Kishor Dhakad
19-08-2025खरीफ फसलें बरसात के मौसम में बोई जाती हैं और इनकी बुवाई जून से जुलाई तक होती है। धान, मक्का, सोयाबीन, बाजरा और कपास जैसी खरीफ फसलें किसानों की आमदनी और देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मौसम और जलवायु परिस्थिति के आधार पर फसलों को 3 भागों में बाटा गया है, जिसमे आती है खरीफ यानि की गर्मी में बोई जाने वाली फसलें, रबी फसलें यानि की सर्दी के मौसम में बोई जाने वाली फसलें और जायद यानि की रबी और खरीफ के समय के बीच बोई जाने वाली फसलें।इस लेख में हम खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों और उनके महत्व के बारे में जानेंगे। खरीफ फसलों की खेती भारत में बड़े पामने पर होती है क्योंकि इस समय वर्षा होती है जिससे सूखे क्षेत्रों में भी फसलों कि बुवाई हो जाती है। ये फसलें आमतौर पर जून-जुलाई में बोई जाती हैं और मानसून के अंत में, यानी सितंबर-अक्टूबर में काटी जाती हैं। इन फसलों को वर्षा ऋतु के प्रारंभ में बोया जाता है।इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। चावल, मक्का, बाजरा, रागी, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली, कपास आदि सभी खरीफ फसलें हैं।अब हम इन फसलों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
धान या चावल
धान एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है।इसे सरलता से जेनेटिकली अंतरण करने लायक होने की क्षमता हेतु जाना जाता है। धान से ऊपर का छिलका हटाने से चावल प्राप्त होता है। चावल सम्पूर्ण पूर्वी जगत में प्रमुख रूप से खाए जाने वाला अनाज है।चावल की पारंपरिक खेती में तरुण अंकुरों को रोपते समय या उसके बाद खेतों में पानी भर दिया जाता है। इस विधि के लिए अच्छी सिंचाई जरूरी होती है, लेकिन यह जंगली घास और कीटों की वृद्धि को रोकने में मदद करती है। परंपरागत विधि से लगभग 25–30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है।सुधारित किस्मों और विधियों से 50 क्विंटल या उससे अधिक प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है। भारत में चावल उत्पादन कृषि क्षेत्र की रीढ़ है, जो करोड़ों किसानों की आय और देश की खाद्य सुरक्षा का मुख्य स्रोत है।
मक्का
भारत के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर 2700 मीटर उँचाई वाले पहाडी क्षेत्रों तक मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है तथा बलुई, दोमट मिट्टी मक्का की खेती के लिये बेहतर समझी जाती है। आज जब गेहूँ और धान मे उपज बढ़ाना कठिन होता जा रहा है, मक्का पैदावार के नये मानक प्रस्तुत कर रही है। भारत में राजस्थान में मक्का का सर्वाधिक क्षेत्रफल है व कर्नाटक में सर्वाधिक उत्पादन होता है।मक्का की अच्छी उपज के लिए जरूरी है कि समय पर बुवाई, निराई-गुड़ाई, खरपतवार नियंत्रण, संतुलित उर्वरक का उपयोग करे। यदि सघन पद्धति अपनाई जाए और संकर किस्में बोई जाएं, तो 35–40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज आसानी से मिल सकती है। मक्का अल्प अवधि की फसल है, इसलिए यह बहु फसली खेती के लिए भी काफी उपयोगी मानी जाती है।
ज्वार
ज्वार एक प्रमुख फसल है। ज्वार कम वर्षा वाले क्षेत्र में अनाज तथा चारा दोनों के लिए बोई जाती हैं। ज्वार जानवरों का महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारा हैं। भारत में यह फसल लगभग सवा चार करोड़ एकड़ भूमि में बोई जाती है। यह खरीफ की मुख्य फसलों में है। यह एक प्रकार की घास है जिसकी बाली के दाने मोटे अनाजों में गिने जाते हैं। ज्वार की खेती उत्तर प्रदेश के झांसी, हमीरपुर, जालौन, बांदा, फतेहपुर, इलाहाबाद, फर्रूखाबाद, मथुरा और हरदोई जिलों में अधिक होती है। बुवाई के समय इलाके के अनुसार सही किस्म का चुनाव करना जरूरी है। ज्वार की खेती के लिए बलुई दोमट या ऐसी जमीन बेहतर होती है, जिसमें पानी आसानी से निकल सके। बुंदेलखंड क्षेत्र में ज्वार की खेती आमतौर पर मध्यम भारी और ढलान वाली जमीन में की जाती है।
बाजरा
बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना, तथा ऊँचा तापक्रम झेल जाना।यही कारण है कि यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां मक्का या गेहूँ नही उगाये जा सकते। इस अनाज की खेती बहुत सी बातों में ज्वार की खेती से मिलती जुलती होती है। बाजरे के खेतों में खाद देने या सिंचाई करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती।इसके लिये किसी बहुत अच्छी जमीन की आवश्यकता नहीं होती और यह साधारण से साधारण जमीन में भी प्रायः अच्छी तरह होता है। यहाँ तक कि राजस्थान की बलुई भूमि में भी यह अधिकता से होता है।
दलहन
खरीफ मौसम में प्रमुख दालहन फसलें अरहर (तूर), मूंग और उड़द होती हैं। इनकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है और फसल सितंबर से अक्टूबर तक तैयार हो जाती है। ये फसलें कम पानी और मध्यम उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी होती हैं, इसलिए सूखे क्षेत्रों में भी इनका उत्पादन लाभदायक होता है। दालहन फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती हैं, जिससे अगली फसलों को भी लाभ होता है। खरीफ में दालहनों की खेती किसानों के लिए आय और मिट्टी दोनों के लिए फायदेमंद मानी जाती है।
तेलहन
खरीफ मौसम में प्रमुख तिलहन फसलें जैसे सोयाबीन, मूंगफली, तिल और सूरजमुखी उगाई जाती हैं। इनकी बुवाई जून-जुलाई में होती है और फसल सितंबर-अक्टूबर तक तैयार हो जाती है। ये फसलें खाद्य तेल, पशु चारा और उद्योगों में उपयोग के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। तिलहन फसलें कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं, जिससे ये सूखे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं। ये फसलें किसानों को अच्छी आय देती हैं और कई किस्में मिट्टी की उर्वरता भी सुधारती हैं। इसके अलावा, इनसे स्वदेशी तेल उत्पादन को बढ़ावा मिलता है और विदेशी तेल पर निर्भरता घटती है।
शर्करा फसलें
खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख शर्करा फसल गन्ना है, जो भारत की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल मानी जाती है। इसकी बुवाई आमतौर पर फरवरी से जून तक की जाती है और यह लगभग एक साल में तैयार होती है। गन्ने से चीनी, गुड़, शीरा और एथेनॉल जैसे कई उपयोगी उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जिससे यह उद्योगों के लिए भी अहम है। यह फसल किसानों को लंबी अवधि तक स्थायी आय देती है और इसके अवशेष जैसे पत्तियाँ और ठूंठ पशु चारा और जैविक खाद के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं। गन्ने की खेती से ग्रामीण रोजगार में वृद्धि, भूमि का बेहतर उपयोग और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान भी होता है।
अतः ये फसलें खरीफ ऋतु में उगाई जाती हैं।ये फसलें अधिक तापमान व नमी में अच्छी तरह उगती हैं, तथा इनमें कम सिंचाई, कम लागत में अधिक उत्पादन की क्षमता होती है। इनसे अन्न, तेल, चीनी, चारा और आय का स्रोत मिलता है। खरीफ फसलें कृषि अर्थव्यवस्था का आधार हैं और किसानों के लिए लाभकारी व उपयोगी सिद्ध होती हैं।
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