खरीफ में बोई जाने वाली किसी भी फसल की बुआई से पूर्व बीजोपचार अवश्य करें
खरीफ में बोई जाने वाली किसी भी फसल की बुआई से पूर्व बीजोपचार अवश्य करें

बीजोपचार एक लाभ अनेक

खरीफ में बोई जाने वाली किसी भी फसल की बुआई से पूर्व बीजोपचार अवश्य करें

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसन्धान 
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना(फल)
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, 
पूसा -848125 समस्तीपुर, बिहार 

रवि फसलों की कटाई,मड़ाई एवं भंडारण के पश्चात किसान अब खरीफ की बुवाई की तैयारी में लग गए है। उन्हे बहुत सारी फसलों के लिए नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता होगी वही कुछ की सीधी बुवाई करना होगा। ऐसे  में उन्हे पहले से कुछ जानकारी का होना आवश्यक है। बीज अनेक रोगाणु यथा कवक, जीवाणु, विषाणु व सूत्रकृमि आदि के वाहक होते हैं, जो भंडारित बीज एवं खेत में बोये गए बीज को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे बीज की गुणवत्ता एवं अंकुरण के साथ-साथ फसल की बढ़वार, रोग से लड़ने की क्षमता, उत्पादकता एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस​लिए बीज भंडारण के पूर्व अथवा बोवाई के पूर्व जैविक या रासायनिक अथवा दोनों के द्वारा बीज का उपचार किया जाना जाना आवश्यक है। बीज उपचार से तात्पर्य बीजों पर फफूंदनाशी, कीटनाशक या दोनों के संयोजन से है, ताकि बीज-जनित या मिट्टी-जनित रोगजनक जीवों और भंडारण कीड़ों से उन्हें मुक्त किया जा सके। बीजोपचार को परिभाषित करना हो तो एक लाइन में कहा जा सकता है की बीजोपचार एक लाभ अनेक।बीज उपचार करने से  निम्नलिखित लाभों को प्राप्त किया जाता है यथा

  1. पौधों की बीमारियों के प्रसार को रोकता है
  2. बीज को सड़न और अंकुरों के झुलसने से बचाता है
  3. अंकुरण में सुधार होता है एवं पौध एक समान होते है
  4. भंडारण कीड़ों से सुरक्षा प्रदान करता है
  5. मिट्टी के कीड़ों को नियंत्रित करता है।
  6. कम दवा का प्रयोग करके बहुत अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है

बीज उपचार के प्रकार
1. बीज विसंक्रमण
बीज विसंक्रमण से तात्पर्य फफूंद बीजाणुओं के उन्मूलन से है जो बीज आवरण के भीतर या अधिक गहरे बैठे ऊतकों में स्थापित हो गए हैं।  प्रभावी नियंत्रण के लिए, कवकनाशी उपचार वास्तव में मौजूद कवक को मारने के लिए बीज में प्रवेश करना चाहिए या उन सतही जीवों के विनाश से है जिन्होंने बीज की सतह को दूषित कर दिया है लेकिन बीज की सतह को संक्रमित नहीं किया है। धूल, घोल या तरल के रूप में लगाए गए रासायनिक डुबकी, सोख, कवकनाशी सफल पाए गए हैं।

2. बीज संरक्षण
बीज संरक्षण का उद्देश्य बीज और युवा पौध को मिट्टी में ऐसे जीवों से बचाना है जो अन्यथा अंकुरण से पहले बीज के क्षय का कारण बन सकते हैं।

निम्नलिखित परिस्थितियों में अवश्य  बीज का उपचार किया जाना चाहिए
घावग्रस्त बीज

बीज के आवरण में किसी भी प्रकार की टूटफूट कवक के लिए बीज में प्रवेश करने और या तो इसे मारने या इससे उत्पन्न होने वाले अंकुर को जगाने का एक उत्कृष्ट अवसर देता है। संयोजन और थ्रेसिंग के संचालन के दौरान, या अत्यधिक ऊंचाई से गिराए जाने से बीजों को यांत्रिक चोट लगती है। वे मौसम या अनुचित भंडारण से भी घायल हो सकते हैं।

रोगग्रस्त बीज
बीज फसल के समय भी रोगजीवों से संक्रमित हो सकता है, या प्रसंस्करण के दौरान संक्रमित हो सकता है, यदि दूषित मशीनरी पर संसाधित किया जाता है या दूषित कंटेनर या गोदामों में संग्रहीत किया जाता है।

अवांछनीय मिट्टी की स्थिति
बीज कभी-कभी प्रतिकूल मिट्टी की स्थिति जैसे ठंडी और नम मिट्टी, या अत्यंत शुष्क मिट्टी में लगाए जाते हैं। ऐसी प्रतिकूल मिट्टी की स्थिति कुछ कवक बीजाणुओं के विकास और विकास के लिए अनुकूल हो सकती है जिससे वे बीजों पर हमला कर उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।

 रोगमुक्त बीज
बिना किसी आर्थिक परिणाम से लेकर गंभीर आर्थिक परिणामों तक के रोगजीवों द्वारा बीज हमेशा संक्रमित होते हैं। बीज उपचार से बीमारियों, मिट्टी से पैदा होने वाले जीवों के खिलाफ एक अच्छा बीमा मिलता है और इस प्रकार कमजोर बीजों को सुरक्षा प्रदान करता है जिससे वे अंकुरित हो सकते हैं और पौधे पैदा कर सकते हैं।

बीजों के उपचार में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उत्पाद मनुष्यों के लिए हानिकारक होते हैं, लेकिन वे बीजों के लिए भी हानिकारक हो सकते हैं।  यह सुनिश्चित करने के लिए अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता है कि उपचारित बीज को कभी भी मानव या पशु भोजन के रूप में उपयोग नहीं किया जाता है। इस संभावना को कम करने के लिए, उपचारित बीज को स्पष्ट रूप से खतरनाक होने के रूप में लेबल किया जाना चाहिए।किसी भी हाल में उपचारित बीज का उपयोग खाने में नही करना चाहिए।बीज को सही मात्रा में उपचारित करने के लिए भी सावधानी बरतनी चाहिए;  बहुत अधिक या बहुत कम सामग्री लागू करना उतना ही हानिकारक हो सकता है जितना कि कभी इलाज न करना।  कुछ सांद्र तरल उत्पादों के साथ इलाज करने पर बहुत अधिक नमी वाले बीज चोट के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। यदि बीजों को जीवाणु कल्चर से भी उपचारित करना है तो बीजोपचार करने का क्रम इस प्रकार होगा सर्वप्रथम  कवकनाशी, कीटनाशी इसके बाद कल्चर से उपचारित करना चाहिए।

बीजों को पोषक तत्वों, विटामिनों और सूक्ष्म पोषक तत्वों से उपचार
बीजों को पोषक तत्वों, विटामिनों और सूक्ष्म पोषक तत्वों आदि से भिगोना/उपचार करना यथा धान में अंकुरण और शक्ति क्षमता में सुधार के लिए बीजों को 1% KCL घोल में 12 घंटे तक भिगोया जा सकता है। चारा फसलों के बीजों में बेहतर  अंकुरण और शक्ति क्षमता में सुधार के लिए बीजों को NaCl2 (1%) या KH2PO4 (1%) में 12 घंटे तक भिगोया जा सकता है। दलहनो के बीजों में अच्छा  अंकुरण और शक्ति क्षमता में सुधार के लिए बीजों को ZnSO4, MgSO4 और MnSO4 100 ppm घोल में 4 घंटे तक भिगोया जा सकता है।

बीजोपचार कैसे करें?
’’बीजोपचार ड्रम’’ में बीज और दवा डालकर ढक्कन बंद करके हैंडल द्वारा ड्रम को 5 से 10 मिनट तक घुमाया जाता है। इस विधि से एक बार में 25-35 किलो ग्राम बीज उपचार किया जा सकता है।बीज उपचार की पारम्परिक विधि ’’घड़ा विधि’’ है। इस विधि से बीज और दवा को घड़ा में निश्चित मात्रा में डालकर घड़े के मुंह को पालीथीन से बांधकर 10 मिनट तक अच्छी तरह से हिलाया जाता है। थोड़ी देर बाद घड़े का मुंह खोलकर उपचारित बीज को अलग बोरे में रखा जाता है। बीज उपचार की अन्य विधि ’’प्लास्टिक बोरा’’ विधि है। इस विधि में बीज और दवा को डालकर बोरे के मुंह को रस्सी से बांध दिया जाता है और 10 मिनट तक अच्छी तरह हिलाने के बाद जब दवा की परत बीज के ऊपर अच्छी तरह लग जाये तब बीज को भंडारित अथवा बुआई की जाती है। बीज का उपचार रासायनिक विधि से भी किया जाता है। इस विधि में 10 लीटर पानी में फफुंदनाशक /कीटनाशक की निर्धारित मात्रा 2 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर गन्ना, आलू, अन्य कंद वाले फसल को 10 मिनिट तक घोल में डुबाकर बुआई की जाती है। धान बीजोपचार 15 प्रतिशत नमक घोल से किया जाता है।इस विधि में साधारण नमक के 15 प्रतिशत घोल में बीज को डुबोया जाता है, जिससे  कीट से प्रभावित बीज, खरपतवार के बीज ऊपर तैरने लगते है और स्वस्थ्य एवं हष्ट पुष्ट बीज नीचे बैठ जाता है, जिसे अलग कर साफ पानी से धोकर भंडारित करें अथवा सीधे खेत में बुआई करें। बीज जनित बीमारी जैसे उकटा, जड़गलन, आदि के उपचार के लिए जैविक फफूंदनाशी जैसे-ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास से 5 से 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें, इससे उकटा अथवा जड़ गलन से फसल प्रभावित नहीं होती है। 
बीजोपचार के लाभ - बीज एवं मृदा जनित रोग जैसे- ब्लास्ट, उकटा, जड़ गलन आदि बीमारी से फसल प्रभावित नहीं होती है। बीजोपचार करने से बीज के उपर एक दवाई की परत चढ़ जाती है जो बीज को बीज अथवा मृदा जनित सूक्ष्म जीवों के नुकसान से बचाती है। बीज की अकुंरण क्षमता को बनाये रखने के लिये बीजोपचार जरूरी होता है, क्योंकि बीज उपचार करने से कीड़ों अथवा बीमारियों का प्रकोप भंडारित बीज में कम होता है। बुआई पूर्व कीटनाशी से बीज का उपचार करने पर मृदा में उपस्थित हानिकारक कीटों से बीज की सुरक्षा होती है। उपचारित बीज की बुआई करने से बीज की मात्रा कम लगती है एवं बीज स्वस्थ्य होने के कारण उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।