जानिए मूंग की खेती का सही तरीका, किसान गर्मियों में करें मूंग की बुवाई
जानिए मूंग की खेती का सही तरीका, किसान गर्मियों में करें मूंग की बुवाई
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जैसा की हम सभी जानते है की मुंग एक महत्वपुर्ण दलहनीय फसल है जिसकी खेती भारत और मध्य एशिया में व्यापक रूप से की जाती है मुंग की फसल में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है मुंग की दाल हम सभी के घरो में खाई जाती है। इस फसल की सबसे अच्छी बात यह है की किसान तीनो मौसम में इसकी खेती कर सकता है अधिक उपज प्राप्त  करने के लिए गर्मी का मौसम इसकी बुवाई के लिए अच्छा माना जाता है।
मूंग की फसल भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है, गर्मियों में मूंग की खेती करना अच्छा होता है क्योंकि गर्मियों में मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होती है, भूमि के भौतिक, जैविक और रासायनिक गुणों में सुधार होता है। इसके अलावा कीटों और बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है। मूंग की खेती पूरे भारत में की जाती है, इस फसल में जो फली आती है उसका आकार अंडाकार होता है। मूंग की दाल में फाइबर और आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण इसे पचाना बहुत आसान होता है, मूंग की दाल का सेवन करने से ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है।

आइए जानते हैं मूंग की खेती कैसे करें
जलवायु और तापमान
तापमान की बात करें तो मूंग की खेती में तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए और वही जलवायु गर्म और आर्द्र होनी चाहिए, मध्यम बारिश के साथ इसकी खेती करनी चाहिए, मूंग की खेती में अत्यधिक जल जमाव हानिकारक है।

खेती के लिए मिट्टी
मूंग की फसल की सबसे अच्छी बात यह है कि इस फसल को सभी प्रकार की मिट्टी जैसे दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी में बोया जा सकता है। जलभराव के बजाय मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।

मूंग की फसल बोने का सही समय
इस फसल को गर्मी के मौसम में बोना अच्छा माना जाता है। 15 मार्च से 15 अप्रैल तक किसान मूंग की बुवाई कर सकते हैं, वे चाहें तो फरवरी के अंतिम सप्ताह में भी मूंग की बुवाई कर सकते हैं। उनकी सिंचाई सुविधा के अनुसार

जुताई और भूमि की तैयारी
अच्छी समतल और खरपतवार मुक्त भूमि होनी चाहिए। ग्रीष्म ऋतु की फसल को तत्काल सिंचाई की आवश्यकता होती है। 1 से 2 जुताई करके खेत तैयार कर लिया जाता है।

उन्नत किस्में 
1.  टॉम्बे जवाहर मूंग-3 (टी.जे. एम -3)
जारी करने का वर्षः-2006
केन्द्र का नामः-जवहार लाल नेहरू कृषि विश्व विधालय जबलपुर
अवधि - 60-70 दिन 
उपज -10-12 क्विंटल / हेक्टेयर
ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिए उपयुक्त
फलियाँ गुच्छो में लगती है
एक फली मे 8-11 दाने
100 दानो का बजन 3.4-4.4 ग्राम
पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु प्रतिरोधक

2. जवाहर मूंग -721
जारी करने का वर्षः 1996
केन्द्र का नामः कृषि महाविधालय इन्दोर
अवधि - 70-75 दिन
उपज - 12-14 क्विंटल / हेक्टेयर
पूरे मध्यप्रदेश में ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त
पौधे की उंचाई 53-65 सेमी
3-5 फलियाँ एक गुच्छे मे
एक फली में 10-12 दाने
पीला मोजेक एवं पाउडरीमिल्डयू रोग सहनशील

3. के - 851
जारी करने का वर्षः 1982
केन्द्र का नामः- चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौघोगिकी विश्व विघालय, कानपुर
अवधि - 60-65 दिन (ग्रीष्म)
अवधि - 70-80 दिन (खरीफ)
उपज - 8-10 क्विंटल / हेक्टेयर
उपज - 10-12 क्विंटल / हेक्टेयर
ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त
पौधे मध्यम आकार के (60-65 सेमी.)
एक पौधो मे 50-60 फलियाँ
एक फली मे 10-12 दाने
दाना चमकीला हरा एवं बडा
100 दानो का बजन 4.0-4.5 ग्राम

4. एच.यू.एम. 1 (हम -1)
जारी करने का वर्षः 1999
केन्द्र का नामः- बनारस हिंदू विश्वविधालय, वाराणसी
अवधि - 65-70 दिन
उपज - 8-9 क्विंटल / हेक्टेयर
ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त
पौधे मध्यम आकार के (60-70 सेमी.)
एक पौधे मे 40-55 फलियाँ
एक फली मे 8-12 दाने
पीला मोजेक एवं पर्णदाग रोग के प्रति सहनशील

5. पी.डी.एम - 11
जारी करने का वर्षः 1987
केन्द्रः-भारतीय दलहन अनुसंधान केन्द्र, कानपुर
अवधि - 65-75 दिन
उपज - 10-12 क्विंटल / हेक्टेयर
ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त
पौधे मध्यम आकार के (55-65 सेमी.)
मुख्य शाखये मध्यम (3-4)
परिपक्व फली का आकार छोटा
पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी

6.  पूसा विशाल
जारी करने का वर्षः 2000
केन्द्रः- भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र- नई दिल्ली
अवधि - 60-65 दिन
उपज - 12-14 क्विंटल / हेक्टेयर
ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिये उपयुक्त
पौधे मध्यम आकार के (55-70 सेमी.)
फली का साइज अधिक (9.5-10.5 सेमी.)
दाना मध्यम चमकीला हरा
पीला मोजेक रोग सहनशील