जाड़ा के बाद (फ़रवरी मध्य से लेकर मार्च मध्य तक) केला एवं पपीता में क्या करें?
जाड़ा के बाद (फ़रवरी मध्य से लेकर मार्च मध्य तक) केला एवं पपीता में क्या करें?

प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसन्धान 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार

फरवरी का मध्य चल रहा है, इस समय दिन एवं रात का तापमान प्रतिदिन बढ़ रहा है। केला एवं पपीता दोनों के अंदर गाढ़ा द्रव्य का प्रवाह होता है। जाड़ों में जब तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम होता है तो इन दोनो फल फसलों पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। अब जबकि जाड़ा बहुत तेजी से समाप्ति की तरफ बढ़ रहा है, तो यह जानना आवश्यक है की इस समय क्या करें की जाड़े की इन दुष्प्रभावों को कम किया जा सके की  उपज पर कम से कम असर पड़े।

केला का उत्तक संबर्धन से लगाया गया पौधा 7-8 महीने का हो गया होगा, अब इसमे हल्की जुताई-गुड़ाई करने के बाद प्रति केला 200 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश एवं 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें  तथा मिट्टी चढ़ा दे, क्योकि अब इसमे फूल आने ही वाला है। सूखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों को तेज चाकू से समय-समय पर काटते रहना चाहिए। येसा करने से रोगकारक की सान्ध्रता भी घटती है एवं रोग का फैलाव भी कम होता है। हवा एवं प्रकाश नीचे तक पहुचता रहता है, जिससे कीटों की संख्या में भी कमी आती है। अधिकतम उपज के लिए एक समय में लगभग 13-15 स्वस्थ पत्तियों ही पर्याप्त होती है। आवश्यकतानुसार हल्की-हल्की सिचांई करते रहे।
अक्टूबर में लगाये गए पपीता में शर्दी की वजह से पौधे में विकास कम हुवा होगा। इसलिए आवश्यक है की निराई-गुड़ाई करे तत्पश्चात प्रति पौधा 100 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश एवं 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें। इसके बाद आवश्यकतानुसार हल्की हल्की सिचांई करे। पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2% नीम के तेल जिसमे 0.5 मिली /लीटर स्टीकर मिला कर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवे महीने तक करना चाहिए I उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है की यूरिया @10 ग्राम + जिंक सल्फेट 06 ग्राम + बोरान 06 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवे महीने तक छिड़काव करना चाहिए I बोरान एवम जिंक सल्फेट के घोल अलग अलग बनाना चाहिए क्योंकि दोनों का घोल एक साथ बनाने से घोल जम जाता है। बिहार में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है की हेक्साकोनाजोल @ 2 मिली दवा / लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय, यह कार्य आठवे महीने तक मिट्टी को उपरोक्त घोल से भिगाते की रहना चाहिए। एक बड़े पौधे को भीगाने में 5-6 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता होती है।
बिहार में पपीता लगने का सर्वोत्तम समय मार्च महीना है ,इसलिए आपको सलाह दी जाती है की फरवरी माह में पपीता की की नर्सरी डाल दे।