गेहूं में पीली पत्तियां और कमजोर फसल क्या यह लोहा की कमी का असर है?

गेहूं में पीली पत्तियां और कमजोर फसल क्या यह लोहा की कमी का असर है?

गेहूं में पीली पत्तियां और कमजोर फसल क्या यह लोहा की कमी का असर है?


प्रोफेसर (डॉ.) एस. के. सिंह

विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट विभाग ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा–848125, समस्तीपुर, बिहार


गेहूं भारत की खाद्य सुरक्षा का मुख्य स्तंभ है। इसके उत्पादन में कमी सीधे किसानों की आय और राष्ट्रीय खाद्य उपलब्धता को प्रभावित करती है। संतुलित पोषण फसल उत्पादकता का आधार है, जिसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका है जितनी प्रमुख पोषक तत्वों (NPK) की। लोहा (Fe) एक अत्यावश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो क्लोरोफिल संश्लेषण, श्वसन क्रिया, एंजाइम गतिविधि, ऊर्जा उत्पादन तथा दाना भराव जैसी कई महत्वपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं में शामिल होता है। आधुनिक कृषि अनुसंधान दर्शाते हैं कि लोहे की कमी से गेहूं की उपज में 20–40% तक कमी आ सकती है, विशेषकर क्षारीय व कैल्सियम कार्बोनेट युक्त मिट्टियों में।


लोहा की कमी के प्रमुख लक्षण

लोहे की कमी मुख्यतः युवा (नई) पत्तियों में स्पष्ट दिखाई देती है, क्योंकि यह तत्व पौधे के भीतर कम गतिशील होता है।

1. पत्तियों का पीला पड़ना (Interveinal Chlorosis)

नई पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं जबकि उनकी शिराएँ हरी रहती हैं। यह विशिष्ट लक्षण Fe-deficiency का स्पष्ट संकेत है।

2. प्रकाश संश्लेषण में कमी

क्लोरोफिल निर्माण प्रभावित होने से पौधे की भोजन बनाने की क्षमता घटती है, जिससे पौधों का रंग फीका और बेजान दिखने लगता है।

3. पौधों का कमजोर विकास

कद छोटा रह जाता है, टिलर कम बनते हैं, जैव द्रव्यमान घट जाता है और पौधा रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

4. दाना बनने की क्षमता में कमी

प्रजनन विकास प्रभावित होता है, दाने छोटे, सिकुड़े हुए तथा वजनहीन बनते हैं। इससे उपज और गुणवत्ता दोनों घटती है।

5. जड़ विकास पर प्रतिकूल प्रभाव

लोहे की कमी से जड़ें कमजोर होती हैं, उनकी शाखाएं कम बनती हैं और पोषक अवशोषण क्षमता घट जाती है, जिससे द्वितीयक पोषक तत्वों की कमी का खतरा बढ़ जाता है।


लोहा की कमी के कारण

भारत की अनेक गेहूं उत्पादक मिट्टियों में लोहे की उपलब्धता कम होती जा रही है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—

1. मिट्टी का उच्च pH (कैल्सीयरस एवं क्षारीय मिट्टियाँ)

pH 7.8 से अधिक होने पर लोहा अघुलनशील रूप में परिवर्तित हो जाता है, जिससे पौधा उसे अवशोषित नहीं कर पाता।

2. अन्य पोषक तत्वों का असंतुलन

फास्फोरस, जिंक, मैंगनीज की अधिकता तथा बाइकार्बोनेट की अधिक उपस्थिति Fe अवशोषण को बाधित कर देती है।

3. जैविक पदार्थों में कमी

पराली जलाने, रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता और कार्बनिक पदार्थों के घटते स्तर से Fe की उपलब्धता कम हो जाती है।

4. जलभराव या अत्यधिक नमी

ऑक्सीजन की कमी के कारण जड़ों की क्रियाशीलता घटती है और Fe का अवशोषण रुक जाता है।

5. अनुचित कृषि प्रबंधन

लगातार एक ही फसल प्रणाली अपनाना, अपर्याप्त फसल चक्र तथा अनुचित भूमि प्रबंधन भी समस्या बढ़ाते हैं।


लोहा की कमी से होने वाले नुकसान

1.उपज में भारी गिरावट

दाना भराव कमजोर होने से उपज घट जाती है। कुछ क्षेत्रों में 10–15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हानि दर्ज की गई है।

2. गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव

प्रोटीन प्रतिशत, हेक्टोलिटर वेट तथा दाने की चमक प्रभावित होती है, जिससे बाजार मूल्य घट जाता है।

3. उत्पादन लागत में वृद्धि

समस्या गंभीर होने पर सुधारात्मक उपायों पर अतिरिक्त खर्च बढ़ता है।

4. मिट्टी की सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव

यदि समय पर उपाय न किए जाएं तो मिट्टी की उर्वरता और खराब होती जाती है।


लोहा की कमी का वैज्ञानिक प्रबंधन

1. मिट्टी की जांच एवं pH प्रबंधन

• फसल लगाने से पहले प्रत्येक 2–3 वर्ष में मिट्टी परीक्षण अवश्य कराएं।

• pH 6.0–6.5 उपयुक्त माना जाता है। क्षारीय मिट्टियों में जैविक पदार्थ बढ़ाएं और जिप्सम/सल्फर आधारित संशोधन का वैज्ञानिक सलाह अनुसार उपयोग करें।

• गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट एवं हरी खाद Fe की उपलब्धता बढ़ाती हैं।


2. उर्वरकों का संतुलित एवं वैज्ञानिक उपयोग

• फेरस सल्फेट (FeSO₄) 25–30 किग्रा/हेक्टेयर मिट्टी में देना लाभकारी रहता है।

• चीलेटेड आयरन (Fe-EDTA) 0.1% घोल का फोलियर स्प्रे तेजी से सुधार देता है।

• संतुलित NPK प्रबंधन अवश्य करें, क्योंकि पोषक संतुलन Fe उपलब्धता का आधार है।


3. फसल प्रणाली एवं भूमि प्रबंधन

• दलहनी फसलों के साथ फसल चक्र अपनाने से जैविक पदार्थ और सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्धता सुधरती है।

• पलटने वाली जुताई (Deep Ploughing) मिट्टी की भौतिक दशा सुधारती है।


4. जल एवं खेत प्रबंधन

• खेत में जलभराव न होने दें, उचित नाली व्यवस्था रखें।

• आवश्यकता अनुसार स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाएं, जिससे नमी संतुलित रहे।


5. जैविक एवं नवीन तकनीकी उपाय

• Iron Solubilizing Bacteria (ISB) का उपयोग Fe उपलब्धता बढ़ाने में सहायक पाया गया है।

• माइकोराइज़ा फंगस जड़ तंत्र को मजबूत बनाता है और सूक्ष्म पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ाता है।

• कार्बन-समृद्ध कृषि पद्धतियाँ दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती हैं।


अंत में ....

गेहूं में लोहा की कमी एक गंभीर लेकिन पूर्णतः प्रबंधनीय समस्या है। समय पर पहचान, वैज्ञानिक प्रबंधन, संतुलित उर्वरक उपयोग, जैविक पदार्थों की वृद्धि, उचित pH एवं जल प्रबंधन से इसकी गंभीरता कम की जा सकती है। किसानों को मिट्टी परीक्षण आधारित पोषण प्रबंधन अपनाना चाहिए ताकि उपज, गुणवत्ता और मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता सुरक्षित रह सके। आधुनिक शोध स्पष्ट करता है कि संतुलित सूक्ष्म पोषण ही उच्च उत्पादकता, बेहतर गुणवत्ता और टिकाऊ कृषि का आधार है। यदि किसान इन वैज्ञानिक सुझावों को अपनाएं तो निश्चित रूप से गेहूं उत्पादन में बेहतर लाभ और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है।

Smart farming and agriculture app for farmers is an innovative platform that connects farmers and rural communities across the country.

© All Copyright 2024 by Kisaan Helpline