पालक की खेती, इम्यूनिटी बढ़ाने में अहम
पालक की खेती, इम्यूनिटी बढ़ाने में अहम

अमित सिंह1, गोविंद कुमार11, डा. सुशील कुमार1,  संजय दत्त गहतोड़ी1, डा. विकास सिंह सेंगर1  हर्षित राज 2 एवं पिंटू कुमार2 
1.असिस्टेंट प्रोफेसर, 2. , चतुर्थ वर्ष,
डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर
शिवालिक इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्ट्डीज देहरादून उत्तराखंड

विटामिन ए, विटामिन बी 2, सी, ई, के, कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फास्फोरस, जस्ता, सेलेनियम, प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत है। पालक का सेवन इम्यूनिटी बढ़ाने से लेकर स्कई तरह की समस्याओं में फायदेमंद होता है हरे रंग की पत्तेदार सब्जियों में पालक के  स्वाद के बारे में क्या कहना भारत में तो पालक का प्रयोग  बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसे हिंदी में पालक, अंग्रेजी में स्पिनेच (Spinach) के नाम से जाना जाता है। पालक का वैज्ञानिक नाम स्पिनासिया ओलेरेसिया (Spinacia oleracea) है। पालक में ल्यूटिन (Lutein) और जियाजैंथिन (Zeaxanthin) नामक यौगिक पाए जाते हैं। ल्यूटिन और जियाजैंथिन का सेवन एंटीऑक्सिडेंट गुण की तरह कार्य करता है, जो मैक्युला (रेटिना का केंद्र बिंदु) में पिगमेंट डेनसिटी को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है 
पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। ठण्ड में पालक की पत्तियों का बढ़वार अधिक होता है जबकि तापमान अधिक होने पर इसकी बढ़वार रूक जाती है, इसलिए पालक की खेती मुख्यत: शीतकाल में करना अधिक लाभकर होता है। परन्तु पालक की खेती मध्यम जलवायु में वर्षभर की जा सकती है।
पत्तियों वाली सब्जियों में पालक भी एक भारतीय सब्जी है जिसकी खेती अधिक क्षेत्र में की जाती है। यह हरी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभकारी हैं। इसकी खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में की जाती है। यह सब्जी विलायती पालक की तरह पैदा की जाती है ।
इसकी पत्तियों का प्रयोग सब्जी के अतिरिक्त नमकीन पकौड़े, आलू मिलाकर तथा भूजी बनाकर किया जाता है। पालक के सेवन से पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन, कैलोरीज, खनिज, कैल्शियम तथा विटामिन्स ए, सी का एक मुख्य साधन है जो कि दैनिक जीवन के लिए अति आवश्यक है।

भूमि एवं तैयारी
पालक उगाने के लिए समतल भूमि का चुनाव करना चाहिए, जिस जगह का चुनाव करें वहां पानी के निकास कि अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। जीवांश युक्त बलुई या दोमट या मटियार किस्म कि होती है तो उसमे पौधे कि बढ़वार अच्छी होती है।
ध्यान रहे कि पालक के पौधे अम्लीय जमीन में नहीं बढ़ते जबकि क्षारीय जमीन में इसकी खेती आसानी पूर्वक कि जा सकती है। भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य हो। भूमि की तैयारी के लिए भूमि का पलेवा करके जब वह जुताई योग्य हो जाए तब मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करना चाहिए।
इसके बाद 2 या 3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को भूरभूरा बना लेना चाहिए। साथ ही पाटा चलाकर भूमि को समतल करें। खरपतवारों के डंठल और अन्य अवांछित वस्तुओं को निकाल देते है। 

पालक की उन्नतशील प्रजातियां
1. पालक ऑल ग्रीन  
2. पालक पूसा ज्योति 
3. पालक पूसा हरित 

बुवाई का ढंग एवं बीज की मात्रा
पालक की बुवाई दो प्रकार से की जाती है। पहली विधि में बीज को खेत में छींटककर बोते हैं तथा दूसरा विधि में बीज को समान दूरी पर कतारों में बोते हैं। कतारों की विधि सबसे अच्छी मानी जाती है। इस विधि में निराई-गुड़ाई तथा कटाई करने में आसानी होती है।

बीजदर
40 -45 किलो प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है।

सिंचाई 
पालक की फसल के लिये पहली सिंचाई अंकुरण के 6-7 दिन के बाद करनी चाहिए। इसके बाद 12-15 दिन के अन्तराल से।

खरपतवार नियंत्रण 
खरपतवार उग आये हो तो उन्हें उखाड़ देना या खुरपी - कुदाल से गुड़ाई की जाती है।

उपज
पालक की उपज 300 से 400 क्विंटल हरी पत्तियां।