पपीते की सेहत का राज़-सही पहचान, सही उपचार

पपीते की सेहत का राज़-सही पहचान, सही उपचार

पपीते की सेहत का राज़-सही पहचान, सही उपचार

 

प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह

विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा – 848125, समस्तीपुर, बिहार

 

पपीते की संवेदनशीलता और प्रबंधन की आवश्यकता

पपीता (Carica papaya) एक अत्यंत मूल्यवान, पोषक तत्वों से भरपूर तथा सालभर फल देने वाली उष्णकटिबंधीय फसल है। हालांकि इसकी उच्च उत्पादकता और आर्थिक महत्व के बावजूद, यह पौधा अत्यधिक संवेदनशील माना जाता है। पपीते की खेती के दौरान किसानों को विभिन्न प्रकार के विकार (Disorders) और रोग-कीट समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को प्रभावित करते हैं।

 

इन समस्याओं का प्रभावी समाधान समग्र दृष्टिकोण अपनाने में है, जिसमें –

·         *उचित कृषि-कार्य (Cultural Practices)

·         *मृदा व पोषण प्रबंधन

·         *जल प्रबंधन

·         रोग एवं कीट नियंत्रण

·         का समय पर और संतुलित प्रयोग शामिल है।

 

1. पोषक तत्वों की कमी से होने वाले विकार

पपीते में पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखना अत्यावश्यक है। कमी के कारण पौधों में विशिष्ट लक्षण प्रकट होते हैं और उत्पादन क्षमता घट जाती है।

 

(क) नाइट्रोजन की कमी

·         लक्षण: पुरानी पत्तियों का पीला पड़ना, पौधों की वृद्धि में रुकावट।

·         समाधान: यूरिया, अमोनियम सल्फेट या अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद/कम्पोस्ट का प्रयोग।

 

(ख) फास्फोरस की कमी

·         लक्षण: पत्तियों में गहरा हरा रंग व बैंगनी आभा, धीमी वृद्धि, फल आने में विलंब।

·         समाधान: रॉक फॉस्फेट या सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग।

 

(ग) पोटाशियम की कमी

·         लक्षण: पत्तियों के किनारे पीले होकर सूखना, पत्तियों का मुड़ना।

·         समाधान: म्यूरेट ऑफ पोटाश या सल्फेट ऑफ पोटाश का प्रयोग।

 

(घ) कैल्शियम की कमी

·         लक्षण: फलों में "ब्लॉसम एंड रॉट" (पानी से लथपथ सिरे का सड़ना)।

·         समाधान: मिट्टी में चूना या कैल्शियम नाइट्रेट का छिड़काव।

 

(ङ) मैग्नीशियम की कमी

·         लक्षण: पुरानी पत्तियों में नसों के बीच पीला पड़ना (इंटरवेनियल क्लोरोसिस)।

·         समाधान: एप्सम साल्ट (मैग्नीशियम सल्फेट) का छिड़काव।

 

(च) सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी

·         जिंक की कमी: पत्तियों का छोटा और विकृत होना।

·         आयरन की कमी: नई पत्तियों का पीला पड़ना।

·         बोरॉन की कमी: फलों का विकृत होना।

·         समाधान: संबंधित सूक्ष्म पोषक तत्वों का पर्णीय छिड़काव या मिट्टी में मिश्रण।

 

2. जल प्रबंधन से जुड़े विकार

 

(क) जलभराव

·         पपीता जलभराव सहन नहीं कर सकता।

·         यदि 24 घंटे से अधिक खेत में पानी ठहर गया, तो जड़ सड़न से पौधा मर सकता है।

·         समाधान: खेत में उचित जलनिकासी, उभरी क्यारियों पर रोपाई।

 

(ख) सूखे का तनाव

·         लक्षण: पत्तियों का मुरझाना, छोटे और निम्न-गुणवत्ता के फल।

·         समाधान: ड्रिप सिंचाई अपनाना, मल्चिंग द्वारा नमी बनाए रखना।

 

3. पर्यावरणीय तनाव

(क) ठंड का तनाव

·         पत्तियों का पीला पड़ना, फल सेट में कमी।

·         समाधान: ठंढ-रहित क्षेत्र में रोपण, प्लास्टिक मल्च/ग्रीनहाउस का उपयोग।

 

(ख) गर्मी का तनाव

·         फलों पर सनबर्न (झुलस) के धब्बे।

·         समाधान: शेड नेट, अंतरफसल में ऊँचे पौधे।

 

(ग) हवा का नुकसान

·         तेज हवाओं से तने व पत्तियों का टूटना।

·         समाधान: विंडब्रेक पौधे लगाना, पौधों को बाँधना (स्टेकिंग)।

 

4. कीट प्रबंधन

(क) एफिड्स एवं व्हाइटफ्लाई

·         नुकसान: रस चूसना, पत्तियों का कर्ल होना, वायरस रोगों का प्रसार।

·         समाधान: नीम तेल, कीटनाशी साबुन, लाभकारी कीट (लेडीबर्ड बीटल) का संरक्षण।

 

(ख) पपीता फल मक्खी

·         नुकसान: फलों में अंडे देना, फल सड़ना।

·         समाधान: फेरोमोन ट्रैप, प्रभावित फल नष्ट करना, समय पर कीटनाशी छिड़काव।

 

(ग) नेमाटोड

·         नुकसान: जड़ों पर गांठें, पोषण अवशोषण में कमी।

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