क्या आप जानते हैं तोरई की खेती से कैसे हो सकती है ज्यादा कमाई कम लागत में?

क्या आप जानते हैं तोरई की खेती से कैसे हो सकती है ज्यादा कमाई कम लागत में?

भारत में सब्जियों की खेती एक मजबूत कमाई का जरिया बन चुकी है, और उसमें भी तोरई की खेती (Ridge Gourd Farming) किसानों के लिए कम लागत में अधिक मुनाफे का साधन साबित हो रही है। सवाल यह है – क्या आप जानते हैं कि इस आसान सी लगने वाली सब्जी से कैसे आप हर सीजन में अच्छी आमदनी पा सकते हैं?

आइए जानते हैं, तोरई की खेती से जुड़ी खास बातें, तकनीकी सलाह, और वो तरीके जिनसे आप कम खर्च में अधिक उत्पादन लेकर बाज़ार में अच्छी कीमत पा सकते हैं।

तोरई की खेती क्यों है फायदेमंद?

  1. कम लागत वाली फसल:
    तोरई की खेती के लिए ज़मीन, बीज और उर्वरक पर बहुत ज़्यादा खर्च नहीं आता। तोरई की खेती देसी तरीकों से भी उगाई जा सकती है।

  2. तेजी से बढ़ने वाली फसल:
    बीज बोने के 50–60 दिनों में तोरई की फसल तैयार हो जाती है, जिससे साल में 2-3 बार तक उपज ली जा सकती है।

  3. बाजार में मांग:
    तोरई एक रोज़ाना इस्तेमाल की जाने वाली सब्जी है। शहरों से लेकर गाँवों तक इसकी डिमांड बनी रहती है।

  4. कम पानी की आवश्यकता:
    तोरई की खेती के लिए ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती, जिससे यह फसल कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उपयुक्त है।

तोरई की खेती का सही समय (Season for Ridge Gourd Farming)

तोरई की खेती गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में की जा सकती है।

  • गर्मी की फसल: फरवरी से अप्रैल

  • बरसात की फसल: जून से जुलाई

इस समय बोवाई करने पर पौधों को अच्छी बढ़त मिलती है और कीट प्रकोप भी कम होता है।

तोरई की उन्नत किस्में (Ridge Gourd Varieties)

  1. अरका सुशील

  2. पूसा नसदर

  3. कोयम्बत्तूर लोकी

  4. NS-621, IETRG-5, VRG-1

इन किस्मों में जल्दी उपज, अधिक फल, और रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है।

खेत की तैयारी और बीज बोना

  • मिट्टी को दो बार जुताई करें और गोबर खाद मिला दें।

  • बीजों को बुवाई से पहले 12 घंटे पानी में भिगोने से अंकुरण तेज होता है।

  • बीज बोने की दूरी: 1.5 फीट × 1.5 फीट

  • बीज दर: प्रति एकड़ 2.5 से 3 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

सिंचाई, खाद और रोग नियंत्रण

  • सिंचाई: गर्मी में 6–8 दिन पर और बारिश में जरूरत अनुसार करें।

  • खाद: गोबर खाद + नीमखली + डीएपी का संतुलन प्रयोग करें।

  • कीट नियंत्रण: फलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचाने के लिए नीम तेल स्प्रे करें या जैविक दवाओं का उपयोग करें।

तोरई की बिक्री और मुनाफा

  • 1 एकड़ भूमि से औसतन 80–120 क्विंटल तक तोरई की उपज मिल सकती है।

  • मंडियों में तोरई का भाव आमतौर पर ₹10 से ₹25 प्रति किलो तक रहता है।

  • यानी कि एक एकड़ से ₹80,000 से ₹2,50,000 तक की आमदनी संभव है – वो भी सिर्फ 2-3 महीनों में!

निष्कर्ष:

तोरई की खेती उन किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है जो कम लागत में सुरक्षित और जल्दी मुनाफा चाहते हैं। यदि उन्नत बीज, सही मौसम और थोड़ी तकनीकी समझ के साथ इस फसल को किया जाए, तो यह हर छोटे-बड़े किसान के लिए एक स्थायी आय का स्रोत बन सकती है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):

Q1: तोरई की बुवाई कब करें?
उत्तर: गर्मी में फरवरी–मार्च और बरसात में जून–जुलाई सबसे उपयुक्त समय है।

Q2: एक एकड़ में कितना बीज लगता है?
उत्तर: लगभग 2.5 से 3 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

Q3: तोरई की कौन-कौन सी उन्नत किस्में हैं?
उत्तर: अरका सुशील, पूसा नसदर, और NS-621 जैसी किस्में अच्छी हैं।

Q4: तोरई की फसल में कौन सी खादें उपयोगी हैं?
उत्तर: गोबर खाद, डीएपी, और जैविक खादों का संतुलन उपयोग करें।

Q5: तोरई की फसल से कितना मुनाफा हो सकता है?
उत्तर: मंडी भाव के अनुसार 1 एकड़ से ₹80,000 से ₹2.5 लाख तक की आमदनी हो सकती है।


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