नीम की कृषि और मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका
नीम की कृषि और मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका

नीम का उत्पति स्थान भारत है नीम को कल्पतरु, अदभुत जीवाणु-कीटनाशक पेड़ और वंडर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। नीम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की भाषा 'निम्बा से हुई है जिसका अर्थ 'बीमारी से छुटकारा पाना' है वर्तमान समय में खेती में उर्वरकों एवं रसायनों के अत्याधिक प्रयोग करने पर हमें यह सोचना पड़ रहा है की आगे आने वाले समय में रसायन पदार्थ स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है जैसे कि वर्तमान में सब्जियों (बैगन, टमाटर, मिर्च, मटर और पालक आदि) फलों (आम, केला, पपीता और अमरुद आदि) कपास, गन्ना,गेहूँ और धान आदि में रसायनों एवं उर्वरकों का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जा रहा है।
अतः अब सोचिये कि हमारी खेती किस राह पर जा रही है यदि कृषि रसायनों एवं उर्वरकों का इस्तेमाल ऐसे ही लगातार बढ़ता रहा तो हमारी आगे आने वाली पीढ़ी तक मृदा के कम होते उत्पादन की समस्या तो होगी ही इसके साथ ही मनुष्य जीवन भी सुरक्षित नहीं हो पायेगा इसीलिए अब जरूरी है जैविक और कार्बनिक खेती की जिसमे नीम के उत्पाद का खेत (मृदा) एवं फसलों में प्रयोग कर कीड़े-मकोडों को नष्ट करने की। देश में नीम के तेल का उत्पादन प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, और ओडिशा में होता है। नीम के तेल की प्रमुख मंडियां आंध्र प्रदेश में गुन्टूर व विजयवाड़ा और मध्य प्रदेश में रायपुर में है जिनमें तेल का भाव लगभग 2000 रु- 2500 रु. प्रति कुंतल रहता है ( समय समय पर घटता एवं बढ़ता रहता है)। नीम में मुख्य रूप से एजाडिरेक्टिन नामक तत्व पाया जाता है इसकी मात्रा 3-8% तक होती है (यह तत्व निमोली से प्राप्त तेल में उपस्थित रहता है)।

नीम का मानव जीवन में महत्व:-
- दातुन के रूप में दांत साफ करने एवं मुंह के रोग विकार दूर करने में।
- छल को कूट कर सेवन करने से पेट सम्बंधित बीमारी दूर होती है।
- घाव सुखाने या भरने में सहायता करती है।
- पत्तियों को पानी में डालकर (उबाल कर) नहाने से त्वचा सम्बन्धी रोग नहीं होते हैं।
- नीम की पत्तियों का प्रयोग गेहूँ, चावल और दालों के भंडारण करते समय भण्डारण में लगने वाले व्याधियों (कीटों और रोगों से) से बचाती है।
- खून की असुद्धि को दूर करती है।
- नीम का प्रयोग कैंसर रोग, पीलिया और बुखार, हृदय संबंधी रोगों में किया जाता है।

नीम का औषधीय महत्व:-
- नीम का संपूर्ण भाग जड़, तने की छाल, पत्ती, फूल एवं फल औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है, पत्ती में पाए जाने वाले तत्व: निम्बिन, निम्बिनिन, निम्बंदिअल और क्वेरसेन्टीन।
- छाल में पाये जाने वाले तत्व: निम्बिन , निम्ब्दीन और निम्बिनी।
- फूल में पाए जाने वाले तत्व: थायोमाइल अल्कोहल, स्टेरोल्स, बेंजाइल एसीटेट और बेंजाइल अल्कोहल।
- बीज एवं फल में पाए जाने वाले तत्व- गेदमिन, गेडुमिन, एजेडिरोन और निंबोल।
- निमोली में पाए जाने वाले तत्वः अजार्डिरैचिन यौगिक।

नीम की हरी पत्ती का रासायनिक संगठन:
प्रोटिन (7.1%), वसा ( 1.0%), खनिज लवण (3-4% ), नमी( 59.4% ), कार्बोहाइड्रेट(22.9% ), फाइबर (6.2% ), कैल्शियम (510 mg/100% ), फॉस्फोरस (80 mg/100g), लोह (17 mg/100g), विटामिन-सी (218 mg/100g) और कैरोटिन (1988 micro gram/100g)। नीम की पत्ती में उपलब्ध एमिनो अम्ल-(मिलीग्राम/ 100 ग्राम भाग में) ग्लूटेमिक एसिड (73.3) एसपारटिक एसिड (15.5), टायरोसिन (31.5) अलैनिन (6.4) और प्रोलाइन (6.4)।

नीम का खेती में महत्व:-
- जैव कीटनाशक एंटीफेडेंड और ओविसाइडल कीटनाशक का प्रयोग करना।
- खेतों में नीमैक्स जैविक खाद मुख्य रूप से धान्य फसलों जैसे गेहूं धान और मक्का आदि में 120 - 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।