गन्ने में भूमिगत कीट का एकीकृत कीट प्रबंधन
गन्ने में भूमिगत कीट का एकीकृत कीट प्रबंधन

गन्ने में भूमिगत कीट का एकीकृत कीट प्रबंधन

प्रेरणा भार्गव, मौटुषी दास , गोविंद कुमार  व डा. सुशील कुमार
सहायक प्रोफेसर, कृषि विभाग, शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज,  देहरादून

भारत में गन्नानाशी कीटों की लगभग 288 जातियाँ बुआई से कटाई तक विभिन्न अवस्थाओं में फसल को क्षति पहुँचाती हैं। कुछ भूमिगत तनों, जडों तथा पत्तियों को खाकर, कुछ पत्तियों तथा तनों से रस चूसकर तो कुछ प्ररोह अथवा तनों को बेधकर आंतरिक तंतुओं को खाते है।
क्षतिकरण के स्वरूपों के आधार पर समस्त गन्ना नाशीकीटों को भूमिगत, रस चूसक, बेधक तथा निष्पंत्रक अथवा पर्ण भक्षक आदि चार श्रेणियों में बाटा गया है। भूमिगत श्रेणी में मुख्य रूप से दीमक तथा सफेद गिडार जैसे वे कीट आते हैं जो भूमि में बोयी गयी पोरियों, जडों मूलिकाओं, मूलरोमा तथा भूमिगत तनो को खाते हैं।

एकीकृत कीट प्रबंधन क्या है ? 
एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) एक व्यवस्थित दृष्टिकोण है जिसका उपयोग किसी भी प्राकृतिक कीट द्वारा फसलों को न्यूनतम आर्थिक क्षति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आईपीएम सभी विधाओं को ध्यान में रखता है सुरक्षा तंत्र, अर्थात् रासायनिक, जैविक, जैव-तकनीकी, कृषि संबंधी प्रथाएं, शारीरिक प्रक्रियाएं और संयंत्र संगरोध।

भूमिगत कीट का एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें 
 

1)    दीमक (Termites)


दीमक बहुरूपी तथा बडे समुदाय में रहने वाला सामाजिक भूमिगत कीट है। इसके प्रत्येक समुदाय में राजा और रानी की एक जनक शाही जोडी, अनेक पंखहीन किस्में, बंध्य सैनिक, कुछ अनधिकृत सहजीवी तथा परगृह वासी विविध प्रकार के आवासों (दीमक) गृहों में साथ-साथ रहते हैं। गन्ने में दीमक की समस्या मुख्य रूप से दोमट तथा बलुई मिट्टी वाले सूखे अथवा अपर्याप्त सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में अधिक उग्र होती है, जबकि तराई, जल-प्लावित तथा बाढ ग्रस्त क्षेत्रों में इसका प्रकोप नहीं के बराबर होता है।
नियंत्रण विधि :
कृत्रिम कार्बनिक कीटनाशक रसायनों के आविष्कार पूर्व दीमक का नियंत्रण देशी पौधों द्वारा उत्पादित पदार्थों जैसे नीम, कार्बोलिक अम्ल, फिनाइल, क्रूड तेलीय घोल तथा चूना, तूतिया बोरैक्स, कैलशियम सायनाइड, लेड आर्सीनेट,पोटेशियम परमैगनेट तथा साधारण नमक जैसे अकार्बनिक रसायनों द्वारा किया जाता था। गामा एच सी. एच, हेप्टाक्लोर, क्लोरडेन टिलीड्रिन, डाइएल्ड्रिन आदि रसायन विशेष प्रभावशाली सिद्ध हुये। वर्तमान में  क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. रसायन का 1.0 कि. सक्रिय तत्व/हैक्टर को 1500-1800 लीटर पानी में बने घोल को कूड में बोये गन्ना पर छिडकाव तदुपरांत पोरियों को मिट्टी से ढकने से दीमक के ग्रीष्मकालीन प्रकोप पर प्रभावकारी नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।

2. सफेद गिडार अथवा श्वेत लट (White Grub):


सफेद गिडार एक अत्यंत हानिकारक राष्ट्रीय स्तर का भूमिगत कीट है जो गन्ने की जडों, मूलिकाओं तथा भूमिगत तनों को हानि पहुँचाता है दीमक की तरह इसका प्रकोप भी दोमट तथा बलुई भूमि में अधिक पाया जाता है।

नियंत्रण विधियाँ
1.संवर्धनीय:

भीषण रूप से प्रकोपित खेतों में गन्नों के बाद गन्ना न बोयें ऐसा करने से खेत में गिडार का आपतन कम होता है। पूर्व प्रभावित खेतों में अगले वर्ष धान की खेती करें। अत्यधिक सिंचाई अथवा आर्द्रता इस कीट के संख्या वृद्धि में बाधक होती है। दक्षिणी भारत में, जहां सफेद गिडार का प्रकोप अधिक हुआ करता है, दिसंबर-जनवरी में गन्ना न बोयें। अधसाली बुआई वर्षा के बाद कई बार जुताई करके ही करें। प्रभावित क्षेत्रों में गन्ने की बुआई गहरी जुताई के बाद ही करें।
2. यांत्रिक:
भृंगों (वयस्क बीटल) को इकट्टा कर उन्हें नष्ट करना एक सफलतम, सस्ती तथा वातावरण की दृष्टि से सुरक्षित विधि है। सुनिश्चित नियंत्रण हेतु प्रभावित क्षेत्रों में गन्ना खेतों के पास मृगों (वयस्कों) को प्रिय तथा आकर्षी वृक्ष या पौधे जैसे- नीम, बेर, अमरूद, पीपल, केला, शीशम आदि न रहने दे प्रभावित क्षेत्र अथवा खेतों के पास रात में पेट्रोमेक्स या मशाल जलायें। जिससे वयस्क मृग इकट्ठा कर नष्ट किये जा सके गर्मी की प्रथम वर्षा की प्रथम शाम नीम, बबूल, बेर, पीपल में किसी एक की 7-8 फुट लंबी टहनियों पर 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफास अथवा 0.5 प्रतिशत क्लोरपायरीफास का छिडकाव करके खेत में थोडी-थोडी दूरी पर गाड दें।
3.रासायनिक नियंत्रण:
दीमक की भाँति सफेद गिडार के नियंत्रण में भी डी.डी.टी, एच.सी.एच., क्लोरडेन, हेप्टाक्लोर, पैराथिआन आदि कीटनाशक रसायनों का प्रयोग पूर्व के वर्षों में हुआ है।
4.परजैविक:
प्रकृति में सफेद गिडार के भृंगों (वयस्क) तथा भृंगकों (ग्रब्स) के कई प्राकृतिक शत्रु पाये जाते हैं । इनमें मेढक, छिपकली, कौआ, गौरैया, मैना, नीलकंठ, जाहक (हेजहाक) आदि परभक्षी, कैम्पोमेरिस कोलेरिस तथा स्कोलिया ओरियेन्निस नामक परजीवी कीट तथा मेटाराइजियम अनीसोप्ली, वेवेरिया वेसियाना, वैसिलस थुरैनजियेन्सिस तथा वैसिलस पैपिल्ली नाम रोगाणु प्रमुख हैं।

अतः इसके सफलतम नियंत्रण हेतु निम्न समेकित नियंत्रण विधि अपनानी चाहिये:
a. भृंगों को यांत्रिक विधियों से एकत्र कर नष्ट करना।
b. बुआई पूर्व खेत की कई बार गहरी जुताई कर भृंगों तथा भृंगकों को बाहर निकालना।
c. प्रभावित क्षेत्रों में बार-बार पेडी न लेना।
d. गन्ना तथा धान का फसल चक्र अपनाना।
e. लंबी जड वाली प्रतिरोधी गन्ना प्रजातियों का चयन करना।