाले तथा औषधीय उपयोग के कारण इसकी कीमत स्थिर रहती है जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
Q.01: सौंफ की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु कौन-सी है?
- सौंफ की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान इस फसल के लिए आदर्श होता है।
Q.02: सौंफ की बुवाई का समय क्या है?
- मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर से नवंबर और पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जून तक सौंफ की बुवाई की जाती है।
Q.03: किस प्रकार की मिट्टी सौंफ के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है?
- दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, सौंफ के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। pH मान 6.5 से 8.5 होना चाहिए।
Q.04: सौंफ की प्रमुख किस्में कौन-कौन सी हैं?
- गुजरात फेन्नल-1, गुजरात फेन्नल-2, एचएफ-143, पुसा उज्जा, पुसा बरूणी, आईएफ-125।
Q.05: एक हेक्टेयर में सौंफ के लिए कितनी बीज मात्रा चाहिए होती है?
- सामान्यतः 10 से 12 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
Q.06: क्या उर्वरकों का उपयोग आवश्यक है?
- हाँ, संतुलित उर्वरकों का उपयोग आवश्यक है – जैसे गोबर की खाद 20–25 टन, नाइट्रोजन 90 किग्रा, फास्फोरस 40 किग्रा और पोटाश 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
Q.07: सिंचाई कितनी बार करनी चाहिए?
- पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद और उसके बाद हर 12–15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। फूल और दाना बनने के समय विशेष ध्यान देना चाहिए।
Q.08: कौन-कौन से रोग सौंफ की फसल को प्रभावित करते हैं?
- पत्ती झुलसा, पाउडरी मिल्ड्यू और जड़ सड़न आम रोग हैं। इनके लिए कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब का छिड़काव किया जाता है।
Q.09: कटाई कब और कैसे करनी चाहिए?
- जब फूल सूखने और पीले पड़ने लगें, तब फसल की कटाई करें और सूखने के बाद मड़ाई करके बीज निकालें।
Q.10: क्या सौंफ की खेती लाभदायक है?
- हाँ, सौंफ की खेती मसाले और औषधीय उपयोग के कारण बेहद लाभदायक है और बाजार में इसकी स्थायी मांग है।