फूलगोभी की खेती एवं फसल सुरक्षा
फूलगोभी की खेती एवं फसल सुरक्षा

1. ऋषभ कुमार
एम एस सी वेजिटेबल साइंस 
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट जिला सतना
2. ऋषभ दुबे
पी एच डी वेजिटेबल साइंस
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर

परिचय - फूलगोभी, गोभीवर्गीय सब्जियों में अत्यंत लोकप्रिय सब्जी है | इसके खाए जाने वाले भाग को कार्ड कहते हैं, जो समानता श्वेत रंग का होता है फूलों का रंग किस्म के अनुसार होता है। पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, असम, हरियाणा फूलगोभी उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं फूलगोभी में प्रोटीन, विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसका उपयोग सब्जी, अचार, सलाद, पकोड़ा इत्यादि बनाने में किया जाता है।

जलवायु - फूलगोभी ठंडी जलवायु में उगाई जाने वाली सब्जी है इसके सफल उत्पादन हेतु 16 से 20 डिग्री तापमान सर्वोत्तम माना गया है |

भूमि - फूलगोभी की खेती सभी प्रकार की भूमि में आसानी से किया जा सकता है परंतु अच्छे उत्पादन हेतु उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट या बलुई दोमट जिसमें जीवांश प्रचुर मात्रा में हो उपयुक्त होती है।

उन्नत किस्में - फूलगोभी के उत्पादन में किस्मों का अति महत्वपूर्ण योगदान है, हमें ऐसे किस्मों का चयन करना चाहिए जिसका उत्पादन अधिक हो।

  • अगेती किस्में - पूसा कीर्ति, पूसा मेघना, पूसा दीपाली। 
  • मध्यम किस्में - पंत सुभ्रा, पूसा हिम, ज्योति, हिसार नंबर 1 
  • पछेती किस्में - पूसा स्नोबाल 1/2

खाद एवं उर्वरक - फूलगोभी की सफल उत्पादन हेतु खेत में खाद उर्वरक एवं जीवांश प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए। फूलगोभी के रोपाई के 4 से 5 सप्ताह पूर्व 20 से 25 टन गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त 150 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय देनी चाहिए और नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा 2 से 3 वार उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए ऐसा करने से उपज में वृद्धि होगी।

बीज दर 

  • अगेती किस्म 500 से 600 ग्राम पर हेक्टेयर
  • पछेती किस्म 400 ग्राम पर हेक्टेयर

रोपाई - पौधशाला में बीज बोने के उपरांत 3 से 5 सप्ताह में पौधरोपण के लिए तैयार हो जाते हैं सितंबर में अक्टूबर वाले समूह की फूल गोभी की पौध क्रम सा जुलाई के प्रारंभ और अगस्त में रोपी जाती है। मध्यकालीन किस्मों की रोपाई सितंबर में अक्टूबर में की जाती है रोपाई की दूरी 60x30 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपना चाहिए।

सिंचाई - रोपाई करने के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए सिंचाई मौसम एवं मिट्टी की किस पर निर्भर करती है। पौधों की बढ़वार एवं फूल निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए फूल गोभी के जीवन काल में 7 से 8 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

खरपतवार नियंत्रण - खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए एवं खरपतवार नाशक दवा स्टॉप 3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव रोपण के पहले लाभदायक होता है।

निराई गुड़ाई - मिट्टी चढ़ाना-पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करना अत्यंत आवश्यक होता है मिट्टी चढ़ाने से पौधों की जड़ एवं तनों को मजबूती मिलती है सिंचाई एवं वर्षा के द्वारा जड़ की आस पास से मिट्टी हट गई हो तो मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

प्रमुख कीडे एवं रोकथाम
डायमंडबैक मोथ फूलगोभी में लगने वाला या एक प्रमुख कीट है इस के प्रकोप के कारण पत्तियां गिर जाती है इस कीट के द्वारा 50 से 60 प्रतिशत उपज में प्रभाव पड़ता है।


रोकथाम - 1 रोगर थायो डॉन आदि कीटनाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए। सरसों की फसल की चारों तरफ टेप क्रॉप के रूप में उगाना चाहिए इसके द्वारा कीड़ों से सुरक्षा कर सकते है।

रोग एवं नियंत्रण - रोग फूलगोभी में मुख्य रूप से काला विगलन, डाउनी मिलडायू, गलन रोग आदि रोग लगते हैं। जिसका नियंत्रण करना अति आवश्यक होता है अगर समय पर रोकथाम नहीं किया गया तो उपज में भारी कमी होती है काला विगलन रोग बहुत नुकसानदायक होता है यह जीवाणु के कारण होता है इससे बचाव के लिए रोपाई के समय स्टेप्टो मायसिन या पेंटोमाइसीन के घोल से उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए।