लीची में दिसंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर फल के लौंग के आकार के होने तक क्या करें, क्या ना करें?
लीची में दिसंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर फल के लौंग के आकार के होने तक क्या करें, क्या ना करें?

अच्छी फलन एवं गुणवत्ता के लिये सुझाव
लीची में दिसंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर फल के लौंग के आकार के होने तक क्या करें, क्या ना करें?

प्रो.(डॉ) एसके सिंह
सह निदेशक अनुसंधान
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी
पूसा- 848 125 , समस्तीपुर, बिहार

भारत में 92 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 686 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 32 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 300 मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.4 टन / हेक्टेयर है।
लीची फलों की रानी है। इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। कुल लीची उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बिहार का है। दिसंबर का महीना लगभग समाप्ति की तरफ है,जनवरी माह की शुरुवात होने को है। इस समय हमारे लीची उत्पादक किसान यह जानने के लिए उत्सुक है की उन्हें जनवरी माह में क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए। उनकी इस उत्सुकता को ध्यान में रखते हुए उन्हें सलाह दी जाती है की वे
बाग़ की बहुत हल्की गुड़ाई साफ सफाई के दृष्टिगत कर सकते है लेकिन सिंचाई बिल्कुल न करें,अन्यथा नुकसान हो सकता है। लीची के बाग में माइट से ग्रसित शाखाओं को काट कर एक जगह एकत्र करके जला देना चाहिए। लीची के बगीचे में अच्छी फलन एवं उत्तम गुणवत्ता के लिये मंजर आने के सम्भावित समय से तीन माह पहले लीची के बाग में सिंचाई न करें तथा बाग में कोई भी अंतर फसल को नही लेना चाहिए। लीची में प्रजाति के अनुसार मंजर आने के 30 दिन पहले पेड़ पर जिंक सल्फेट की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बना कर पहला छिड़काव करना चाहिए, इसके 15-20 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजर एवं फूल अच्छे आते है। फूल आते समय पेड़  पर किसी प्रकार के किसी भी कीटनाशी दवा का छिड़काव नही करना चाहिए। फूल आते समय लीची के  बगीचे में 15 से 20 मधुमक्खी के बक्शे प्रति हेक्टेयर की दर से रखना चाहिए, जिससे परागण बहुत अच्छा होता है, जिससे फल कम झड़ते है एवं फल की गुणवक्ता भी अच्छी होती है एवं बागवान को अतरिक्त आमदनी प्राप्त हो जाती है। फल लगने के एक सप्ताह बाद प्लैनोफिक्स की 1 मि.ली.  दवा को प्रति 3 लीटर की दर से पानी में घोलकर एक छिड़काव करके फलों को झड़ने से बचाया जा सकता है। फल लगने के 15 दिन बाद  बोरेक्स की 5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो या तीन छिड़काव करने से फलों का झड़ना कम हो जाता है, मिठास में वृद्धि होती है तथा फल के आकार एवं रंग में सुधार होने के साथ-साथ फल के फटने की समस्या में भी कमी आती है।