शैल उद्यान (ROCK GARDENING)
शैल उद्यान (ROCK GARDENING)

शैल उद्यान (ROCK GARDENING)

डॉ लाल विजय सिंह1 , डॉ. अमित कुमार सिंह1 ,विकाश सिंह सेंगर2 अमित सिंह3
  1. (सहायक अध्यापक, उद्यान विभाग) जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया (यूपी)
  2. (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून
  3. (सहायक अध्यापक) शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, देहरादून

शैल उद्यान से अभिप्राय: ऐसा उद्यान या उद्यान के भाग से है जिसमें किसी बड़े छायादार वृक्ष के नीचे कंकड़ पत्थर और मिट्टी का छोटा अथवा बड़ा ढेर लगाकर कुछ पौधे जो छाया को सहन कर सकें और सुखी दशा में भी फल-फूल दे सकें, उसे उगाया जाता है। जिससे भू-दृश्य अधिक सुंदर दिखें। शैल उद्यान इस प्रकार से बनाई जाती है, कि जिससे वह प्राकृतिक पहाड़ी के समान दिखाई दे। शैल उद्यान में मिट्टी तथा शैलों-पत्थरों से इस प्रकार व्यवस्था की जाती है जिस पर वह विभिन्न प्रकार के पौधे उगाने की परिस्थिति उत्पन्न हो सके। शैल उद्यान मानव निर्मित होते हैं अत: ये शैल उद्यान कृत्रिम होते हैं परन्तु इनकी दृश्यावली विन्यास प्राकृतिक होती है।

शैल उद्यान की स्थिति

शैल उद्यान, उद्यान के क्षेत्र में स्थित होना चाहिए क्योंकि, शैल उद्यान को धूप तथा प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसे लंबे वृक्ष के छाये से दूर स्थित करना चाहिए। इसके दक्षिण भाग पर धूप चाहने वाले पौधे तथा उत्तरी भाग पर छाया चाहने वाले पौधे लगाना उत्तम होता है। शैल उद्यान 2000 - 2500  मीटर ऊँचाई पर बनाना चाहिए जहाँ पर सूर्य की धूप व प्रकाश अच्छी तरह से प्राप्त हो सकें। जल निकास की अच्छी सुविधा होना चाहिए।

स्थान का चयन

शैल उद्यान के निर्माण में सबसे पहली एवं जरूरी आवश्यकता स्थान की चयन का होता है। इसके निर्माण के लिए खुलीधूप वाले  ऊँचे स्थानों को चुना जाता है क्योंकि शैल उद्यान में उगने वाली प्रजातियां अधिक छाँव में मुरझा जाती हैं।  स्थान ऊँचा नीच खुली जगह पर वृक्ष, घरों और इमारतों से दूरी पर होनी चाहिए। भूमि उचित जल निकास वाली, परम्परागत उद्यानों, बड़े वृक्षों से दूर होना चाहिए। यदि उद्यान के लिए निचला स्थान चुना है, तो फालतू पानी के निकास के लिए उचित जल निकास का प्रबंध करना चाहिए। ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहाँ जमीन में थोड़ा ढाल हो। यदि ऐसा स्थान उपलब्ध नहीं है तो अनियमित   आकार की क्यारियाँ या ढेर बनाने चाहिए।  ढेर 60-90 सेंटीमीटर से अधिक ऊंचे नहीं होने चाहिए। शैल उद्यान जहाँ तक संभव हो प्राकृतिक होना चाहिए। शैल उद्यान छोटा या बड़ा हो सकता है ये स्थान की उपलब्धि परनिर्भर करता है शैल उद्यानों को तेज हवा से बचाने के लिए प्रबंध करना अति आवश्यक होता है। निचले पौधे के लिए एलपाइन पौधा को लगाना चाहिए क्योंकि वे घने उगते हैं। शैल उद्यान पूर्व की ओर होना चाहिए। छाया चाहने वाले पौधे को बड़े पत्थरों और फैलाने वाली झाड़ियों की छाया प्रदान करनी चाहिए।

शैल क्या होती है /चट्टानें

शैल उद्यान के निर्माण में चट्टानों को लगाना एक प्रमुख कारण होता है ऐसे चट्टानों का चयन करना चाहिए जो देखने में आकर्षक लगे। परंतु उसका चयन स्थानीय आपूर्ति के ऊपर निर्भर करता है। प्रमुख रूप से सेल चट्टानों को दो भागों में विभक्त किया जाता है या यह दो प्रकार के पाए जाते हैं

1 Stratified

2 Unstratified

Stratified सेल क्यारियों के लिए उत्तम होते हैं जिन्हें Horizontal रूप से बिछाया जाता है जिन्हें बिछाने के समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसका प्रभाव प्राकृतिक हो। लाइमस्टोन और सैंडस्टोन इस कार्य के लिए सबसे अच्छे होते हैं। unstratified चट्टानों को प्राप्त करना कठिन होगा क्योंकि जिन्हें दूर से लाना पड़ता है और इसमें काफी खर्च हो जाता है

जहां पर बोल्डर्स (बड़े शैल) का उपयोग संभव हो हालांकि वहाँ पर पौधे नहीं उगते हैं। शौकीनों के लिए स्थानीय शैलो का उपयोग करना लाभदायक रहता है ऐसी शैल एक जैसी मिल जाती हैं। ये अप्राकृतिक प्रभाव प्रदर्शित करती हैं।

मिट्टी/मृदा

शैल/चट्टान पौधे पूर्ण रूप से चट्टानों पर नहीं उग सकते हैं। अतः इस की बढ़वार के लिए मृदा या मिट्टी का होना अति आवश्यक होता है। पौधों को उगाने के लिए उचित जल निकास वाली मृदा अच्छी होती है। इसमे अपने बजट या खर्च के अनुसार जो भी माध्यम उपलब्ध हो उसका उपयोग कर सकते हैं। उत्तम माध्यम बनाने के लिए रेत, लाइमस्टोन चिपिंग या पीट को डालना चाहिए। तथा चुने का भी प्रयोग करते हैं।

इसके लिए प्रमुख रूप से सिल्टी दोमट से दोमट भूरी मृदायें या हल्की भूरी से भूरी जिसमें पत्थरों के टुकड़े, पत्थर और बोल्डर्स, रेतीली दोमट से दोमट या दोमट से सिल्टी दोमट और  हल्के से गहरा भूरा इत्यादि मिट्टी सबसे अच्छी होती है।

 उद्यान का रूपरेखा कैसे बनाये/ले-आउट तैयार करना या निर्माण विधि

    शैल-उद्यान अलंकृत उद्यानों की स्थायी तथा महत्वपूर्ण संरचना होती है। अतः इसकी स्थलकृति का चयन सावधानीपूर्वक बनायी गई योजना द्वारा किया जाना चाहिये।

  • शैल-उद्यान के आस पास जल-उद्यान का होना अति अकर्षक, दृश्यावली उत्पन्न करता है ।
  • शैल उद्यान से निकली टेढ़ी-मेढ़ी जल धारायें जलाशय तक मिला देनी चाहिये।
  • शैल उद्यान पर जल - प्रपात अति सुन्दर प्रतीत होता है जिसका सम्बन्ध जल धाराओं द्वारा जलाशय तक हो।
  • पहले मिट्टी का टील्ला (mound) बनाया जाता है। टील्ले को पहले सुदृढ़ बना लेना चाहिये। पत्थरों तथा चट्टानों को इस प्रकार स्थापित करना चाहिये जिससे पौधों की जड़ों को सरंक्षण प्राप्त हो।
  • पत्थरों को तिरछा-ढलाव की स्थिति में स्थापित करना चाहिये जिससे वर्षा का जल पौधों को उपलब्ध हो सकें।
  • कोई भी चट्टान पौधों पर झुकी नहीं होनी चाहिये क्योंकि इससे पौधे को जल आपुर्ति नहीं हो सकेगी। पत्थरों को इस प्रकार व्यवस्थित करने का प्रयास करना चाहिये जिससे वे प्राकृतिक प्रतीत हो।
  • पत्थरों के बीच में पौधे लगाने के लिये गर्त छोड़ देने चाहिये जिनका आकार 15cm x 60cm होना चाहिये।
  • गड्ढों की आकृति अनियमित होनी चाहिये तथा इनकी संरचना इस प्रकार करनी चाहिये जिससे इनकी कम्पोस्ट बाहर न निकले।
  • पत्थरों को यदि पास पास रखना है तो उन्हें बिल्कुल सटा कर रखना चाहिये। पत्थरों को आधार से लगाना प्रारम्भ कर ऊपर शीर्ष की ओर लगाना चाहिये।
  • सभी पत्थरों को दृढ़ता से स्थापित कर देना चाहिये। इनके नीचे अथवा आस पास की मिट्टी ढिली नहीं छोड़नी चाहिये।
  • शैलाय के ढलान सीधे उर्ध्व नहीं होने चाहिये। सम्पूर्ण व्यवस्था कलात्मक एवं प्राकृतिक प्रतीत होनी चाहिये।
  • एक चौड़ा पथ, लगभग 45-60cm  चौड़ा शैलाय पर टेढा-मेढा घाटी एवं दरों में से जाता हुआ बनाना चाहिये जिसके द्वारा सम्पूर्ण शैल उद्यान  दृष्टिगत किया जा सके । पथ ग्रेवल या पग-पत्थरों (stepping stone) का बनाना चाहिये।
  • शैल उद्यान में अच्छे बड़े तथा सुस्थापित पौधे रोपित करने चाहिये । पौधों का आरोपण पर्वत श्रेणी के समान प्राकृतिक एवं सुन्दर प्रतीत होना चाहिये।
  • मैदानी क्षेत्रों में वर्षाकाल पादप रोपण के लिये सर्वोत्तम होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में बसन्त ऋतु में पादप रोपण करना चाहिये।
  • शैल उद्यान में चट्टानों का चयन तथा उनका विन्यास महत्वपूर्ण होता है सामान्यतः चट्टाने देशिक (local) उत्पत्ति को छिद्रित एवं ऋतु दलित प्रतित होनी चाहिये।
  • चुने के पत्थर (lime stone) उपयुक्त होती हैं । समाकार लगभग 60 cm के पत्थरों का चयन करना चाहिये ।
  • कुछ बड़ी चट्टानों का उपयोग करना भी उपयुक्त रहता है । पौधे केवल चट्टानों पर ही नहीं उगते हैं उनके लिये अच्छी मृदा की भी आवश्यकता होती है ।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक उपयुक्त मृदा सरलता से उपलब्ध हो जाती है ।
  • मैदानी क्षेत्रों में मोटे बालु युक्त मृदा उपयुक्त अनुपात में पत्तियों की खाद तथा FYM (गोबर की सड़ी खाद) पौधों के लिये उपयुक्त रहती है।
  • चट्टानीय श्रेणी के लिये ऊपर की 15-45 cm स्तर कम्पोस्ट मृदा से बनाया जाता है नीचे का टिल्ला (mound) मिट्टी का बनाया जाता है।
  • निम्न स्तर की मिट्टी में अच्छा जल निकास होना चाहिये तथा इसमें नमी बनाये रखने की क्षमता होनी चाहिये।

पौधों को कब लगाए/पौध लगाना Planting

             यदि शैल उद्यान बसंत ऋतु में बनाया गया हो , तो मानसून की प्रथम वर्षा उपरान्त पौधे लगाने चाहिए क्योंकि इस समय मिट्टी पूरी तरह से गीली हो जाती है । दूसरी यदि शैल उद्यान शरद ऋतु में बनाया गया है तो दिसम्बर की वर्षा के उपरान्त बसंत ऋतु में पौधे लगाना प्रारम्भ कर देना चाहिए । कभी - कभी चट्टानों को चिन्कस ( chinks ) पौधे उगाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है और जिसके कारण पौधे अच्छा प्रभाव नहीं दे पाते हैं । इस समस्या से बचने हेतु पौधों को शैल उद्यान के निर्माण के समय ही करना चाहिए और यदि यह सम्भव न हो चिन्क में पौधों को बंच (Bunch) में रखना चाहिए जिन्हें बाद में निकाल देना चाहिए और वांछित पौधे लगाने चाहिएँ। शैल उद्यान में दूरी का विशेष महत्त्व है जैसा कि अन्य उद्यानों में भी होता है। अत: घने पौधे नहीं लगाने चाहिएँ जब पौधे लगाएँ तो इस बात का ध्यान रखें कि उन्हें बढ़ने हेतु पर्याप्त जगह सके । छोटे तथा धीमी गति से बढ़ने वाले पौधों को बहुत निकट नहीं लगाना चाहिए । शैल उद्यान वाले पौधे पोकिटस , क्रीविसिज इत्यादि में अच्छी तरह स्थापित हो जाते हैं । यदि वे एक बार लग गये तो उन्हें उखाड़ना कठिन हो जाता है । अतः पौधों की उचित किस्मों का चयन बड़ी सावधानी से करना चाहिए । छोटे रेंगने वाले पौधों को 2 या 3 पत्थरों के जोड़ों में लगाना चाहिए । यदि बड़ा गेप है तो उसमें पौधे अच्छी तरह उगते हैं। क्रीविसीज में टिपीकल टाइप के पौधे उगाये जाते हैं परन्तु उन्हें चिकनी मिट्टी में नहीं उगाना चाहिए जबकि उसे अधो भूमि ( सतह से 30-45 सेमी० नीचे ) में रखनी चाहिए, विशेष रूप में ढलवा क्षेत्र में क्योमिइन पौधों की जड़ों को पर्याप्त मात्रा में वातन (Aeration ) की आवश्यकता होती है।

शैलीय उद्यान में प्रयुक्त होने वाले पौधे

      वास्तविक शैल उद्यान पर्वतीय श्रेणीयों में ही होते है अत: उनमें ही उपयुक्त पौधे लगाये जाते हैं तथापि अन्य जलवायु में विकसित शैलाय के लिये कैक्टस, सरस, फर्नस तथा अन्य शाकीय पौधे लगाये जाते हैं।

शैलीय उद्यान में निम्न पौधों को लगाया जाता है जो निम्न है-

  1. कैक्टस (Cactus)- नागफनी (Opentia),सिरिअस (Cereas),मैमिलेरिया (Mammillaria),
  2. सरस (Secculents)- अगेव (Agave),अलोय (Aloe),इयुफोर्बिबिय स्पलैन्डेन्स (Euphorbia splendense),गैस्टिरिया (Gasteria), युक्का (yucca), सैन्सिवियरा (Sanseviera),सिडियम(Sedium
  3. फर्नस(Ferns)-पोलिपोडियम (Polypodium),नैफरोडियम (Nephrodium),ड्राईनेरिया (Drynaria)
  4. क्षुप (Shrubs)- एडिनियम ओबैसम (Adeneum obesun),एसक्लिपियास कुरासाविक(Asclepias curassavica),केसिया अलाटा(Cassia alata),कलिस्टैमोन लैन्सियोलाट्स(Callestemon lancealatus) कलिरोडैन्डरोन मैक्रोसाइफोन(Cleradendrom macrosiphon), रुजैलिय जुनसिय (Russelia juncea), थुजा(Thuja)
  5. शाकीय पौधे(Herbaceous Plants) - एन्जिलोनिया ग्रैन्डिफ्लोरा (Angelonia grandiflora) एस्टर एमिलस (Aster amellus), डैकिआना सैन्ड्रयाना(Dracaena sanderiana),आकजैलिस रुबरा (Oxalis rubra),पोरचुलाका (Portulaca),पाइलिया मुस्कोसा (Pilea muscosa)
  6. पर्वतीय शैलाय के लिए पौधे - एडोनिस वरनेलिस(Adonis vermalis),एनिमोन (Anemone),कम्पैनुला (Campanula),आइरिस (Iris),लिलयम (Lilium),पोटैन्टिला (Potentila), प्राईमुला(Prinula), ट्युलिप(Tulip)

इनके अतिरिक्त बहुत से पुष्पीय शाकीय पौधे जैसे एलाइसम, एन्टीराइनम, बैलिस, कैन्डिटफ्ट, डायेन्थस, सालविया, वरबिना, वायलो इत्यादि से अलंकृत किया जा सकता है । इत्यादि जातियों के पौधे उपयुक्त रहते हैं।

शैल उद्यान की देखभाल

शैल उद्यानों की देखभाल को तीन भागों में विभक्त किया जाता है यथा बसंत (spring), ग्रीष्म(summer) और शरद(Autumn) ऋतु। पौधों की वानस्पतिक बढ़वार बसंत ऋतु में होती है। अतः उनकी सामान्य सफाई आवश्यक है सर्वप्रथम शाखाओं पर कीट व रोगों की रोकथाम हेतु पादप सुरक्षा उपाय करने चाहिए। यदि नवीन शाखाओं पर घोंघे व कीट लगे हों तो उनसे बचाव करना चाहिए। कभी-कभी पौधों पर फफूँदी जनित रोगों; जैसे - मृदुरोमिल (Downy mildew) और आर्द्र विगलन (Damping off ) जैसे रोगों का प्रकोप हो जाता है । मृदु रोमिल से बचाव हेतु सल्फर का बुरकाव (Dusting ) करना चाहिए आर्द्र विगलन के बचाव हेतु Seed pans या Boxes को Chest nut Compounds से अच्छी तरह धोना चाहिए। रतुवा (Rust) से बचाव हेतु बोड़ों मिश्रण (Bordeaux mixture) का छिड़काव करना चाहिए । चैंपा से बचाव हेतु निकोटिन का छिड़काव करना चाहिए । खरपतवारों को भी निकालना चाहिए ताकि वे बीज उत्पन्न न कर सकें। लिवर वार्ट और मौसेस ( Liver Worts and Mosses ) खट्टे और अपर्याप्त जल निकास वाले स्थानों में हो जाते हैं उन्हें हटाने हेतु पोटेशियम परमैगनेट वाला पानी लगाना चाहिए।

जहाँ पर भूमिगत सिचाई पद्धति का उपयोग असम्भव हो, वहाँ पर प्रथम गार्मियो मे जल्दी और पर्याप्त मात्रा में पानी देना चाहिए ताकि पौधों की जड़ें काफी गहरी नीचे जा सके होज पाइप से पानी नहीं देना चाहिए अन्यथा भूमि कटाव हो जायेगा । सिचाई के एक fine नोजिल का उपयोग करना चाहिए । विभिन्न पोधों को पानी की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे कि रोडेण्ड्रोन और अजिलिया की गर्म ऋतु में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। रोडेण्डोन एक अम्ल प्रिय पौधा है। लिलीज को भीगी ठण्डी मृदा (wet cold soil ) में उगाना चाहिए । इन्हें कोल्ड फ्रेम में रखने को सलाह दी जाती है और इन्हें मई में लगाना चाहिए। Narcissus को उचित जल निकास वाली गहरी दोमट भूमि की आवश्यकता है क्योंकि यह भूमि पर तीव्र गति से फैलती है। ताजी खाद दी गयी भूमि में पौधों को नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसी स्थिति में पौधों को फफूंदी जनित रोग लगने की आशंका रहती है । फूल पीले नारगी से सफेद रंग के होते हैं और इनकी किस्में सिंगल और डबल किस्म के फूलों का उत्पादन करती है।

प्रकंदों और बल्वस को ठण्ड से बचाकर रखना चाहिए क्योंकि ये ठंड को सहन करने में असमर्थ होते हैं। (Herbs) को खुली धूप की आवश्यकता होती है। अत: इन्हें उत्तर की ओर नहीं लगाना चाहिए और इन्हें वृक्षों की छाया में नहीं उगाना चाहिए , क्योंकि इनके साथ खरपतवार उग आते हैं और वे साधारण बाग की मृदा में सुगमता से उग आते हैं । वार्षिक पौधों को जहाँ आवश्यक हो उनके ताजा बीज बोने चाहिए । यह उपचार द्वि वार्षिक पौधों के लिए करना चाहिए। परन्तु बहु वार्षिक पौधों के लिए अलग से ध्यान देना होता है क्योंकि उन्हें बीज, कलम और पौधों के विभाजन से उगाया जाता है।

झाड़ियाँ जब एक बार भली-भाँति स्थापित हो जाती हैं, तो उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि वे फूल अलग-अलग अवधि में देते हैं। बसंत में उद्यान को भली - भाँति साफ कर देना चाहिए और इस समय हल्का उपरिवेशन (Top dressing) करना अत्यन्त लाभप्रद होता है। सामान्य रूप से उपरिवेशन के लिए निम्नलिखित मिश्रण का उपयोग करना चाहिए-

  • अच्छी मृदा (निजर्मीकृत)- एक भाग
  • एक भाग एक भाग बारीक रेत (Fine Sand)-   एक भाग
  • पीट या सड़ी पत्तियाँ - 1/4 भाग

उपयोग से पूर्व इन सबको भली - भाँति मिलाकर चलनी से छान लेना चाहिए । पूरी गर्मी खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए जिन्हें वीडर की सहायता से उखाड़ा जा सकता है और भूमि को फोर्क की सहायतार्थ समय - समय पर खोदते रहना चाहिए । इस समय कदों , स्टोलन और जड़ों को अलग कर लेना चाहिए । इसी समय पुरानी एवं मृदा शाखाओं और फूलों को भी साथ - साथ निकालते रहना चाहिए । ताजी बनी कालिकाओं और स्टोलन्स को लगाने का सर्वोत्तम समय बसंत ऋतु है । काट-छाँट के उपरान्त लिण्डेन का छिड़काव करना चाहिए कीटनाशकों का उपयोग निम्न प्रकार करना चाहिए

झाडियों के लिए

  • मैलाथियान 10 सी० सी० 10 लीटर पानी में।
  • पैराथियान 0.1 प्रतिशत। पत्रावली और पुष्पप्रदायी पौधों के लिए
  • लिण्डेन 5% या 10 सी० सी० 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

बल्ब, कोर्म, प्रकंद और ट्यूबर्स के लिए

नेफ्थालिन 30 ग्राम 100 ट्यूबर्स के लिए जूट के बोरों, अखबार लगाकर उपचारित ट्यूबर्स को रखना चाहिए । ताकि उसको फ्यूम्स बाहर न जाए । इस विधि से ट्यूबर्स को सर्दियों में सुरक्षित रखा जा सकता है । पौधों पर कवक, कीटाणु और वाइरस के द्वारा रोग लगते हैं । सामान्य रोगों में चूर्णी फफूंदी , काला धब्बों , सामान्य फ्यूजेरियम विगलन लगते हैं । भूमि जनित रोगों की रोकथाम के लिए भूमि को फोरमेलडिहाइड कैप्टान , थाइरम , आरगेनो मरक्यूरियल इत्यादि से उपचारित करना चाहिए।

वायु जनित रोगों के नियंत्रण हेतु फफूँदी नाशकों का उपयोग करना चाहिए। जिसका उल्लेख नीचे किया गया है -

(a) कॉपर फन्जी साइड जैसे बोर्डो मिश्रण।

(b)सल्फर फन्जी साइड जो धूल ( Dust ) या घुलनशील ( Wettable ) रूप में उपलब्ध होते हैं।

(c) आरगेनो मरक्यूरियलस Systemic fungicide और Antibiotics

खरपतावारों का निष्कासन ( Weeding )

शैल - उद्यान में से समय - समय पर खरपतावारों का निष्कासन करना चाहिये तथा सुखी मृत पत्तियों तथा शाखाओं को भी निष्कासित कर देना चाहिये ।

सिंचाई (Irrigation)

वर्षात न होने पर आवश्यकतानुसार पौधों को फव्वारे (Sprinkler) से सिंचाई कर देनी चाहिये। जिससे वर्षा के समान पौधों को जल मिलता है।

रक्षण (Protection)

अत्यधिक शीतकाल में मृदु पौधों को रक्षण की आवश्यकता होती है । जब पौधे छोटे होते हैं तब पार्वीय दो चट्टानों पर ग्लास शीट से पौधे को ढक देना चाहिये जिससे प्रकाश उपलब्ध होता रहे। बड़े पौधों पर ग्लवेनाइजड़ वायर लगा कर उन पर ग्लास शीट रखकर पौधे का बचाव कर देना चाहिये।

खाद देना(Manuring)

कम्पोस्ट मृदा के खराब हो जाने पर लगभग चार - पांच वर्ष के अन्तराल से पौधों के पुनः रोपण की आवश्यकता पड़ती है। या पौधों को अच्छी उद्यान मृदा, पत्तियों की खाद तथा बालु के समान अनुपात से बनी कम्पोस्ट को पौधों में दे देनी (top dressing) चाहिये या ऊपरी सतह की 5-10cm मृदा खुरच कर निकाल दे तथा पुनः उसमें हड्डी की खाद (bone meal) मिली कम्पोस्ट से स्थान्तरित कर देना चाहिये या नयी कम्पोस्ट से पुनः भराई कर देना चाहिये।