लौकी की खेती एवं महत्व
 लौकी की खेती एवं महत्व

लौकी की खेती एवं महत्व

डॉ लाल विजय सिंह1 , डॉ. अमित कुमार सिंह1, अमित सिंह2विकाश सिंह सेंगर3

  1. (सहायक अध्यापक, उद्यान विभाग) जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया (यूपी)
  2. (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून
  3. (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून

 

बेलवर्गीय कुकुरविटेशी सब्जियों में लौकी का प्रमुख स्थान है। इसे कद्दू या भैया के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खेती हमारे देश में लगभग सभी प्रदेश में की जाती हैं क्योंकि यह औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं। भारत में इसकी व्यापारिक खेती पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में की जाती है इस की व्यापारिक खेती से अधिक आय प्राप्त होती है।

      लौकी का जन्म स्थान उत्तरी अफ्रीका माना जाता है वहां से यह अनेक माध्यमों द्वारा अन्य देशों में पहुंची। इसकी खेती विश्व भर में गर्म जलवायु वाले देशों में की जाती है जब इसके फल पूर्ण रूप से तैयार होकर कठोर हो जाते हैं तो इन से अनेक प्रकार के सजावटी सामान बनाए जाते हैं इनके कठोर आवरण को पानी का जग, घरेलू बर्तन, चम्मच, फैंसी आभूषण, बर्ड हाउस, संगीत वाद्य यंत्र तथा अनेक सामान बनाए जाते हैं कुछ खेती की किस्मों के फल 1 मीटर (लगभग 3 फीट) से अधिक लंबे हो सकते हैं पौधों को बीज से आसानी से उगाया जा सकता है लेकिन परिपक्व होने के लिए लंबे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है।

पोषक तत्व एवं औषधीय गुण

        लौकी के हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाईयां, रायता, आचार, कोपता, खीर आदि बनाई जाती हैं। इसकी पत्तियों तनों और गुदो से अनेक प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं। लौकी का शारीरिक प्रभाव ठंडा होता है सुपाच्य होने के कारण चिकित्सक रोगियों को इस की सब्जी खाने की सलाह देते हैं और इसके साथ ही हृदय के लिए भी काफी फायदेमंद होता है और यहां तक कि नींद संबंधी विकारों को कम करने में मदद करता है।

लौकी में पोषक तत्व (प्रति 100 ग्राम)

पोषक तत्व               

प्रति 100Gm

नमी                      

96.1gm

प्रोटीन                           

0.2gm

वसा                     

0.1gm

खनिज पदार्थ                

0.5gm

रेशा                

0.60gm        

कार्बोहाइड्रेट                

2.50gm                

कैल्शियम                 

20.00mg             

फास्फोरस                  

10.00mg                 

लोहा                   

0.70mg               

सोडियम

1.80mg      

पोटैशियम                  

87.00mg             

तांबा                  

0.30mg             

गंधक                     

10.00mg              

थायमिन                   

0.03mg          

निकोटीनिक अम्ल          

0.20mg     

विटामिन 'सी'            

6.00mg      

 

जलवायु

        लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है दिन में 30 -35 डिग्री सेल्सियस और रात में 18 - 22 डिग्री सेल्सियस तापमान की इसकी वृद्धि एवं फलन के लिए उपयुक्त माना जाता है। लौकी पाले को सहन करने में बिल्कुल असमर्थ होता है। लौकी  गर्मी वह वर्षा दोनों ऋतु में उगाई जाती है अधिक वर्षा और बादल वाले दिन रोग एवं कीटों के प्रकोप में सहायक होते हैं।

मृदा

     लौकी को विभिन्न प्रकार की मृदा में उगाया जाता है किंतु उचित जल निकास वाली जीवांश मुक्त हल्की दोमट मृदा इसकी सफल खेती हेतु सर्वोत्तम मानी जाती है। नदियों के किनारे वाली भूमि भी इसके सफल उत्पादन हेतु अच्छी रहती है। इसके अलावा उदासीन पीएच मान वाली भूमि में भी इसकी खेती सुगमता पूर्वक की जा सकती है।

 क़िस्में

        लौकी  की बहुत सी किसमें हमारे देश में उगाई जाती है जो कि फलों के आकार एवं आकृति के आधार पर गोल तथा लंबी दो प्रमुख समूह है।

पूसा समर प्रोलीफिक लॉन्ग:  यह क़िस्म IARI से विकसित की गई है यह ग्रीष्म एवं वर्षा दोनों ऋतु में उपयुक्त है फल 40 से 50 सेंटीमीटर लंबे होते हैं इसके अलावा पूसा नवीन, पंजाब कोमल, और अर्का बहार आदि लंबे फल वाली किस्में है।

पूसा समर प्रोलीफिक राउंड:  फल गोल चिकने व हरे ग्रीष्म व वर्षा दोनों मौसम में उगाने हेतु उपयुक्त होते हैं इसके अलावा पूछा संदेश, पंजाब गोल , आदि गोल फल वाली किसमें है।

बीज एवं बुवाई

            लौकी का प्रवर्धन बीज द्वारा ही होता है गर्मी वाली फसलों के लिए 4 - 6 kg बीज  तथा वर्षा कालीन फसल के लिए 3 - 4 kg बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है भारत के मैदानी क्षेत्र में लौकी की बुवाई ग्रीष्मकालीन फसल में फरवरी से मार्च तक वर्षा कालीन फसल को जून से जुलाई में किया जाता है।

सिंचाई एवं उर्वरक

       लौकी की फसल में सिंचाई इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस मौसम में उगाया जा रहा है। ग्रीष्मकालीन फसल में अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। आवश्यकता अनुसार 7 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी पड़ती है और वर्षा कालीन फसल में प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  यदि लंबी अवधि तक वर्षा ना हो तो सिंचाई कर देनी चाहिए।

     इसके लिए कार्बनिक पदार्थ युक्त भूमि होनी चाहिए आत: खेत की तैयारी के समय 50-60 टन गोबर की खाद खेत में डाल देनी चाहिए। इसके अलावा 50 kg नाइट्रोजन 60 kg फास्फोरस तथा 100 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष मात्रा दो बार में डालना चाहिए इससे हमारी उपज बढ़ जाती है।

फलों की तोड़ाई

           फलों की तोड़ाई उसकी उगाई जाने वाली किस्मों पर निर्भर करती है फलों को तोड़ने में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इसके फलों को कोमल अवस्था में ही तोड़ना चाहिए जब उस अवस्था में तोड़ दिया जाए तब फल का छिलका कोमल, चमकीला और रोवें वाला हो साथ की बीज भी कच्ची अवस्था में हो।

उपज

 लौकी की  उपज प्रति हैक्टेयर लगभग 150 से 200 क्विंटल फल मिल जाते हैं कुछ क़िस्में जैसे पूसा संकर 3 और अर्का बहार नामक किस्मो से 400 से लेकर 450 क्विंटल तक ऊपर सुगमता से मिल जाते हैं अगर इस विधि से इसकी खेती की जाए तो।