Kishor Dhakad
26-08-2025फ्रेंचबीन जिसे हरी फली या फ्रांसबीन भी कहा जाता है, सब्जी और दाल दोनों रूपों में उपयोगी फसल है। इसकी हरी फलियाँ स्वादिष्ट होती हैं और बाजार में हमेशा अच्छी मांग रहती है। पोषण की दृष्टि से यह फसल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, विटामिन बी2 और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित रूप से इसका सेवन करने से शरीर मजबूत होता है, पाचन तंत्र बेहतर होता है और दिल की बीमारियों से बचाव होता है।
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
फ्रेंचबीन की खेती के लिए हल्की ठंडी और मध्यम गर्मी वाली जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है। अत्यधिक ठंड और अधिक गर्मी दोनों ही इस फसल के लिए नुकसानदायक साबित होते हैं। इसकी अच्छी बढ़वार के लिए तापमान 18 से 24 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भी किसान फ्रेंचबीन उगाते हैं।
मिट्टी और खेत की तैयारी
खेती के लिए बलुई दोमट और भुरभुरी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी की निकासी अच्छी तरह से हो जाती है और पौधों को हवा भी पर्याप्त मिलती है। खेत की तैयारी के लिए 2–3 बार जुताई करनी चाहिए और पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट अच्छी तरह से मिला देने से मिट्टी उपजाऊ हो जाती है और पौधों की बढ़वार तेज होती है।
किस्में और बीज की मात्रा
फ्रेंचबीन की दो किस्में प्रमुख हैं – झाड़ी वाली और बेल वाली।
झाड़ी वाली किस्में जैसे अर्का कोमल, पंत अनुपमा और पेसा पार्वती छोटे पौधे बनाती हैं जिन्हें सहारे की ज़रूरत नहीं होती। बेल वाली किस्में जैसे पूसा हिमलता और केंटुकी वंडर लंबी बेलें बनाती हैं और इन्हें सहारे की आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा भी किस्म के अनुसार बदलती है। झाड़ी वाली किस्मों के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 80–90 किलो बीज चाहिए जबकि बेल वाली किस्मों के लिए 30–35 किलो बीज ही पर्याप्त होता है।
बीजोपचार और बुवाई का समय
बीज बोने से पहले उनका राइजोबियम कल्चर से उपचार करना जरूरी है ताकि पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन बनने की क्षमता बढ़े और रासायनिक उर्वरकों की कम जरूरत पड़े। बीज बोने का समय क्षेत्र की जलवायु पर निर्भर करता है। उत्तर भारत में अक्टूबर–नवंबर और फरवरी सबसे सही समय माना जाता है, जबकि पहाड़ी इलाकों में फरवरी–मार्च या जून में बुवाई की जाती है। झाड़ी वाली किस्मों के लिए पंक्तियों की दूरी 45–60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखी जाती है। बेल वाली किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1 मीटर रखनी चाहिए और पौधों को सहारा देना जरूरी होता है।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
फ्रेंचबीन की अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरक का सही प्रबंधन करना आवश्यक है। बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 20 किलो नाइट्रोजन, 80 किलो फॉस्फोरस और 50 किलो पोटाश डालना चाहिए। इसके अलावा 20–25 टन गोबर की खाद मिट्टी में मिलाना पौधों की वृद्धि के लिए बेहद फायदेमंद होता है। जब पौधे फूल अवस्था में पहुँच जाएँ, तब अतिरिक्त 20 किलो नाइट्रोजन देना चाहिए ताकि फलियाँ अच्छी तरह विकसित हो सकें।
सिंचाई और नमी प्रबंधन
इस फसल में नमी की जरूरत अधिक होती है, इसलिए बुवाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए। इसके बाद हर 7–10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। लेकिन खेत में पानी भरने से पौधे सड़ सकते हैं, इसलिए जल निकासी की व्यवस्था होना आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए 2–3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। चाहें तो बुवाई के 2 दिन के भीतर स्टाम्प नामक दवा का छिड़काव करने से भी खरपतवार की समस्या काफी कम हो जाती है।
रोग और कीट प्रबंधन
फ्रेंचबीन की पैदावार को रोग और कीट प्रभावित कर सकते हैं। इस फसल में पत्ती झुलसा, पाउडरी मिल्ड्यू और जड़ सड़न जैसी बीमारियाँ आमतौर पर लगती हैं। इनसे बचाव के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम या थिरम से उपचारित करना चाहिए और रोग दिखाई देने पर मैन्कोजेब का छिड़काव करना चाहिए। वहीं फलछेदक इल्ली, एफिड्स और जड़ मक्खी जैसे कीट भी नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए नीम तेल का छिड़काव करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर रासायनिक कीटनाशकों का भी उपयोग किया जा सकता है।
तुड़ाई और उत्पादन
फ्रेंचबीन की फलियाँ फूल आने के 15–20 दिन बाद तोड़नी शुरू करनी चाहिए। तुड़ाई हर 3–4 दिन में करनी जरूरी होती है क्योंकि कोमल और ताज़ी फलियाँ ही बाजार में महँगे दाम पर बिकती हैं। समय पर तुड़ाई न करने से फलियाँ सख्त हो जाती हैं और उनका स्वाद भी कम हो जाता है। सही देखभाल से एक हेक्टेयर खेत से 75–100 क्विंटल तक हरी फलियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
बीज उत्पादन और संग्रहण
यदि बीज उत्पादन करना हो तो पौधों के बीच 5–10 मीटर की दूरी रखनी चाहिए और खराब पौधों को समय-समय पर निकाल देना चाहिए। जब लगभग 90 प्रतिशत फलियाँ पक जाएँ, तब फसल काटकर बीजों को सुखाना चाहिए और सुरक्षित जगह पर संग्रहित करना चाहिए। इस तरह प्रति हेक्टेयर 10–15 क्विंटल बीज प्राप्त हो सकता है।
लागत और मुनाफ़ा
लागत और मुनाफे की दृष्टि से यह फसल किसानों के लिए बहुत लाभकारी है। एक हेक्टेयर पर औसतन 30–40 हजार रुपये की लागत आती है और बाजार में हरी फलियाँ मौसम के अनुसार 25–60 रुपये प्रति किलो तक बिकती हैं। इससे किसान आसानी से 80 हजार से 1.2 लाख रुपये तक का शुद्ध लाभ कमा सकते हैं।
कुल मिलाकर फ्रेंचबीन एक ऐसी फसल है जिसे गाँव और शहर दोनों जगह उगाया जा सकता है। यह पौष्टिक, स्वादिष्ट और कम समय में तैयार होने वाली फसल है। अगर किसान सही तकनीक अपनाएँ तो उन्हें अच्छी उपज और ज्यादा मुनाफा दोनों मिल सकता है।
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