कालमेघ की खेती: कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली औषधीय फसल

कालमेघ की खेती: कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली औषधीय फसल
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Kisaan Helpline

Crops Jul 31, 2025

भारत के पारंपरिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में कालमेघ एक बेहद महत्वपूर्ण औषधीय पौधा माना जाता है। इसे आम भाषा में "कडू चिरायता" या "भुईनीम" के नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम "एन्ड्रोग्राफिस पेनीकुलेटा" है। यह पौधा दिखने में हल्का सा पहाड़ी चिरायता जैसा लगता है और देश के कई राज्यों में प्राकृतिक रूप से उगता है।

 

पौधे की विशेषताएं

·         यह एक शाकीय पौधा है जिसकी ऊँचाई करीब 1 से 3 फीट तक होती है।

·         इसके फूल छोटे और सफेद होते हैं जिनमें हल्की बैंगनी लहर भी दिखती है।

·         बीज छोटे और भूरे रंग के होते हैं, जो इसकी छोटी फली में उगते हैं।

·         इसका स्वाद अत्यधिक कड़वा होता है, लेकिन इसके औषधीय गुण इसे बेहद उपयोगी बनाते हैं।

 

औषधीय उपयोग

·         कालमेघ का इस्तेमाल आयुर्वेद, होम्योपैथी और एलोपैथिक दवाओं में बड़े पैमाने पर होता है।

·         यह जिगर (लिवर) की बीमारियों को ठीक करता है।

·         मलेरिया, पुराना बुखार, त्वचा रोग और खून साफ करने में इसका इस्तेमाल फायदेमंद है।

·         इसके पत्तों में पाया जाने वाला एन्ड्रोग्राफोलाइड नाम का कड़वा तत्व दवा बनाने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

 

सक्रिय रसायन

इस पौधे में पाए जाने वाले प्रमुख रसायन हैं:

·         एंड्रोग्राफोलाइड

·         एंड्रोग्राफिन

·         पेनीकोलिंग

·         फ्लैवोन एंड्रोग्राफिस

·         पेनीकुलिन

 

इनकी गुणवत्ता इतनी बेहतर होती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी कालमेघ को आधुनिक दवाओं में शामिल किया है।

 

जलवायु और क्षेत्र

·         कालमेघ को समुद्र तल से लेकर 1000 मीटर ऊँचाई तक उगाया जा सकता है।

·         भारत के पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात और दक्षिण राजस्थान में यह फसल आसानी से होती है।

·         उष्ण और अर्द्ध-उष्ण क्षेत्र, जहाँ वर्षा 500 से 1400 मिमी तक हो और तापमान 5°C से 45°C के बीच हो, वहाँ यह अच्छा उत्पादन देती है।

 

मिट्टी और खेत की तैयारी

·         बलुई और अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टी कालमेघ के लिए उपयुक्त होती है।

·         मिट्टी का pH स्तर 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

·         गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें और अंतिम जुताई में 2 टन गोबर खाद प्रति बीघा मिलाएँ।

 

खाद एवं उर्वरक

·         15 से 30 किलो फॉस्फोरस

·         15 किलो पोटाश

·         25 किलो "टाटा स्टील धुर्वी गोल्ड" प्रति बीघा

इन खादों को बोनी से पहले खेत में मिला दें।

 

बीज और रोपणी की विधि

·         सीधी बुआई के लिए 5 किलो बीज प्रति बीघा लगता है।

·         रोपणी के लिए 15-20 मई के बीच छायादार स्थान पर क्यारी बनाएं (1x20 मीटर)।

·         बीज बोने से पहले 0.2% बाविस्टीन से उपचार जरूर करें।

 

रोपण और दूरी

·         एक माह में पौधे 10-15 सेमी हो जाते हैं, तब खेत में रोपें।

·         पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखें।

·         रोपण का समय जून-जुलाई उचित है।

 

सिंचाई और गुड़ाई

·         30-40 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें।

·         जरूरत अनुसार ही सिंचाई करें।

·         प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से खाद दें।

 

कटाई और उत्पादन

·         पहली कटाई फूल आने पर करें (10-15 सेमी ऊँचाई से)।

·         दूसरी कटाई फिर से फूल आने पर करें।

·         तीसरी कटाई बीज पकने के बाद करें।

·         पौधों को सुखाकर बोरे में सुरक्षित रखें।

 

रोग और कीट नियंत्रण

·         पौध गलन से बचने के लिए बीज को बाविस्टीन से ट्रीट करें।

·         नीम की खली व जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें।

 

अंतरवर्तीय खेती

कालमेघ को नीलगिरी, आँवला, पॉपुलर आदि के साथ लगाया जा सकता है।

 

उपज और बाजार मूल्य

·         एक बीघा से 12 से 18 क्विंटल सूखा शाक (भूसा) मिलता है।

·         बाजार में इसका भाव लगभग ₹90 से ₹95 प्रति किलो है।

·         यानी कम लागत में अधिक मुनाफे की खेती।

 

भंडारण

कटाई के तुरंत बाद पौधों को हवादार स्थान में सुखाकर बोरों में भरकर स्टोर करें।

 

अगर आप किसान भाई कम लागत में अधिक मुनाफा चाहते हैं और साथ ही आयुर्वेदिक औषधीय खेती की ओर बढ़ना चाहते हैं तो कालमेघ आपके लिए उत्तम विकल्प है। इसकी मांग देश-विदेश में लगातार बढ़ रही है। बाजार कीमत अच्छी है और इसकी खेती आसान भी है।




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