Land Preparation & Soil Health 
                        
खाद एवं रासायनिक उर्वरक 
औषधीय पौधों की खेती रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना करना चाहिए। अच्छे विकास लिए जैविक खाद जैसे कि फार्म यार्ड खाद (FYM), वर्मी-खाद, हरी खाद आदि का उपयोग प्रजातियों की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।
                    
                    
                           Crop Spray & fertilizer Specification 
                        
आप जानते है सतावर या शतावरी एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है, सतावर एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाए के लिए किया जाता है सतावर औषधीय पौधों की अंतर्गत आता है जिससे इस पौधे की मांग तो बड़ी ही साथ ही इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है। यह एक झाड़ी वाला पौधा है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-3 मीटर और इसकी जड़ेंगुच्छे में होती है। इसके फूल शाखाओं में होते हैं और 3 सैं.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के और अच्छी सुगंध वाले होते हैं और 3 मि.मी. लंबे होते हैं। इसका परागकोष जामुनी रंग का और फल जामुनी लाल रंग का होता है। भारत के आलावा सतावर की खेती नेपाल, चीन, बंगलादेश, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में यह अरूणाचल प्रदेश, आसाम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल और पंजाब राज्यों में पाया जाता है।
                    
                    
                           Weeding & Irrigation 
                        
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
सिंचाई
रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई की जाती है। इसे एक माह तक नियमित रूप से 4-6 दिन के अंतराल पर किया जाए और इसके बाद साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई की जाए।
                    
                    
                           Harvesting & Storage 
                        
फसल की कटाई
24 से 40 माह की फसल हो जाने पर सतावर की जड़ों की खुदाई कर ली जाती है। खुदाई का उपयुक्त समय अप्रैल-मई माह का होता है जब पौधों पर लगे हुए बीज पक जाएं। ऐसी स्थिती में कुदाली की सहायता से सावधानीपूर्वक जड़ों को खोद लिया जाता है।
उत्पादन 
शतावरी की फसल 16 महीने में खोदने लायक हो जाती हैं खुदाई करते समय ध्यान रखे की इसके जड़े न कटे, न छिले और न ही भूमि में रहे। वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने पर भारत के अनेक राज्यों में किसान इस समय प्रति पौध 5 से 7 किलो जड़ों का उत्पादन भी ले रहे है।
सामान्यतः शतावरी की पैदावार प्रति पौध 1 से 2 किलो गीली जड़े मानकर भी चले तो लगभग 12000 से 14000 किलो (12-14 टन) गीली जड़े प्रति एकड़ प्राप्त हो जाती है।