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Fennel (सौंफ)

Basic Info

जैसे की आप जानते है सौंफ (Fennel) व्यावसायिक और मसाले की एक प्रमुख फसल है। सौंफ की व्यसायिक रूप से एक साल की जड़ी बूटी के रूप में खेती की जाती है। इसके दाने आकार में छोटे और हरे रंग के होते है। सोंफ का उपयोग आचार बनाने में और सब्जियों में खशबू और जयका बढाने में किया जाता है|  सौंफ की औषधिय विशेषताएं भी हैं। इसे पाचन, कब्ज के उपचार, डायरिया, गले का दर्द और सिरदर्द के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। सौंफ के बीजो से तेल भी निकाला जाता है। सौंफ की खेती मुख्य रूप से मसाले के रूप में की जाती है, इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में की जाती है।

Seed Specification

बुवाई का समय
खरीफ में सौंफ बुवाई जुलाई माह में तथा रबी के सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।

दुरी
लाइनों में रोपाई करने के तरीके में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

गहराई
3-4 सैं.मी. की गहराई में बीज बोने चाहिए।

बुवाई का तरीका
सौंफ की बुवाई दो तरीके से की जाती है। पहली छिटककर तथा दूसरी लाइनों में रोपाई कर के की जाती है।

बीज की मात्रा
सौंफ की बुवाई के लिए बीजों की मात्रा सीधी बुवाई हेतु  8-10 किलोग्राम बीज व रोपण विधि में 3-4 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है।

बीज का उपचार
बीज को बुवाई पहले फफूंद नाशक दवा कार्बेन्डाजिम अथवा केप्टान से प्रति 2.5 से 3 ग्राम /प्रति किलो बीज से अलावा सौंफ के बीज को ट्राईकोडरमा जैविक फफूंद नाशक प्रति 8 से 10 ग्राम/प्रति किलो बीज से बीज को आठ घंटे उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।

Land Preparation & Soil Health

अनुकूल जलवायु
सौंफ की अच्छी उपज के लिए शुष्क और ठण्डी जलवायु उत्तम होती है| बीजों के अंकुरण के लिए उपयुक्त तापमान 20 से 29 डिग्री सेल्सियस है तथा फसल की अच्छी बढ़वार 15 से 20 डिग्री सेल्सियस पर होती है। 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान फसल की बढ़वार को रोक देता है। फसल के पुष्पन अथवा पकने के समय आकाश में लम्बे समय तक बादल रहने से तथा हवा में अधिक नमी रहने से झुलसा बीमारी तथा माहू कीट के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।

भूमि का चयन
सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली चूनायुक्त मृदा में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। मिट्टी की पी एच 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।

खेत की तैयारी
सौंफ की खेती के लिए खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके खेत को समतल बनाकर पाटा लगाते हुए एक सा बना ले। खेती की आखिरी के जुताई समय  4-5 टन सड़ी गोबर की खाद  4-5 टन प्रति एकड़ में मिला देनी चाहिए और पाटा फेर दे ताकि खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाए।

Crop Spray & fertilizer Specification

खाद एवं रासायनिक उर्वरक
खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद 4-5 टन प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 20 किलो, दो से तीन बार समान मात्रा में डालें। पहली नाइट्रोजन शुरूआती खुराक के तौर पर डाली जाती है और बाकी की नाइट्रोजन बुवाई के 30 या 60 दिनों के बाद डालें। फास्फोरस की खाद का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। यदि जांच में कमी आती है तो ही इसका प्रयोग करें।

Weeding & Irrigation

खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना चाहिए। 

सिंचाई
अच्छे अंकुरन के लिए  बुवाई से पहले सिंचाई करें। पहली सिंचाई बुवाई के 10-15 दिनों के बाद करें। मिट्टी की किस्म और जलवायु के अनुसार 15-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल लगने और बीज बनने के समय फसल को पानी की कमी ना होने दें। सौंफ की फसल की सिंचाई के लिए टपक पद्धति (ड्रीप सिंचाई ) अपनाई जा सकती है। इस पद्धति से पानी कम लगता है। इससे विधि से सिंचाई करने पर आवश्यक मात्रा में पानी पौधों तक पहुंच जाता है।

Harvesting & Storage

फसल की कटाई
जब गुच्छों का रंग हरे से हल्का पीला हो जाता है, तब इसकी कटाई करें। इसकी कटाई गुच्छे तोड़कर की जाती है। उसके बाद इन्हें 1-2 दिन के लिए धूप में सुखाया जाता है और 8-10 दिनों के लिए छांव में रख दिया जाता है।

भण्डारण
सौंफ का भण्डारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसे नमी से बचाया जा सके । गोदामों में बोरों को रखने से पहले नीचे लकड़ी के फन्टे लगाने चाहिए । बोरों की दूरी दीवार से 50-60 सेमी. रखनी चाहिए । कीटनाशक का उपयोग कभी भी नहीं करना चाहिए । विशेषज्ञों की राय से धुआं देकर कीटों से बचाना चाहिए । लम्बे समय तक भण्डारित करने के लिए प्लास्टिक लगे बोरी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित करना चाहिए । व्यापारिक स्तर पर इसे कोल्ड स्टोरेज में भी रखा जाता है।

उत्पादन
कृषि की उपरोक्त उन्नत विधियाँ अपनाकर औसतन 15 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सौंफ की उपज प्राप्त होती है| जबकि लखनवी सौंफ की उपज 5 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|

Fennel (सौंफ) Crop Types

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Frequently Asked Questions

Q1: सौंफ के क्या फायदे हैं?

Ans:

सौंफ में फाइबर, पोटेशियम, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन बी -6 और फाइटोन्यूट्रिएंट सामग्री, कोलेस्ट्रॉल की कमी के साथ मिलकर, सभी हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करते हैं। सौंफ में महत्वपूर्ण मात्रा में फाइबर होता है। फाइबर हृदय रोग के जोखिम को कम करता है क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की कुल मात्रा को कम करने में मदद करता है।

Q3: सौंफ की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है ?

Ans:

सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली चूनायुक्त मृदा में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। मिट्टी की पी एच 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।

Q5: सौंफ के बीजों का अंकुरण होने में कितना समय लगता हैं?

Ans:

सौंफ के बीज 8-14 दिनों में अंकुरित हो जाएंगे। इसके लिए मिट्टी को नम रखें और इसे पूरी तरह से सूखने न दें।

Q2: सौंफ को बढ़ने में कितना समय लगता है?

Ans:

बुवाई से लेकर कटाई योग्य आकार तक लगभग 65 दिन लगते हैं।

Q4: सौंफ की खेती किस मौसम में की जाती हैं?

Ans:

सौंफ की खेती खरीफ एवं रबी दोनों ही मौसम में की जा सकती है। लेकिन रबी का मौसम सौंफ की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई माह में तथा रबी के सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।

Q6: सौंफ का उपयोग चिकित्सकीय रूप से किस लिए किया जाता है?

Ans:

सौंफ का उपयोग विभिन्न पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है, जिसमें नाराज़गी, आंतों की गैस, सूजन, भूख न लगना और शिशुओं में पेट का दर्द शामिल है। इसका उपयोग ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, खांसी, ब्रोंकाइटिस, हैजा, पीठ दर्द, बिस्तर गीला करना और दृश्य समस्याओं के लिए भी किया जाता है।