व्यावसायिक बकरी पालन और जैविक खेती से अपनी और कई लोगों की किस्मत संवार रहा एक युवा, बेरोजगार युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत
व्यावसायिक बकरी पालन और जैविक खेती से अपनी और कई लोगों की किस्मत संवार रहा एक युवा, बेरोजगार युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्त्रोत

Success Story: हर कोई पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहता है, पर कभी आपने सुना है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी ने खेती और पशुपालन करना चुना हो, पशुपालन और खेती से तो वैसे भी हमारे युवा दूर भागते है ऐसे में ये बात तो मजाक ही लगेगी, लेकिन ऐसा हुआ है और समाज में इस बदलाव की इबारत को लिखा है गाडरवारा के रहने वाले हिमांशु विश्वकर्मा नें।


हिमांशु ने देश के नामी विश्वविद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ़ जर्नलिस्म कि पढ़ाई की है और अब वह जैविक खेती और बकरी पालन कर रहे हैं उनका सफ़र शुरू होता है 2012 से जब उन्होंने कुछ नया करने की तलाश में बारहबड़ा के पास सतपुड़ा पर्वतमाला की तराई में अपनी पैत्रिक जमीन पर जैविक खेती करना शुरू किया जैविक खेती में नए नए प्रयोग करना और उन प्रयोगों को आसपास के किसानो के साथ साझा करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा हो गया, वो पहले एक टीवी रिपोर्टर थे उन्होंने विभिन्न टीवी चेनलो एवं अखबारों में काम किया खेती से लगाव और कुछ नया करने की चाहत में उन्होंने पत्रकारिता को अलविदा कह दिया उनके नजदीकी लोग उनके इस फैसले से हैरान थे। उनकी पढ़ाई और डिग्री को देखकर हर कोई सोचता था कि सबकुछ छोड़कर खेती करने का ये फैसला बिल्कुल गलत है और इसमें कुछ नहीं रखा पर उन्हें तो कुछ नया करने की धुन सवार थी !
जैविक खेती से कम उत्पादन और बाजार में उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण उन्होंने खेती के साथ पशुपालन भी करने का भी फ़ैसला किया इसी क्रम में उन्हें बकरीपालन को वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक स्तर पर करने का विचार आया और इसके लिए उन्होंने देश प्रदेश के बकरी फार्मों का दौरा किया और जानकारी जुटाना शुरू किया, 2015 में उन्होंने बकरी फार्म का काम शुरू कर दिया शुरुआत में वे स्थानीय नस्ल की कुछ बकरियां और एक बकरा लेकर आये हिमांशु ने अपना बिजनेस जिस जगह शुरू किया था वहां बहुत से जंगली जानवरों के आने का खतरा भी रहता था जो कभी भी बकरियों पर हमला कर सकते थे. घर से 25 किलोमीटर दूर रोज अपने फार्म पर जाना पड़ता था लेकिन फिर भी हिमांशु ने हार नहीं मानी।


व्यवसाय के एक वर्ष तक उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पडा, ऐसा लगने लगा की बकरीयों को शेड के अन्दर पालना संभव नही है। पर 2017 में केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मथुरा से प्रशिक्षण लेने के बाद नए सिरे से व्यवसाय को पुनः सुव्यवस्थित करने का विचार बनाया।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिको द्वारा कई सुझाव दिये गए, जैसे नस्ल परिवर्तन कर किसी उन्नत भारतीय नस्ल को रखकर, एक प्रजनन फार्म बनाए, साथ ही फार्म पर उत्पादित बकरीयों एवं बकरों को जीवित भार के आधार पर बेचने के लिए मार्केटिंग करें एवं सभी छोटे बड़े बकरी पालक मिलकर सहयोग से काम करें जैसे सुझाव प्रमुख थे।
संस्थान के स्वास्थय विभाग एवं स्थानीय पशु चिकित्सा विभाग से समय समय पर बकरीयों की बिमारीयों एवं उनके उपचार के लिए सहयोग प्राप्त हुआ इसके साथ ही उन्होंने सिरोही एवं सोजत नस्ल की बकरियो का चयन किया जिससे काफी अच्छा परिवर्तन हुआ और आर्थिक लाभ भी प्राप्त हुआ। वर्तमान मे उनके फार्म पर अलग अलग प्रजातियों की सौ से ज्यादा बकरियां हैं. इनमें सिरोही, बरबरी, सोजत और गुजरी नस्ल के पांच हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे बकरियां मौजूद हैं. बकरीयों एवं बच्चों को बेचने की प्रक्रिया जीवीत भार के आधार पर है| एवं 400 से 700 रु. प्रति किलो के हिसाब से बिक्री की जा रही है। अब उन्होंने बकरी पालन को ही अपना मुख्य व्यवसाय बना लिया है।
अब हिमांशु बकरीपालन में पूरी तरह पारंगत हो चुके हैं. उन्होंने बाकायदा इसके लिए सतपुड़ा फार्मस एंड लाइवस्टॉक नाम की एक कम्पनी भी बना ली है वे अब जेविक खेती के साथ साथ बकरी पालन, देसी मुर्गीपालन और जानवरों का दाना बनाने का काम भी कर रहें हैं, फार्म पर बकरियों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री इंटरनेट के माध्यम से भी होती है.जिसके लिए उन्होंने www.satpuralivestock.com नाम की वेबसाइट भी बनायी है, आज के समय में पढ़े लिखे युवा रोजगार की तलाश में यहाँ वहां भटकते हुए अपना वक्त बर्बाद कर रहें हैं अगर चाहें तो वे भी ऐसी कामयाबी की मिशाल पेश कर सकते हैं।
हिमांशु का कहना है कि बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे पूरी लगन और मेहनत से किया जाये तो बहुत अच्छा लाभ कमाया जा सकता है वे नरसिंहपुर जिले को गोट फार्मिंग इण्डस्ट्री के हब के रूप में देखना चाहते है इसकी यहाँ अपार संभावनाएं हैं इसके लिए वे भरसक प्रयास भी कर रहें हैं। उनके द्वारा फार्म के आसपास के अन्य बकरी पालको को भी लगातार सहयोग किया जाता है। उन्नत नस्ल के बकरों से बकरीयों को ग्याबिन कराने की व्यवस्था, टिकाकरण, बिमारीयो मे इलाज, डि-वार्मिंग आदि प्रकार का सहयोग प्रदान किया जाता है। दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हे पशु पालन विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी एवं बकरी पालन का प्रशिक्षण भी समय समय पर दिया जाता है। सतपुड़ा गोट फार्म नए बकरी पालकों के लिए सहायता केंद्र बनकर सामने आया है। इसके लिए उन्हें शासन द्वारा कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है।